Thursday 4 July 2013

bnaras ki byar

वो  उछलते हुए
मांसल कचनार
वो, मचलती हुयी
गंगा की धार
वो लरजती हुयी
गुलमोहर की डाल
वो महकते हुए
मुस्कराते दीये
वो, चमकते हुए
मन्दिरों के  कंगूरे
वो, झलकते हुए
कलशों के भार
वो मन्दिरों से आती
घंटियों की अनुगूँज  
वो, बेलौस छा जाती
बनारस की बयार

काफी संयत भाषा में लिखी , कविता
जोगेश्वरी 

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