दिल करता
दिल करता है
कंही निर्जन में बैठकर
तुझ पर
१००० कविताएँ लिखू
और, उन्हें
गंगा जी में
दान कर दूँ कविताओं को
kavitaye
कवितायेँ कभी भी
समाप्त नही होती
क्यूंकि
हममे
इनका अस्तित्व होता है
हमारे साथ कविता भी
जीवित रहती है
दिल करता है
कंही निर्जन में बैठकर
तुझ पर
१००० कविताएँ लिखू
और, उन्हें
गंगा जी में
दान कर दूँ कविताओं को
kavitaye
कवितायेँ कभी भी
समाप्त नही होती
क्यूंकि
हममे
इनका अस्तित्व होता है
हमारे साथ कविता भी
जीवित रहती है
No comments:
Post a Comment