Monday 1 December 2014

जीने
जीने की आस में 
रोज मरते है ,हम 
जिस दिन चैन से जिएंगे 
कंही , डीएम ही न निकल जाये 

कोई साथ न दे 
फिर भी ये दर्द  तो साथ देता है 
ये दर्द न  ,होगा 
 क्या जिंदगी होगी 

मोहब्बत ,
कोई, पानी पर लिखी लकीर नही 
जो, लहरों के साथ जाये ,
ये तो, दिल के खून से लिखी 
इबारत है,
जो, जिंदगी के बाद भी 
नही मिटती 

 ये स्लिखि, ये कविता 

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