Monday 10 February 2014

एक
एक चिट्ठी बनारस कि बयार को लिखते है 
पता है, कि न पता है , न डाकघर है 
फिर भी चिट्ठी तो है 
जो, शब्दो से नही लिखी जाती 
सिर्फ दिल के जज्बात ही लिखते है 
हर रात को, दिल कि बात को 
ये बता , बनारस कि बयार 
तुम कैसी हो ,
तुम्हारा बनारस कैसा है 
गंगा कि लहरें कैसी है 
ये जो तुम सारा दिन घर संवारने में लगी रहती हो 
कुछ पल अपने को भी दे दो 
दिल से इतनी बेरुखी कैसी। ……… 
शेष कल लिखेंगे। ............. 
ये जो तुम दिए जलाती हो 
आँगन में सांझ में जलाना 
बस , और तुम खाने से इतनी विरक्त क्यों हो 
ठीक है , तुम्हारी बातें तुम जानो 
जानु 
जानू 
ok kuchh glt ho, to thik kr lena 
aur bhul nhi jaana ....kuch..

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