लिखना चाहती हूँ , और बताना चाहती हूँ
उस सौंदर्य को , जो आप रातों को उठकर
आकाश में बादलों में छिपे , उनिनिंदे
चंद्रमा को, बादलों में छिप कर सोते
देखते है ,
तब, हवा भी जैसे साँस लेना भूल जाती है
इतनी मासूमियत होती , उस
चंद्रमा के संग निशा के , ऊँघने में
कविता , अभी ही लिखी,
जम नही रही है
क्यूंकि, बात इससे भी ज्यादा
खुबसूरत हो सकती है
जोगेश्वरी
उस सौंदर्य को , जो आप रातों को उठकर
आकाश में बादलों में छिपे , उनिनिंदे
चंद्रमा को, बादलों में छिप कर सोते
देखते है ,
तब, हवा भी जैसे साँस लेना भूल जाती है
इतनी मासूमियत होती , उस
चंद्रमा के संग निशा के , ऊँघने में
कविता , अभी ही लिखी,
जम नही रही है
क्यूंकि, बात इससे भी ज्यादा
खुबसूरत हो सकती है
जोगेश्वरी
meri likhi kavita se bhi, pyara h, ye anuvad
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