आओ , तुम्हारी नजर से देखूं
इन नजारों को
दूग्ध -फेन से बहते
गंगोत्री केके धारों को
अलक-नंदा पर चमकती
चोटियों की कतारों को
तुम्ही, तो, हो , जो
जोड़ती हो जग से
तुम एक पूल हो
जिससे दुनिया का मर्म
समझ में आता है
वरना क्या है
तुम्हारे बिना ये जीवन
जब भी
सतपुड़ा के जंगलों की
पेड़ों की पातें
पंक्तिबद्ध नजर आती है
जंहा तक दृष्टी जाती है
वो, जंगलों के पार
क्षितिज में
पहाड़ों के उपर
जंहा छा जाती है
अरुणिमा धूसर
बस
इन नजारों को
दूग्ध -फेन से बहते
गंगोत्री केके धारों को
अलक-नंदा पर चमकती
चोटियों की कतारों को
तुम्ही, तो, हो , जो
जोड़ती हो जग से
तुम एक पूल हो
जिससे दुनिया का मर्म
समझ में आता है
वरना क्या है
तुम्हारे बिना ये जीवन
जब भी
सतपुड़ा के जंगलों की
पेड़ों की पातें
पंक्तिबद्ध नजर आती है
जंहा तक दृष्टी जाती है
वो, जंगलों के पार
क्षितिज में
पहाड़ों के उपर
जंहा छा जाती है
अरुणिमा धूसर
बस
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