फिरसे
फिरसे तुम्हारे नाम खत लिखके
उसे फाड़ा है
इन्ही नही समझ में आया कि
उसे भेजु कँहा ,
जो तुम्हारे हाथ तक पहुंचे
सच तुम तक
अपनी बात रखने का कोई रास्ता नही रहा जैसे
फिरसे तुम्हारे नाम खत लिखके
उसे फाड़ा है
इन्ही नही समझ में आया कि
उसे भेजु कँहा ,
जो तुम्हारे हाथ तक पहुंचे
सच तुम तक
अपनी बात रखने का कोई रास्ता नही रहा जैसे
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