Thursday 26 March 2015

मन्नू ने रम्भा को चिट्ठी लिखी बस यूँ ही लिखा 
       प्राणप्रिये 
तुम गलत क्यों समझी 
चर्च में जो दिखा 
वो, प्रभु की प्रेरणा थी  
विरह -दग्ध ह्रदय को एक, सांत्वना भर 
जो, तुम जैसे नही कंही 
न, किसी के लिए 
कंही कोई भाव 
आप ऐसा क्यों समझी 
क्या गलती थी की अचानक 
तुम्हे, बताने की इन्ही मंतव्य था 
की, प्रभु ने 
जैसे स्वयं सांत्वना दी थी 
आप गलत मत समझना 
ये मन ऐसा नही है जो. कंही भी 
कुछ सोचे 
बिलासपुर 
जा रही , कोई सुंदर 
रमणी यदि 
अपनी मीठी बोली से आकर्षक 
लगे तो, क्या 
मन उधर होगा 
तुम्हारे सिवाय 
कंही भी कोई नही 
और, ये तुम्हारा 
फैसला है 
की तुम, 
क्या करती हो तुम्हारी 
ख़ुशी। … 
तुम्हारे लिए 
                             मन्नू 

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