Saturday, 26 April 2014

सफल हु इसलिए 
की, तुमने दिए जलाये 
और बिना स्वार्थ के 
बिना परिचय के 
तुम मुस्कराई 
तुमने बातें की फिर तुम चुप रही 
तुमने न कुछ माँगा 
न चाहा 
आज मेरी सफलता में ईश्वर और 
मेरे अपनों के बाद 
तुम्हारा भी श्रेय है 
की तुमने जुड़ना भी नही चाहा 
तुम जुड़ा भी ऐसे हुई 
की खबर तक नही हुई तुमने 
तुमने सब कुछ अपने भीतर 
अपने आपको समेत लिया 
अबतो, तुम हर दिन 
मेरे ख्यालों में आती और 
दिए जलाकर 
मुस्कराती हो 
हमेशा तुम्हारा उपकार है पर तुमने कभी नही जताया 
की, तुमने मुझे निराशा के अँधेरे से उबार लिया है 

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