Monday 8 October 2012

swarn-champa

swarn-champ
tumne chandrma se mukhde pr
ghunghat kyun nhi dala
tum jidhar se nikli
udhar se lutke le gyi
kjrari ankhiyon se
chaman sara
स्वर्ण-चंपा 
तुमने चन्द्रमा से मुख पर 
घूँघट क्यों नही डाला 
तुम, जिधर से निकली 
उधर से लूट के ले गयी 
कजरारी अखियों से 
चमन सारा 

(इसपर स्वर्ण-चम्पा ने उलट कर जवाब दिया )
 मुझे न समझिए 
लुटेरी दुल्हन 
न, ही हम है 
शुतुर-मुर्गी 
जो, घूँघट में रहे 
हम, आज के जमाने की 
वीरांगनाएँ है 
जो, जमाने की दुश्वारियों का 
खुद सामना करती है 
(ये कहकर स्वर्ण-चंपा झुकी ,
 बेचारे कवि चम्पत हो गए )

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