जैकी एक कुत्ता है, जो सामने वाले घर में रहता है. वो सारा दिन बेबस भोंकता रहता है. पर कोई उसपर ध्यान नहीं देता. वे कहते है कि उसे भोकना चाहिए. वो चाहता है कि सब उसे चाहे. वो सबका ध्यान खींचने भोंकता है. पर वो लोग मेरी मिन्नत के बावजूद उसकी बात नहीं सुनते. उसकी भावनाओं पर कोई ध्यान नहीं देता. क्या इसलिये कि वो कुत्ता है. मेरे लिए तो वो एक बच्चा है, जो घूमना चाहता है. उड़ना चाहता है मस्त बयार के साथ. वे लोग इतनी सी बात क्यों नहीं समझते. काश !मैं उन्हें समझा पाती.
bnaras ki byar
Friday, 9 August 2019
Tuesday, 18 July 2017
Monday, 3 April 2017
bnaras ki byar: ajib sa desh है मेरा यंहा का इतिहास बदल गया हम ...
bnaras ki byar: ajib sa desh है मेरा
यंहा का इतिहास बदल गया
हम ...: ajib sa desh है मेरा यंहा का इतिहास बदल गया हम सब बदल गए देश के इतिहास में रह गया सिर्फ मुग़ल काल न गुप्त न मौर्य न अशोक न विक्...
यंहा का इतिहास बदल गया
हम ...: ajib sa desh है मेरा यंहा का इतिहास बदल गया हम सब बदल गए देश के इतिहास में रह गया सिर्फ मुग़ल काल न गुप्त न मौर्य न अशोक न विक्...
ajib sa desh है मेरा
यंहा का इतिहास बदल गया
हम सब बदल गए
देश के इतिहास में
रह गया सिर्फ मुग़ल काल
न गुप्त न मौर्य न अशोक
न विक्रमादित्य
जैसे सब कुछ
सिंहासन बत्तिशी में बिला गया हो
देश के अतीत से अनजान
अपने से अजनबी
एक ऐसी कौम आयी
कि जो अपने पुरातन को चाहते थे
वे हाशिये से भी
धकेले गए
राज्य सभा में तक
सिर्फ उनकी खातूनें थी
सब कुछ हिजाब में छुप क्र होने लगा
मुगलई और चैनिश डिश परोसे जाने लगी
हमारी गौओं को ट्रकों में भरकर
कन्हा ले जाया जाता किसी को पता नही
सब्सिडी से बूचड़खाने तर हुए
और खेती किसानी वाले
अपने ही लहू से
तर-बटर हुए
बड़ी लम्बी अनकही दास्ताँ है
इस देशीपन के दर्द की
जो अपने मुल्क में पराये से हम रहे
न कोई पूछने वाला
न कोई नाम लेवा
यंहा का इतिहास बदल गया
हम सब बदल गए
देश के इतिहास में
रह गया सिर्फ मुग़ल काल
न गुप्त न मौर्य न अशोक
न विक्रमादित्य
जैसे सब कुछ
सिंहासन बत्तिशी में बिला गया हो
देश के अतीत से अनजान
अपने से अजनबी
एक ऐसी कौम आयी
कि जो अपने पुरातन को चाहते थे
वे हाशिये से भी
धकेले गए
राज्य सभा में तक
सिर्फ उनकी खातूनें थी
सब कुछ हिजाब में छुप क्र होने लगा
मुगलई और चैनिश डिश परोसे जाने लगी
हमारी गौओं को ट्रकों में भरकर
कन्हा ले जाया जाता किसी को पता नही
सब्सिडी से बूचड़खाने तर हुए
और खेती किसानी वाले
अपने ही लहू से
तर-बटर हुए
बड़ी लम्बी अनकही दास्ताँ है
इस देशीपन के दर्द की
जो अपने मुल्क में पराये से हम रहे
न कोई पूछने वाला
न कोई नाम लेवा
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