Monday 31 August 2015

hnsa jaye akela

बुआ जी गोदी में उनके गांव पहुंची तो, बड़ी बुआ जी के घर की छपरी में राख से नेता तुरंत तो, टूट गया था, मुझे राख किसी ने तो भी खाने दी होगी, तब 
आज भी जब बछड़े -बछिया को भूखे -प्यासे लंग -लंग घूमते देखती हूँ, तो समझती हूँ,उनसे उनकी माँ से विलग कर, उनके हिस्से का दुध दुसरे लोग पी जाते है. 
बुआ जी के बड़े से घर आँगन में मेरा बहुत लाड़ प्यार होता , वंहा बहुत सी औरतें, बच्चे मोहल्ले के आते , जिनकी मई छोटी बाई थी, यंहा भी, वंही सम्पन्नता थी, नौकर-चाकर , बनिहार-बूटियार etc
वंही पर बुआ जी एक सौत भी थी, मैंने उसपर, लिखी हूँ, इश्लीए अपनी जिंदगी, या कहे यात्रा पर लिखूंगी 
बुआ जी के घर का माहौल अनुकूल था , इतना दुलार और ऐश्वर्या , की राजसी ठाट -बात में पलटी रही 
ये नही जानती थी, कि किसी चीज को कैसे बरतना चाहिए, ये पता होता तो, जो आज सम्पति मिली उसका प्रबंधन कर सकती, इतना धन बर्बाद नही होता , और, जीवन में आज अनिश्चितता नही होती 
क्यूंकि, हमे पता ही नही था, की जो वैभव या धन-सम्पत्ति है, उसके लिए कितने जतन करने होते है, एक एक पैसे को सम्भालना होता है 
इन्ही, तो होता है ,माता पिता के संघर्ष को जब हम नही जानते, तो, जीवन के संघर्ष से अपरिचित रह जाते है 
मनमाना खर्च तो, नही करते थे, फिर भी जो उपलब्ध था, जीवन, वो, मध्यम वर्ग से ऊँचा था, अलहदा था , बुआ जी के एक गिलास पानी के लिए भी मुझसे नही कहा जाता था , बिस्तर पर सोने जाते तो, वह भी नौकर बिछाता था , और जब उठते तो, वह बिछौना भी नौकर ही आकर उठाते थे , आज ऐसे पराधीन जीवन की कल्पना बेमानी है ,फिर भी देखती हूँ , मेरा बीटा कुछ  रहता है, जैसे मई तब रहती थी, लेकिन, मई एक कळवळी की तरह आज काम  करती हूँ, हालाँकि घर में सब-सुख है, लेकिन याद इन्ही पड़ता है, की तब, मई बिलकुल कुछ नही करती थी, सिवाय पढ़ने लिखने के 
बुआ की ही नही मोहल्ले भर में सबकी लाड़ली मई , जब, वे जानेंगे की आज कितनी मेहनत करती हूँ, तो, उन्हें क्या ख़ुशी होती होगी 
किन्तु, मुझे आज अपने घर ही नही, देश के लिए भी काम करते, बहुत प्रस्सनता होती है  
आज इतना ही 
कल, बताउंगी, कैसे मई वंहा तिजोरी पर रखे प्सिक्कों को मुट्ठी में भरके ले जाती और, एक खिलौना खरीदती थी 

Sunday 30 August 2015

Mera Dil Le Gayi Oye [ Original song ] Ziddi - 1997

O Panchhi Pyaare - Nutan - Dharmendra - Bandini Songs - Asha Bhosle - S ...

hnsa jaye akela

आज बहुत थकी हूँ 
अपने बचपन को याद करते ही स्फूर्ति व् ऊर्जा महसूस करने लगती हूँ 
हमें हमेशा समझना महसूस करना होगा की हमारी ऊर्जा का स्त्रोत कौन है , हम कहा से ऊर्जा पाते है ,मुझे आज भी बुआ जी यादों व् अपने बचपन से शक्ति मिलती है , जिसके सहारे , मई लिख लेती हूँ 
ऊर्जा का वो केंद्र मेरा अतीत है , जन्हा वैभव था, ऐश्वर्या था , मेरे माँ-बाबूजी तब, मेरी बड़ी बुआ के घर रहते थे , वो घर से ज्यादा बड़ा कुनबा था , बुआजी के बड़े घर बहुत साड़ी दालानों,छपरी, आँगन व् गर्भ-गृहों से बने थे , वंहा अलग, अलग हिस्सों में सब रहते थे , उनकी उस जमाने में सबसे पहले गांव में बनी बड़ी बिल्डिंग थी, etc
ज्यादा बताकर बोर नही करूंगी, क्यूंकि, वे बड़ी जायदाद वाले साहूकार व् शराब व् गांजे के ठेकेदार थे, उनके यंहा १०० एकड़ जमीं खेती थी, व् चावल की मिलें थी,etc
बाबूजी भी उनके यंहा, ठेके व् खेती के काम देखते थे , और , माँ उनके यंहा सारा चूल्हा चौक संभालती थी,
ये इतना आसान नही था , एक १४ बरस की बालिका वधु के लिए , उसपर डेढ़ -दो, बरस में बच्चे होते थे , बुआ जी जचकी के १५ दिन तक मेथी गुड के कड़वे लड्डू माँ को खिलाती , मेवे सिर्फ बुआ की लड़कियों के लिए होते थे , फिर माँ को काम पर लगना होता था, इसी सिलसिले में मेरी देखभाल कोई नही कर पता, मेरी बड़ी दी ६-७ साल की थी, जो मेरे से छोटे भाई को रखती थी , मुझे कोई नही रखता, घुटनों के बल मई रेंगती हुई , जाकर , छपरी में रखे चूल्हों की राख अपनी नन्ही हथेलियों में भरकर , मुख में ठूंसती , जबतक अधमुन्सी नही हो जाती , फिर दी के मुक्के ही मेरी नन्ही सी जान को बचाते थे , ऐसे में छोटी बुआ जी आती थी, तो, मई उन्ही, की गोदी में सुरक्षा पाती थी , जब वे जाती तो, वे भी रोटी , और मई भी रोती थी, वे अपने पीटीआई व् बेटे को खो चुकी थी , और, तब उन्हें उनके गांव में सबने कहा की, वे मुझे ले आये 
और, मई बुआ की गोदी में ऊंघती अपनी माँ और, चूल्हे की राख से दूर चली गयी 
ये सोचती हूँ, की चूल्हे में सिर्फ राख नही होती, गर्म धधकते अंग्रे भी होते है, जो चूल्हा ठंडा नही होता, वंहा यदि हाथ डालो तो, जल भी सकता था, जाने मेरी किसने उस आग से रक्षा की होगी, की मेरी नन्ही अंगुलियां नही जली , भगवन का धन्यवाद , कि मई आज लिख रही हूँ,
शेष कल 

Saturday 29 August 2015

hansa jaye akela...........

हंस हंस 
हंसा जाये अकेला। ....... 
ये मेरा संस्मरण है , अपनी माँ को समर्पित है 
यूँ तो, संस्मरण मेरी प्रिय विधा है 
जब, जिंदगी इतनी उलझी नही थी , मई रोज संस्मरण ही लिखने बैठ जाती थी ,सब कहते , तू अपने अतीत को याद कर उसे जीती है , तो, आगे नही बढ़ पाती , लेकिन मुझे अपने अतीत से शक्ति मिलती थी 
अभी जब तक ये नही लगा की , मुझे जिंदगी के लिए कुछ करना है , मई इन्ही करती रही हूँ,
तो, शुरू करे , वंही से 
मेरे बचपन से, जब, मई कोई डेढ़ दो बरस की थी , और मेरे छोटे भाई कोमल के जन्म के बाद से माँ की गोदी से मेरा रिस्ता छूट रहा था, दो बरस से छोटी मई, माँ से दूर हो रही थी, अकेली रोटी रोती बिसूरती कहा जाती थी , पता है ,छापरी में जो , बड़े बड़े चूल्हे बने हुए थे , उन्ही में राखी रखी राख की ढिन्दी उठाकर खाती थी , तब तक खाती रहती थी , जब तक मई खाते खाते अधमुन्सी नही हो जाती थी, माँ तो काम में लगी रहती थी, मेरी हालत देखकर रोटी रोटी थी , और दीदी आकर मेरे पीठ पर जब मुक्के जड़ती तब, मेरे मुख में भरी राख निकलती थी 
मेरे हाथ-पांव ऐंठ जाते थे , मई रो नही पाती थी,.......... ये हाल देख मेरी छोटी बुआ मुझे अपने साथ ले गयी थी 
अपने गांव हट्टा , तब, मई २ बरस की भी नही थी। ………… 
शेष कल, हट्टा में मेरे बचपन की सुनहरी यादें। ....... 

Friday 28 August 2015

आप सभी को रक्षा -बंधन की हार्दिक शुभ-कामनाये 
 जल्द ही इसी पर अपना संस्मरण शुरू कर रही हूँ 
हंसा , जाये अकेला। ……… 

Sunday 16 August 2015

मन्नू
मन्नू ने रम्भा को लिखी चिट्ठी 
ये बता कंहा 
                                                         
          n so n so 
मन्नू ने लिखा 
           ये बताओ , तू कंहा 

Thursday 6 August 2015

आखिरकार , मन्नू की कातरता पर पसीज कर रम्भा ने कहा मन्नू 
आज हम आपका टेस्ट लेते है 
मन्नू बोले , मै कोई चॉकलेट तो , नही 
रम्भा ने बिगड़ते हुए कहा
ये बताओ की भारत की राजधानी क्या है 
मन्नू ने तपाकसे कहा- बनारस 
(शेष कल)
रम्भा ने बताई --नही दिल्ली 
मन्नू ने कहा --वो, तो , भारत का दिल है 
(शेष कल )

Kachche Dhaage - Haye Haye Ek Ladka Mujhko Khat Likhta Hai - Lata Manges...

YESHU KI VANI - ANTHONY RAJ

मन्नू ने ज्यूँ ही रम्भा को पूलपर , फूल दिया 
वो, इतनी अदा से मुस्कराई कि 
बेचारे मन्नू वंही फ्लैट होर पुल पर से गिर गए 
सीधे नदी में 
बेचारी रम्भा बहुत अपसेट हुई 
वो, तो नदी की मछलियाँ थी 
जिन्होंने अचेत मन्नू को 
नदी के तट पर लाकर लिटा दिया 
मन्नू ने रम्भा की मुस्कराहट भर तो देखि थी 

Tuesday 4 August 2015

हुआ ये कि मन्नू ने रम्भा को -दिवस में फूल भेजे 
वो, बेचारी इन्ही बोली 
जो, खुद फूल (मुर्ख) हो, उन्हें फूल भेजने की क्या जरुरत 
मन्नू इन्ही कहा 
आप इतनी खूबसूरत हो कि
फूल भी फीके लगते है 

Sunday 2 August 2015

Aaya Tere Dar Par Deewana

Resham Ki Dori - Manoj Kumar, Asha Parekh, Sajan Song (Duet) (k)

dr renu shukla 
  happy frnds day
                 काश आप मित्र -सूची में  होती 
                तो, आपको मेसेज इ बदले 
                     रोज एक रोज़ भेजती 
                        लें, आप नही दिखती, मित्र-सूची में 
                            क्या एक बार नही आओगी            
                           ताकि , अप प्रोफाइल देख सकूँ 
                                    ये मेरी रिक्वेस्ट है