swarn-champ
tumne chandrma se mukhde pr
ghunghat kyun nhi dala
tum jidhar se nikli
udhar se lutke le gyi
kjrari ankhiyon se
chaman sara
स्वर्ण-चंपा
तुमने चन्द्रमा से मुख पर
घूँघट क्यों नही डाला
तुम, जिधर से निकली
उधर से लूट के ले गयी
कजरारी अखियों से
चमन सारा
(इसपर स्वर्ण-चम्पा ने उलट कर जवाब दिया )
मुझे न समझिए
लुटेरी दुल्हन
न, ही हम है
शुतुर-मुर्गी
जो, घूँघट में रहे
हम, आज के जमाने की
वीरांगनाएँ है
जो, जमाने की दुश्वारियों का
खुद सामना करती है
(ये कहकर स्वर्ण-चंपा झुकी ,
बेचारे कवि चम्पत हो गए )
tumne chandrma se mukhde pr
ghunghat kyun nhi dala
tum jidhar se nikli
udhar se lutke le gyi
kjrari ankhiyon se
chaman sara
स्वर्ण-चंपा
तुमने चन्द्रमा से मुख पर
घूँघट क्यों नही डाला
तुम, जिधर से निकली
उधर से लूट के ले गयी
कजरारी अखियों से
चमन सारा
(इसपर स्वर्ण-चम्पा ने उलट कर जवाब दिया )
मुझे न समझिए
लुटेरी दुल्हन
न, ही हम है
शुतुर-मुर्गी
जो, घूँघट में रहे
हम, आज के जमाने की
वीरांगनाएँ है
जो, जमाने की दुश्वारियों का
खुद सामना करती है
(ये कहकर स्वर्ण-चंपा झुकी ,
बेचारे कवि चम्पत हो गए )