मन्नू ने रम्भा को चिट्ठी लिखी बस यूँ ही लिखा
प्राणप्रिये
तुम गलत क्यों समझी
चर्च में जो दिखा
वो, प्रभु की प्रेरणा थी
विरह -दग्ध ह्रदय को एक, सांत्वना भर
जो, तुम जैसे नही कंही
न, किसी के लिए
कंही कोई भाव
आप ऐसा क्यों समझी
क्या गलती थी की अचानक
तुम्हे, बताने की इन्ही मंतव्य था
की, प्रभु ने
जैसे स्वयं सांत्वना दी थी
आप गलत मत समझना
ये मन ऐसा नही है जो. कंही भी
कुछ सोचे
बिलासपुर
जा रही , कोई सुंदर
रमणी यदि
अपनी मीठी बोली से आकर्षक
लगे तो, क्या
मन उधर होगा
तुम्हारे सिवाय
कंही भी कोई नही
और, ये तुम्हारा
फैसला है
की तुम,
क्या करती हो तुम्हारी
ख़ुशी। …
तुम्हारे लिए
मन्नू
प्राणप्रिये
तुम गलत क्यों समझी
चर्च में जो दिखा
वो, प्रभु की प्रेरणा थी
विरह -दग्ध ह्रदय को एक, सांत्वना भर
जो, तुम जैसे नही कंही
न, किसी के लिए
कंही कोई भाव
आप ऐसा क्यों समझी
क्या गलती थी की अचानक
तुम्हे, बताने की इन्ही मंतव्य था
की, प्रभु ने
जैसे स्वयं सांत्वना दी थी
आप गलत मत समझना
ये मन ऐसा नही है जो. कंही भी
कुछ सोचे
बिलासपुर
जा रही , कोई सुंदर
रमणी यदि
अपनी मीठी बोली से आकर्षक
लगे तो, क्या
मन उधर होगा
तुम्हारे सिवाय
कंही भी कोई नही
और, ये तुम्हारा
फैसला है
की तुम,
क्या करती हो तुम्हारी
ख़ुशी। …
तुम्हारे लिए
मन्नू
mannu rambha ko kitne khat likhe, dekhte h
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