Monday 29 July 2013

ek khat

pear
हमेशा   सोचती हूँ की, यंहा आकर  लिखना है , किन्तु, अक्सर भूल जाती हूँ , की क्या लिखूंगी
मुझे लगता है , की लिखने से  काम  बढ़ जाता है , जिसे पब्लिश करना झंझट जैसा लगता है
किन्तु, जब भी हम  परेशां हो जाते है , तो लिखते है  लिखना हमे मानसिक अवसाद से बचा लेता है .
इशलिये , सोचा है ,की यदि कोई लिखना चाहे तो , उसे मना नही करना चाहिए . ये उसकी अपनी
अनुभूति है , जिसे कोई भी अपने तरीके से  व्यंक्त करता है
जोगेश्वरी 

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