कितना मधुर लगा था
जब तुमने हंसके
मुझे यूँ ही
ये फूल कहा था
ये फूल यानि कि मुर्ख
वो शब्द कितना प्यारा लगा था
जैसे तुम्हारे अधरों से
फूल ही झरे थे
तब ये लगा था
कि मई शब्द-भेदी हूँ
जब तुमने हंसके
मुझे यूँ ही
ये फूल कहा था
ये फूल यानि कि मुर्ख
वो शब्द कितना प्यारा लगा था
जैसे तुम्हारे अधरों से
फूल ही झरे थे
तब ये लगा था
कि मई शब्द-भेदी हूँ
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