bnaras ki byar: तुम्हारी हंसी ऐसी
जैसे
गंगा जी में
नहाके निकली ...: तुम्हारी हंसी ऐसी जैसे गंगा जी में नहाके निकली हो वाराणशी
Sunday, 27 November 2016
bnaras ki byar: क्याक्या सिर्फ मौसम गीत गाते है ये पर्वत , नदी ...
bnaras ki byar: क्या
क्या सिर्फ मौसम गीत गाते है
ये पर्वत , नदी ...: क्या क्या सिर्फ मौसम गीत गाते है ये पर्वत , नदी , पंछी नही
क्या सिर्फ मौसम गीत गाते है
ये पर्वत , नदी ...: क्या क्या सिर्फ मौसम गीत गाते है ये पर्वत , नदी , पंछी नही
किसी बात पर मेरी बहु ने मुझे ये सुना दिया
कि
तूने तो पंडित के पीछे अपनी जवानी बर्बाद की
सुनकर मुझे झटका सा लगा
फिर वह चली गयी थी
बाद में वापस आयी
तब मैं घर से बाहर गयी थी
तो, वह सामने गेट इन्तजार क्र रही थी
पुत्र , भी बाहर गया था
ज्यूंहि मेरी नज़र पड़ी
वह बहुत ही खूबसूरत लगी
लगा मोबाइल से चित्र ले लूँ
कि
तूने तो पंडित के पीछे अपनी जवानी बर्बाद की
सुनकर मुझे झटका सा लगा
फिर वह चली गयी थी
बाद में वापस आयी
तब मैं घर से बाहर गयी थी
तो, वह सामने गेट इन्तजार क्र रही थी
पुत्र , भी बाहर गया था
ज्यूंहि मेरी नज़र पड़ी
वह बहुत ही खूबसूरत लगी
लगा मोबाइल से चित्र ले लूँ
Saturday, 26 November 2016
Wednesday, 23 November 2016
Saturday, 19 November 2016
अपने बचपन के वे दिन याद आते है , जब बुआ जी के घर मई अपने ४या ५ वर्ष की उम्र में सामने की छापरी में बैठती थी, एक कोने में जो ऊँची सी बेंच की तरह बनी थी.
वन्ही बैठकर मई अकेली ही , देखती थी, एक तिकोने आकर की बाइस्कोप को, जो कांच की चूड़ियों के टुकड़े, कई आकृति में नज़र आते , वन्ही मैं मगन होकर देखा करती , और उसी में जाने कबतक खोई रहती थी।
शायद वन्ही से मुझे visual, द्रश्य से लगाव हो गया
वन्ही बैठकर मई अकेली ही , देखती थी, एक तिकोने आकर की बाइस्कोप को, जो कांच की चूड़ियों के टुकड़े, कई आकृति में नज़र आते , वन्ही मैं मगन होकर देखा करती , और उसी में जाने कबतक खोई रहती थी।
शायद वन्ही से मुझे visual, द्रश्य से लगाव हो गया
Thursday, 17 November 2016
bnaras ki byar: bahut dinon se
bnaras ki byar: bahut dinon se: बहुत दिनों बाद आज कुछ रिलैक्स हूँ, वरना सर की शिराएं तद तड़ करती थी प्रकाशक से कुछ बात हो सकी है बहुत दिनों से सोच रखा है, कि नई किताब श...
bahut dinon se
बहुत दिनों बाद आज कुछ रिलैक्स हूँ, वरना सर की शिराएं तद तड़ करती थी
प्रकाशक से कुछ बात हो सकी है
बहुत दिनों से सोच रखा है, कि नई किताब शुरू करनी है
और जाने क्या क्या
बहुत दिनों से
एक कविता की पन्तियाँ याद आती है
बहुत दिन हुए
बहुत दिन बीते
खुले आकाश से बतियाये हुए
वो ऊँचे ऊँचे पेड़ों के निचे खड़े होकर
आसमान की और निहारना
और फिर किसी पखेरू को उड़ते देखना
किसी चिड़िया का गीत सुनना
बहुत दिन बीते
(सोच रही हूँ, दिल की बात ,इसी तरह से , कहूँगी
कुछ कुछ गद्य में , कुछ काव्य में,)
प्रकाशक से कुछ बात हो सकी है
बहुत दिनों से सोच रखा है, कि नई किताब शुरू करनी है
और जाने क्या क्या
बहुत दिनों से
एक कविता की पन्तियाँ याद आती है
बहुत दिन हुए
बहुत दिन बीते
खुले आकाश से बतियाये हुए
वो ऊँचे ऊँचे पेड़ों के निचे खड़े होकर
आसमान की और निहारना
और फिर किसी पखेरू को उड़ते देखना
किसी चिड़िया का गीत सुनना
बहुत दिन बीते
(सोच रही हूँ, दिल की बात ,इसी तरह से , कहूँगी
कुछ कुछ गद्य में , कुछ काव्य में,)
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