तुम्हे घर संसार, ग्रस्ति में लग्न
गृहस्थी में लग्न लाग्न है
जैसे दूध में शक्कर मिल जाती है
इन्ही जीवन चक्र है
घर से ग्रहणी का जितना प्रगाढ़ रिस्ता हो उतना अच्छा है नही मिलेगा वक़्त जबतक
पहली संतान का घर नही बस जायेगा
रातदिन नए जिम्मेदारियों में गुंथा मन पलभर शायद किसी अंजानी दुनिया की सैर कर ए
जब जीवन में चैन से थोड़ा वक़्त मिलेगा तो,
गंगा जी के किनारे बैठकर कभी इस परिणय पर गौर कर लेना बीएस
गृहस्थी में लग्न लाग्न है
जैसे दूध में शक्कर मिल जाती है
इन्ही जीवन चक्र है
घर से ग्रहणी का जितना प्रगाढ़ रिस्ता हो उतना अच्छा है नही मिलेगा वक़्त जबतक
पहली संतान का घर नही बस जायेगा
रातदिन नए जिम्मेदारियों में गुंथा मन पलभर शायद किसी अंजानी दुनिया की सैर कर ए
जब जीवन में चैन से थोड़ा वक़्त मिलेगा तो,
गंगा जी के किनारे बैठकर कभी इस परिणय पर गौर कर लेना बीएस
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