चलो चलते है , उसपार
जन्हा छाई रहती है
हरदम मस्त बहार
जन्हा झरते है झरने
और कूकती है कोयल
आ, मेरे संग , वंहा चल
जन्हा घिरती है घटाएँ
बरसती है फुहारें
भीग जाता है , जिनसे
तुम्हारा सतरंगी आँचल
आ चलते है , उसपर
(अभी लिखी हूँ , तुरंत ये कविता )
जोगेश्वरी सधीर
जन्हा छाई रहती है
हरदम मस्त बहार
जन्हा झरते है झरने
और कूकती है कोयल
आ, मेरे संग , वंहा चल
जन्हा घिरती है घटाएँ
बरसती है फुहारें
भीग जाता है , जिनसे
तुम्हारा सतरंगी आँचल
आ चलते है , उसपर
(अभी लिखी हूँ , तुरंत ये कविता )
जोगेश्वरी सधीर
ynhi rang janch raha h
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