Friday 23 May 2014

बनारस की बयार के जलवे हजार 
जब चलती है सके बजार 
तो मतवाली की  ऋप्रषि पर 
लूटते है, दिल बार बार 
वो, निकलती है, 
सामने से सबके 
सर झुककर तीर की तरह 
देखने वाले रह जाते है 
आहें भर भरके 

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