कितना
कितना
कितना चाह
कितना चाहा की
तुम्हारी हंसी पर
एक कविता लिखूं
जो, तुम्हारी हंसी से ज्यादा सुंदर हो
किन्तु, ऐसा नही हो सका
हरबार ,
मेरी कविता से ज्यादा खूबसूरत
तुम्हारी मुस्कराहट लगी
क्योंकि, तुम्हारी हंसी
ईश्वर की कृति है
मेरी कविता
उसकी बराबरी नही कर सकी
कितना
कितना चाह
कितना चाहा की
तुम्हारी हंसी पर
एक कविता लिखूं
जो, तुम्हारी हंसी से ज्यादा सुंदर हो
किन्तु, ऐसा नही हो सका
हरबार ,
मेरी कविता से ज्यादा खूबसूरत
तुम्हारी मुस्कराहट लगी
क्योंकि, तुम्हारी हंसी
ईश्वर की कृति है
मेरी कविता
उसकी बराबरी नही कर सकी
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