Monday, 28 November 2016

bnaras ki byar: तुम्हारी हंसी ऐसी जैसे गंगा जी में नहाके निकली ...

bnaras ki byar: तुम्हारी हंसी ऐसी 
जैसे 
गंगा जी में 
नहाके निकली ...
: तुम्हारी हंसी ऐसी  जैसे  गंगा जी में  नहाके निकली हो  वाराणशी 
तुम्हारी हंसी ऐसी 
जैसे 
गंगा जी में 
नहाके निकली हो 
वाराणशी 

Sunday, 27 November 2016

bnaras ki byar: क्याक्या सिर्फ  मौसम गीत गाते है ये पर्वत , नदी ...

bnaras ki byar: क्या
क्या सिर्फ  मौसम गीत गाते है 
ये पर्वत , नदी ...
: क्या क्या सिर्फ  मौसम गीत गाते है  ये पर्वत , नदी , पंछी नही 
क्या
क्या सिर्फ  मौसम गीत गाते है 
ये पर्वत , नदी , पंछी नही 
किसी बात पर मेरी बहु ने मुझे ये सुना दिया 
कि 
तूने तो पंडित के पीछे अपनी जवानी बर्बाद की 
सुनकर मुझे झटका सा लगा 
फिर वह  चली गयी थी 
बाद में  वापस  आयी 
तब मैं घर से बाहर गयी  थी 
 तो, वह सामने गेट  इन्तजार क्र रही थी 
पुत्र , भी बाहर गया था 
ज्यूंहि मेरी नज़र पड़ी 
वह बहुत ही खूबसूरत लगी 
लगा मोबाइल से चित्र ले लूँ 

Saturday, 26 November 2016

बहुत हैरान हूँ 
अपने बाकि ब्लोग्स को नही प् रही हूँ 
यंहा तक कि dashbourd भी नही मिल रहा क्या करूँ 

Friday, 25 November 2016

किसी 
किसी नई खबर का इन्तजार रहता है 
जब दिल बेकरार रहता है 

Wednesday, 23 November 2016

sabke dimag me ynhi rahta hai ki
हमे हमक्या करना है
सड़के टूटी है
कोई एजेंट ठीक काम नहीं क्र रहा तो
हम क्या करें
ठेकेदार की

Saturday, 19 November 2016

अपने बचपन के वे दिन याद आते है , जब बुआ जी के घर मई अपने ४या ५ वर्ष की उम्र में सामने की छापरी में बैठती थी, एक कोने में जो ऊँची सी बेंच की तरह बनी थी. 
वन्ही बैठकर मई अकेली ही , देखती थी, एक तिकोने आकर की बाइस्कोप को, जो कांच की चूड़ियों के टुकड़े, कई आकृति में नज़र आते , वन्ही मैं मगन होकर देखा करती , और उसी में जाने कबतक खोई रहती थी। 
शायद वन्ही से मुझे visual, द्रश्य से लगाव हो गया 

Thursday, 17 November 2016

bnaras ki byar: bahut dinon se

bnaras ki byar: bahut dinon se: बहुत दिनों बाद आज कुछ रिलैक्स हूँ, वरना सर की शिराएं तद तड़ करती थी  प्रकाशक से कुछ बात हो सकी है  बहुत दिनों से सोच रखा है, कि नई किताब श...

bahut dinon se

बहुत दिनों बाद आज कुछ रिलैक्स हूँ, वरना सर की शिराएं तद तड़ करती थी 
प्रकाशक से कुछ बात हो सकी है 
बहुत दिनों से सोच रखा है, कि नई किताब शुरू करनी है 
और जाने क्या क्या 
बहुत दिनों से 
एक कविता की पन्तियाँ याद आती है 
बहुत दिन हुए 
बहुत दिन बीते 
खुले आकाश से बतियाये हुए 
वो ऊँचे ऊँचे पेड़ों के निचे खड़े होकर 
आसमान की और निहारना 
और फिर किसी पखेरू को उड़ते देखना 
किसी चिड़िया का गीत सुनना 
बहुत दिन बीते 
(सोच रही हूँ, दिल की बात ,इसी तरह से , कहूँगी 
कुछ कुछ गद्य में , कुछ काव्य में,)

Tuesday, 8 November 2016

अपनी नई किताब जो कि मेरा संस्मरण है 
प्रारम्भ करना चाहती हूँ