Monday 22 September 2014

कितना
कितना 
कितना चाह 
कितना चाहा की 
तुम्हारी हंसी पर 
एक कविता लिखूं 
जो, तुम्हारी हंसी से ज्यादा सुंदर हो 
किन्तु, ऐसा नही हो सका 
हरबार , 
मेरी कविता से ज्यादा खूबसूरत 
तुम्हारी मुस्कराहट लगी 
क्योंकि, तुम्हारी हंसी 
ईश्वर की कृति है 
मेरी कविता 
उसकी बराबरी नही कर सकी 

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