Thursday 17 November 2016

bahut dinon se

बहुत दिनों बाद आज कुछ रिलैक्स हूँ, वरना सर की शिराएं तद तड़ करती थी 
प्रकाशक से कुछ बात हो सकी है 
बहुत दिनों से सोच रखा है, कि नई किताब शुरू करनी है 
और जाने क्या क्या 
बहुत दिनों से 
एक कविता की पन्तियाँ याद आती है 
बहुत दिन हुए 
बहुत दिन बीते 
खुले आकाश से बतियाये हुए 
वो ऊँचे ऊँचे पेड़ों के निचे खड़े होकर 
आसमान की और निहारना 
और फिर किसी पखेरू को उड़ते देखना 
किसी चिड़िया का गीत सुनना 
बहुत दिन बीते 
(सोच रही हूँ, दिल की बात ,इसी तरह से , कहूँगी 
कुछ कुछ गद्य में , कुछ काव्य में,)

No comments:

Post a Comment