Friday, 31 January 2014

जबसे तेरे चेहरे पर 
निखार आया है 
ये मालूम हुवा कि 
मौसम बहार आया है 

जब पेड़ों कि छाहँ 
लम्बी छांव 
बगिया में पढ़ रही होगी 
सच तू वंही कंही बैठी 
किताब पढ़ रही होगी 

ये मधुलिका 
ये 
ये मधुलिका 
कौन है जो 
तेरे नशीले नयन बनों में 
बिंधकर 
बेमोल नही बिका 

यूँ 
यूँ चोरी से 
यूँ ही चोरी चोरी से 
पानी कि लहरों पर 
न लिखा करो मेरा नाम 
कि , लहरें आकाश तक उठा करती है 
बरषत में बरसकर 
बुँदे धरती से कह देगी 
मेरा छिपा हुवा प्यार 
बिखर जायेगा , जब वर्षा में 
भीगी हवाओं संग 

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