Sunday 15 November 2015

hnsa jaye akela

आज वक़्त है, कि कुछ लिखूं, क्या पता कल वक़्त मिले न मिले
आज एक पुरानी पत्रिका से एक संस्मरण देख रही थी
बहुत अच्छा लग रहा था, लगा ये पुरानी यादें भी क्या खूबी है, कि हमें सब कुछ जब याद आता है, तो हम रजाई में दुबके बीते दिनों को याद करते है
आज की , पीढ़ी को ये सब नही  रहा , क्यूंकि, उन्हें जिंदगी का सच झेलना है , आज वैसी रीडिंग का वक़्त नही मिल रहा है . ये सही है, की ब्लॉग लिखे जा रहे है
मुझे भी बुआ जी के घर से आज भी उरह्जा मिलती है वंहा का शांत माहौल  मुझे खेलने व् पढ़ने के अनुकूल था
वंहा सब काम नौकर व् कामवाली करते थे , बुआ जी के घर रही तबतक , कुछ काम नही आता था , आज भी बहुत से कामो का आलास आता है, अध्ययन व् लिखना ही पसंद है, पर आर्थिक सत्य भी तो है
जिंदगी जीने पैसा होना , मई जो लिखती हूँ , उसका मुझे कुछ हासिल नही होता ,
अब अपने को लेखिका के साथ सोशल वर्कर भी कहना चाहती हूँ
और, ये अपने लेटर हेड में भी लिखूंगी
जिंदगी भर कुछ न कुछ करने का वाद जिंदगी से किया है, देखे,
मानती हूँ , की कोई शक्ति मुझसे ये करवाती है , तभी तो, मैंने सोचा है, कि मैं इंडिया रिफॉर्म्स रेसोलुशन चलाऊंगी , हमे लोकतंत्र का पथ यंहा के रहवासियों को पढ़ना है, तभी हम डेमोक्रेसी की रक्षा कर सकेंगे
अभी ये हंस कहा तक क्या करता है, देखे यंहा, लिखने में बहुत, डिस्टर्ब होता रहा, जो छह रही  थी,नही लिख सकी
जब डूबकर लिखती हूँ, तो वो कुछ और ही होता है
आज इतना ही, रोज का वादा है, लिखने का 

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