जिंदगी ऐसी थी ,जैसे
कि ओंस कि बूंद
मन अतृप्ति में डूबा था
ऐसे में तुम बरसी
जैसे , सावन हो सागर का
कूका, पपीहा , मन का
ऐसी तू, रस बनगयी जीवन का
कि ओंस कि बूंद
मन अतृप्ति में डूबा था
ऐसे में तुम बरसी
जैसे , सावन हो सागर का
कूका, पपीहा , मन का
ऐसी तू, रस बनगयी जीवन का
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