Sunday 16 June 2013

वो उछलते हुए मांसल कचनार
वो, छलकते कलशों के भार
वो, बंकिम चितवन की धार
जैसे, म्यान से निकली कटार

वो मचलती हुयी
गंगा की धार
वो ,लरजती हुयी
गुलमोहर की डाल

वो, चमकते हुए
मन्दिरों के कंगूरे
वो, महकते हुए
मुस्कराते मीनार

वो, मन्दिरों से आती
घंटियों की अनुगूँज
वो बेलौस छा जाती
बनारस की बयार
                                जोगेश्वरी 

Saturday 15 June 2013

ये कहानियां कल भी थी
ये कहानियां आज भी है
ये कहानियां कल भी होगी
मेरे जाने के बाद
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नई नई आई है , नया नया संसार है
नई नवेली वधु का , नया नया श्रिंगार  है
तभी तो रुत रंगीली है
और छाई ,बसंत बहार है -
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छलका छलका यौवन
उजला उजला मन
कान्हा से लायी हो ,जानेमन
निखर निखर तन
                          जोगेश्वरी 

Tuesday 11 June 2013

लाज से भरे
तीखे तीखे
तुम्हारे नयन
म्र्दुहास से
झुके झुके
तुम्हारे नयन

बंकिम कटाक्ष से
कुछ कहते
तुम्हारे नयन
जब भी उठते है
लुट लेते है
तुम्हारे नयन
                       जोगेश्वरी 
जो , तुमने हंस के देखा तो
झील में तूफान आ गया
जो, तूने ली अंगडाई तो
कश्तियो के साहिल छुट गये
                                                 जोगेश्वरी 

Monday 10 June 2013

वो तेरा मुस्कराकर
बल खाकर , इतरा  कर देखना
कितनों के दिल चुरा लेता है
वो, तेरे नजरों के तीर फेंकना


ऐसी पड़ी
मानसून की पहली बौछार की
जिन्दगी में  
बहुत अच्छी लगी, थी
जब, तुम मुस्करायी थी
लगा था ,तुम्हे देखकर, जैसे
कलियाँ,चटक रही है
ऐसी , हंसी थी, तुम्हारी
जैसे गुलाब, खिल गये हो
गुलमोहर के लरजने का
अहसास जंवा हुवा था
इसी, दीवानगी में
बढकर , जब हाथ ,तुम्हारा थामा था
तो, प्यार हमारा
जमाने में रुसवा हुवा था
                                         जोगेश्वरी 
जिन्दगी, सिर्फ ऐश , नही
जिन्दगी, सिर्फ, मौज-मजा नही
जिन्दगी इबादत भी है
और, वो इबादत
सिर्फ, मोहब्बत से होती है
फिर, तुम चाहे, जिस से करलो
                                          जोगेश्वरी 

Saturday 1 June 2013

जब मै मिली , भतीजे से

जब, मै मिली शहर में
अपने भतीजे से, तो
बहुत याद आया , बिछड़ा गाँव
जब, उसने मेरे पांव छुए तो
याद आई बरगद की छाँव
याद आई, अमराई की कोयल
और, कौंध गयी, निम् की बयार
याद आया, पीपल का झूमना
और, माँ का मेरे माथे को चूमना
नम हुयी, आँखें मेरी
जैसे झलका हो, कलशे का पानी
कंही कूकती कोयल,
कंही गति, च्दिया रानी
नही भूल पति, पल भर भी
अपने बाबुल का गाँव
जन्हा बहा करता है , नित
माँ-पिता के स्नेह का झरना