Saturday 18 April 2015

mannu ka love letter

मन्नू का क्या है 
रम्भा की शादी के बाद 
कभी कभी याद आये तो 
रम्भा को चिट्ठी लिखना 
रम्भा को चिट्ठी लिखना 
और , गंगा जी की लहरों में बहा देना 
इस बार मन्नू के पास कुछ नही था 
लिखने को 
फिर भी लिखना था , कुछ तो 
मन्नू ने लिखा शी'र 
      सर से पांव तलक एक अदा छाई हुई है 
       उफ़ , तेरी मासूम जवानी जोश पर आई हुई है 
                                                   मन्नू
ye sab पढ़कर रम्भा बहुत नाराज हुई 
और मन्नू से कहलवाया 
ये क्या कुछ मौलिक नही लिख सकते 
तो, यंहा वंहा का मारकर लिख भेजा 
मन्नू ने लिखा 
आप तो, प्रेयशी 
हो, सुमधुर 
मधुर प्रेयशी 
आप तो , मन्नू की और न देखो कभी 
किन्तु, आपके गाल cheeks तो 
मुझे देखते है 
और आमत्रंण भी देते है 
इसपर आपका क्या कहना है 
                   मन्नू       
किन्तु , रम्भा ने कोई जवाब नही दिया 
मन्नू ने फिर स्पष्ट किया 
          प्रिया प्रेयसी 
           आप तो, हो 
सुमधुर ,
                       पेय सी 
                 देखो    
तुम तो, मन्नू को नही देखो 
           हरदम अपने उनको देखो 
            किन्तु, तुम्हारे गाल 
                हमेशा , हँसते हुए 
                हमे देखते है     
                                  मन्नू 

(सच तो, ये है, 
की कविता करने का मन नही होता 
बिकुल भी
मन्नू ने लिखा 
जानेमन 
देखो , तुम न देखो मुझे हमेशा 
   ये जणू जणू कहो तो 
गुस्सा होती है तुम न देखो पर 
तुम्हारे गालों पर लगा orange कलर 
तो, देखते हैलो और मुस्कराते भी है हमे 
इशारे भी करते है 
क्या करे , तुम ही कहो 
तो, रम्भा ने कहा 
तुम्हारी चिट्ठी में बहुत गलती है तुम 
मुझसे क्लॉस लो 
तुम्हे ठीक से लिखना सीखा दू 
तुम जो लिखो,
उसमे एक  लाइन में ५ त्रुरटी होती है 
रम्भा की क्लास में मन्नू ने जो भी सीखा 
किन्तु , उसे भूख बहुत लगती 
बोले, अब हो गया 
कुछ खिलाओ 
रम्भा बोली 
यंहा खाना नही सीखना है मन्नू बोले किन्तु, स्कूल में तो 
दोपहर को खिलते है 
खिलाते है 
रम्भा ने बताया, 
लेकिन सीखते कब है जो, खिलते है, वे.... 
मन्नू ने जो चिट्ठी लिखी वो, कल 
देखेंगे, आज सब भूल गए है 

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