Sunday 30 August 2015

hnsa jaye akela

आज बहुत थकी हूँ 
अपने बचपन को याद करते ही स्फूर्ति व् ऊर्जा महसूस करने लगती हूँ 
हमें हमेशा समझना महसूस करना होगा की हमारी ऊर्जा का स्त्रोत कौन है , हम कहा से ऊर्जा पाते है ,मुझे आज भी बुआ जी यादों व् अपने बचपन से शक्ति मिलती है , जिसके सहारे , मई लिख लेती हूँ 
ऊर्जा का वो केंद्र मेरा अतीत है , जन्हा वैभव था, ऐश्वर्या था , मेरे माँ-बाबूजी तब, मेरी बड़ी बुआ के घर रहते थे , वो घर से ज्यादा बड़ा कुनबा था , बुआजी के बड़े घर बहुत साड़ी दालानों,छपरी, आँगन व् गर्भ-गृहों से बने थे , वंहा अलग, अलग हिस्सों में सब रहते थे , उनकी उस जमाने में सबसे पहले गांव में बनी बड़ी बिल्डिंग थी, etc
ज्यादा बताकर बोर नही करूंगी, क्यूंकि, वे बड़ी जायदाद वाले साहूकार व् शराब व् गांजे के ठेकेदार थे, उनके यंहा १०० एकड़ जमीं खेती थी, व् चावल की मिलें थी,etc
बाबूजी भी उनके यंहा, ठेके व् खेती के काम देखते थे , और , माँ उनके यंहा सारा चूल्हा चौक संभालती थी,
ये इतना आसान नही था , एक १४ बरस की बालिका वधु के लिए , उसपर डेढ़ -दो, बरस में बच्चे होते थे , बुआ जी जचकी के १५ दिन तक मेथी गुड के कड़वे लड्डू माँ को खिलाती , मेवे सिर्फ बुआ की लड़कियों के लिए होते थे , फिर माँ को काम पर लगना होता था, इसी सिलसिले में मेरी देखभाल कोई नही कर पता, मेरी बड़ी दी ६-७ साल की थी, जो मेरे से छोटे भाई को रखती थी , मुझे कोई नही रखता, घुटनों के बल मई रेंगती हुई , जाकर , छपरी में रखे चूल्हों की राख अपनी नन्ही हथेलियों में भरकर , मुख में ठूंसती , जबतक अधमुन्सी नही हो जाती , फिर दी के मुक्के ही मेरी नन्ही सी जान को बचाते थे , ऐसे में छोटी बुआ जी आती थी, तो, मई उन्ही, की गोदी में सुरक्षा पाती थी , जब वे जाती तो, वे भी रोटी , और मई भी रोती थी, वे अपने पीटीआई व् बेटे को खो चुकी थी , और, तब उन्हें उनके गांव में सबने कहा की, वे मुझे ले आये 
और, मई बुआ की गोदी में ऊंघती अपनी माँ और, चूल्हे की राख से दूर चली गयी 
ये सोचती हूँ, की चूल्हे में सिर्फ राख नही होती, गर्म धधकते अंग्रे भी होते है, जो चूल्हा ठंडा नही होता, वंहा यदि हाथ डालो तो, जल भी सकता था, जाने मेरी किसने उस आग से रक्षा की होगी, की मेरी नन्ही अंगुलियां नही जली , भगवन का धन्यवाद , कि मई आज लिख रही हूँ,
शेष कल 

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