फिरसे मुंबई की सोचते हुए
कल, जब मैंने ढलती साँझ में उस शख़्श को मोबाइल किया
जिसके यहनहा हमने डायरेक्शन सीखा था
ये कहे की , उसे सिखाया था तो, उसने जो बातें कही
उसका सार सारांश ये था की वो,
चाहता था, की
मई उसकी किसी बात अ विरोध नही करूँ
और जो, वो चाहे उसे करने दू ये उसके जैसे लोगों की मानसिकता है है
उसे तो बताना ही होगा
की उसकी तुच्छ फिल्मों
शायद पैसे कमाए की मशीनों के लिए
मई कोम्प्रोमाईज़ नही करूंगी
ये उसकी फूड ही नही
कमीनी सोच है उसके जैसे लार टपकने वाले गिरोह वाले
मेरे बारे में इन्ही फैलाते है की
मई तो, विरोध करती हं
और तुच्छ फिल्मों की खातिर
जैसा चाहे वैसा नही करने इति
उसकी मेरे मोबाइल पर काल है
मई इस सम्बन्ध में पीएमओ को
जरूर लिखूंगी ये भी बता दूँ
जो, ये सोचते है की पीएमओ को लखने से क्या होता है वो, गलत सोचते है
आप जरूर संसद को लिखे आपकी चिट्ठी पर
गौर तो किया ही जायेगा
हाँ, प्रत्युत्तर की अपेक्षा नही कीजिये
कल, जब मैंने ढलती साँझ में उस शख़्श को मोबाइल किया
जिसके यहनहा हमने डायरेक्शन सीखा था
ये कहे की , उसे सिखाया था तो, उसने जो बातें कही
उसका सार सारांश ये था की वो,
चाहता था, की
मई उसकी किसी बात अ विरोध नही करूँ
और जो, वो चाहे उसे करने दू ये उसके जैसे लोगों की मानसिकता है है
उसे तो बताना ही होगा
की उसकी तुच्छ फिल्मों
शायद पैसे कमाए की मशीनों के लिए
मई कोम्प्रोमाईज़ नही करूंगी
ये उसकी फूड ही नही
कमीनी सोच है उसके जैसे लार टपकने वाले गिरोह वाले
मेरे बारे में इन्ही फैलाते है की
मई तो, विरोध करती हं
और तुच्छ फिल्मों की खातिर
जैसा चाहे वैसा नही करने इति
उसकी मेरे मोबाइल पर काल है
मई इस सम्बन्ध में पीएमओ को
जरूर लिखूंगी ये भी बता दूँ
जो, ये सोचते है की पीएमओ को लखने से क्या होता है वो, गलत सोचते है
आप जरूर संसद को लिखे आपकी चिट्ठी पर
गौर तो किया ही जायेगा
हाँ, प्रत्युत्तर की अपेक्षा नही कीजिये
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