जी बुआजी के घर आती ही, धीरोजा मेहतरानी , वह जब भी हमारे यंहा आती, घर का आँगन गुलजार हो जाता , मेहतरानी थी, तो आँगन तक ही आती थी, रोज चाय -नास्ता उसके लिए होता, और अक्सर दोपहर को आती, वो मुझे बेहद चाहती थी, मेरे लिए उसके घर के बगीचे से फल लती, सभी मौसमी फल मई उसीके यंहा के कहती थी , आर वो, मुझे सब जगह घूमने ले जाती , यद्यपि उसे नही छूना होता, पर घर से बाहर मई स्की अंगुली थामे ही चलती, बाजार-हैट, गुजरी जाती। बुआ जी नही जाती थी.
मई रामलीला देखने, गणेश जी व् दुर्गा जी इ दशन भी तो, धीरोजा के साथ जाकर करती, बारिश में भीगते , वो मासूम खिलखिलाते पल जाने कान्हा गए , कहा चले गए, वो प्यारे प्यारे दिन, बातों को यङ्करके ही , ये गीत िखे होंगे , प्यारे दिन थे वे
मई जब कुछ बड़ी हुई, स्कुल जाने लगी तो, अपनी सहेली ममता के साथ, दुर्गा जी के मेले में जाती, वंहा से ढेर से खिलौने लेकर हम दोनों एक बड़े से डलिया में रक्ते और, उसे रस्सी से खींचकर , एक दूसरे के घर ले जाते , हम दोनों बहुत मिलकर रेट, अभी नही झगड़ते थे , मई एक बार जो घटना घाटी उसपर भी लिख चुकी हूँ.
बुआ जी के घर वाकई बेफिक्र थे, वंहा मेरी किसी से स्पर्धा नही थी, शायद इन्ही कारन से, मेरी किसी से कोई आज तक स्पर्धा नही, रही,, शायद मेरी स्पर्धा अपने से ही रही,
बुआ जी के घर का अहसस मुझे जिन्दा रखता है
गौओं के साथ , पक्षियों के साथ, अपनों के संग उस प्राकृतिक जगह में मई रही, ये समझती रही होंगी , की हमेशा वंही रहूंगी
बुआ जी की सौत भी मृत्यु होने के बाद वंहा क वातावरण में बोझिलता आ गयी थी, किन्तु मई अपने खेल व् पढ़ाई में लगी रहती थी कितने प्यारे ,जब ४ मःतक बारिश होती थी , और हम घरों में रम्यं सुनते , रामायण सुनते थे, जो की शुकनंदन जी गाते थे।
एक दिन वो भी नही रहे , सब जाने कहा अनजान देश जा रहे थे
मुनीम जी पेहले ही जा चुके थे
घर में रहस्यपूर्ण शांति थी , और बुआ जी भाग्य के खेल पर मौन थी, कई बार मुझे वंहा घर में कुछ महसूस होता था , फिर मई डॉ गयी थी, वो दिन बी मई तिजोरी से चाहे जितने पैसे उठकर सिर्फ एक खिलौना लाती थी
वो, देश परया हो रहा था , वंहा गर्मियों मई ढेर सारे आम कहती मुझे घंघोड़े हो जाते थे, तब इतनी छोटी थी, की बुआजी कंधों पर उढाये, मुझे रत भर घर में घूमती थी, क्यूंकि मई रोटी थी
मई स्कुल से क्यारियां लेकर आई थी , और पेड़ लगाये थे, वंही तुलसी के चबूतरे के इर्द-गिर्द ,जो मेरे जाने के बाद बुआ जी को मेरी याद दिलाते रहे थे
बुआ जी तब अकेि रह गयी थी, मई बुआ जी के घर से निकल कर आई , पर आज तक जैसे वंही के माहौल में जी रही हूँ, अपने सिमित साधन में भी खुद को कमतर नही मानती
ये मेरी प्रकृति है, और बेटे की कमिक्स कॉमिक्स जब उठकर दे दी, तब मई नही जान सकी कि मई कितना गलत काम कर रही हूँ
पितृ पक्ष में मई बुआ जी के उनके जेठ के यंहा जाने पर अकेली थी, बाजु इके किराये वाले दम्पति भी थे , पर मई डॉ गयी थी मई ११ वर्ष की लड़की रत ३ बजे चीखकर उठी थी, बीएस उसी रात ने बुआ जी के घर से मुहे विलग कर दिया था , पर बुआ जी की आत्मा का नेह आज भी मेरे साथ है
बुआ जी आपके लिए मई कुछ नही कर सकी, बीएस आज भी याद आती है, तो, मई आपके लिए प्रभु का स्मरण करती हूँ बुआजी आपको नही भूल सकती , न डिरोजा को भूलिंगी buaji तो, दुखों को पीती थी, पर धीरोजा मेरी याद अनेर आनेपर, जोरो से दहाड़ मारकर रोटी , तो सब उसके साथ रोने लगते थे
धीरोजा जब सड़क झड़ने झाड़ने जाती , तो, याद आते ही, जोरों से रोने लगती , सब दौड़कर आते, क्या हो गया
धीरोजा बाई,......
तो रोकर अहति..... मेरी छोटी बाई जी, याद आ गयी
सब ऐसे असहाय होकर देखते थे
फिर धीरोजा मुझसे मिलने बाबूजी के गांव भी आई थी, और, मुझे देखकर उसकी तो, जैसे आँखें जुड़ा गयी थी, मई उसकी ख़ुशी को आजतक अपने भीतर महसूस करती हूँ
वो, धीरोजा बाई, मई भी तुम्हे बहुत याद करती हूँ फिर उतने प्यारे और अनुकूल लोग मुझे कभी नही मिले
वो, स्नेह-दुलार मुझे फिर कोई नही दे सका , जो बुआ जी और धीरोजा ने मुझपर लुटाया था
मई रामलीला देखने, गणेश जी व् दुर्गा जी इ दशन भी तो, धीरोजा के साथ जाकर करती, बारिश में भीगते , वो मासूम खिलखिलाते पल जाने कान्हा गए , कहा चले गए, वो प्यारे प्यारे दिन, बातों को यङ्करके ही , ये गीत िखे होंगे , प्यारे दिन थे वे
मई जब कुछ बड़ी हुई, स्कुल जाने लगी तो, अपनी सहेली ममता के साथ, दुर्गा जी के मेले में जाती, वंहा से ढेर से खिलौने लेकर हम दोनों एक बड़े से डलिया में रक्ते और, उसे रस्सी से खींचकर , एक दूसरे के घर ले जाते , हम दोनों बहुत मिलकर रेट, अभी नही झगड़ते थे , मई एक बार जो घटना घाटी उसपर भी लिख चुकी हूँ.
बुआ जी के घर वाकई बेफिक्र थे, वंहा मेरी किसी से स्पर्धा नही थी, शायद इन्ही कारन से, मेरी किसी से कोई आज तक स्पर्धा नही, रही,, शायद मेरी स्पर्धा अपने से ही रही,
बुआ जी के घर का अहसस मुझे जिन्दा रखता है
गौओं के साथ , पक्षियों के साथ, अपनों के संग उस प्राकृतिक जगह में मई रही, ये समझती रही होंगी , की हमेशा वंही रहूंगी
बुआ जी की सौत भी मृत्यु होने के बाद वंहा क वातावरण में बोझिलता आ गयी थी, किन्तु मई अपने खेल व् पढ़ाई में लगी रहती थी कितने प्यारे ,जब ४ मःतक बारिश होती थी , और हम घरों में रम्यं सुनते , रामायण सुनते थे, जो की शुकनंदन जी गाते थे।
एक दिन वो भी नही रहे , सब जाने कहा अनजान देश जा रहे थे
मुनीम जी पेहले ही जा चुके थे
घर में रहस्यपूर्ण शांति थी , और बुआ जी भाग्य के खेल पर मौन थी, कई बार मुझे वंहा घर में कुछ महसूस होता था , फिर मई डॉ गयी थी, वो दिन बी मई तिजोरी से चाहे जितने पैसे उठकर सिर्फ एक खिलौना लाती थी
वो, देश परया हो रहा था , वंहा गर्मियों मई ढेर सारे आम कहती मुझे घंघोड़े हो जाते थे, तब इतनी छोटी थी, की बुआजी कंधों पर उढाये, मुझे रत भर घर में घूमती थी, क्यूंकि मई रोटी थी
मई स्कुल से क्यारियां लेकर आई थी , और पेड़ लगाये थे, वंही तुलसी के चबूतरे के इर्द-गिर्द ,जो मेरे जाने के बाद बुआ जी को मेरी याद दिलाते रहे थे
बुआ जी तब अकेि रह गयी थी, मई बुआ जी के घर से निकल कर आई , पर आज तक जैसे वंही के माहौल में जी रही हूँ, अपने सिमित साधन में भी खुद को कमतर नही मानती
ये मेरी प्रकृति है, और बेटे की कमिक्स कॉमिक्स जब उठकर दे दी, तब मई नही जान सकी कि मई कितना गलत काम कर रही हूँ
पितृ पक्ष में मई बुआ जी के उनके जेठ के यंहा जाने पर अकेली थी, बाजु इके किराये वाले दम्पति भी थे , पर मई डॉ गयी थी मई ११ वर्ष की लड़की रत ३ बजे चीखकर उठी थी, बीएस उसी रात ने बुआ जी के घर से मुहे विलग कर दिया था , पर बुआ जी की आत्मा का नेह आज भी मेरे साथ है
बुआ जी आपके लिए मई कुछ नही कर सकी, बीएस आज भी याद आती है, तो, मई आपके लिए प्रभु का स्मरण करती हूँ बुआजी आपको नही भूल सकती , न डिरोजा को भूलिंगी buaji तो, दुखों को पीती थी, पर धीरोजा मेरी याद अनेर आनेपर, जोरो से दहाड़ मारकर रोटी , तो सब उसके साथ रोने लगते थे
धीरोजा जब सड़क झड़ने झाड़ने जाती , तो, याद आते ही, जोरों से रोने लगती , सब दौड़कर आते, क्या हो गया
धीरोजा बाई,......
तो रोकर अहति..... मेरी छोटी बाई जी, याद आ गयी
सब ऐसे असहाय होकर देखते थे
फिर धीरोजा मुझसे मिलने बाबूजी के गांव भी आई थी, और, मुझे देखकर उसकी तो, जैसे आँखें जुड़ा गयी थी, मई उसकी ख़ुशी को आजतक अपने भीतर महसूस करती हूँ
वो, धीरोजा बाई, मई भी तुम्हे बहुत याद करती हूँ फिर उतने प्यारे और अनुकूल लोग मुझे कभी नही मिले
वो, स्नेह-दुलार मुझे फिर कोई नही दे सका , जो बुआ जी और धीरोजा ने मुझपर लुटाया था
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