एक
एक खत लिखूं
जो, हवाओं पर हो
जो, लहरों पर हो
और,
फूलों पर हो
जो,
प्राची की
सुनहरी किरणों से
क्षितिज पर लिखा हो
ऐसा कोई खत
तेरे नाम लिखूं
कितनी बार
मैंने ख्यालों में
अलसुबह भोर के भी पहले
जब, सूर्य की किरणें
प्राची में
बिखर रही होती है जब,
क्षितिज पर कुछ
थोड़ा सा
अँधेरा- उजियाला
मिलकर कुछ कह रहा होता है तब, धरती के
अंधकार से दूर भोर की लालिमा में
कुछ हंसों को चुपचाप
आसमान में
उड़ते देखा है
जो, सूर्य-रश्मियों में
चमकते होते है किसी देव-लोक सा
ये दृश्य
मुझे स्तब्ध कर देता है
तुम बिन , अभी
एक दिन ही तो
बिता है
और, मेरे पास
कहने को
जाने कितनी कविता है
किसी को
उनकी
प्रिय पत्नी मिल गयी
और, मेरे प्यार को
सद्गति
मिल गयी
एक खत लिखूं
जो, हवाओं पर हो
जो, लहरों पर हो
और,
फूलों पर हो
जो,
प्राची की
सुनहरी किरणों से
क्षितिज पर लिखा हो
ऐसा कोई खत
तेरे नाम लिखूं
कितनी बार
मैंने ख्यालों में
अलसुबह भोर के भी पहले
जब, सूर्य की किरणें
प्राची में
बिखर रही होती है जब,
क्षितिज पर कुछ
थोड़ा सा
अँधेरा- उजियाला
मिलकर कुछ कह रहा होता है तब, धरती के
अंधकार से दूर भोर की लालिमा में
कुछ हंसों को चुपचाप
आसमान में
उड़ते देखा है
जो, सूर्य-रश्मियों में
चमकते होते है किसी देव-लोक सा
ये दृश्य
मुझे स्तब्ध कर देता है
तुम बिन , अभी
एक दिन ही तो
बिता है
और, मेरे पास
कहने को
जाने कितनी कविता है
किसी को
उनकी
प्रिय पत्नी मिल गयी
और, मेरे प्यार को
सद्गति
मिल गयी
tumhare bin ek din hi to, bita h,
ReplyDeleteaur mere pas kitni kavita h