प्रिये
प्रिये
फूलों कि तरह
खिलती कली सी मुस्कराओगी
नाजनीना
उसी पल मुझे
अपने तस्सवुर में पाओगी
ये तेरा रूप
सृंगार
जैसे कि हो कोई ऋतू
ऋतू बहार
ये सुन तो
तेरा दिया प्यार ही तो
मेरा मन भरमा रहा है
और क्या चईये मुझको
ऐसे उपहास क्यों करती हो
मेरे दिल को इस तरह से
उदास क्यों करती हो
ये मिस शुक्ला
कोई तेरे जैसा
आजतलक नही मिला
तुझे देखके
मेरा दिल
फूल सा है, खिला
जब जब तुम
घर के आँगन में
दिया जलाओगी
सच उसी लम्हा
मुझे अपने साथ पाओगी
ये गजगामिनी
मन भामिनी
ये जो आशिकों के दिलों को
कदमों तले ,
रौंदती हुयी
बांकी अदा से चलती हो
सच, बागों में फूल खिले न खिले
तुझे देखके
मेरे दिल कि कली खिलती है
ये न सोचना कि
तेरे बिन उदाश हूँ
चाहे कितनी भी दूर रहो
मई तेरे दिलके पास हूँ
बसंत के कितने रंग
ये चांदनी बदन
जितने खिले खिले , तेरे अंग
उतने रंग तेरे अंगों के संग
तुम तो मुस्कराकर
इतराकर
मुर्दों में भी
जान फूंका करती हो
ये तो फिर भी
मेरी लेखनी है
जो, तुम्हारे सन्निन्ध्य से
काव्य-वृस्ति क्र रही है
दिल दिल
दिल करता है
तेरे हाथों को चूम लू
जो, इस वक़त
मेरे कागज संभल रहे है
प्रिये
फूलों कि तरह
खिलती कली सी मुस्कराओगी
नाजनीना
उसी पल मुझे
अपने तस्सवुर में पाओगी
ये तेरा रूप
सृंगार
जैसे कि हो कोई ऋतू
ऋतू बहार
ये सुन तो
तेरा दिया प्यार ही तो
मेरा मन भरमा रहा है
और क्या चईये मुझको
ऐसे उपहास क्यों करती हो
मेरे दिल को इस तरह से
उदास क्यों करती हो
ये मिस शुक्ला
कोई तेरे जैसा
आजतलक नही मिला
तुझे देखके
मेरा दिल
फूल सा है, खिला
जब जब तुम
घर के आँगन में
दिया जलाओगी
सच उसी लम्हा
मुझे अपने साथ पाओगी
ये गजगामिनी
मन भामिनी
ये जो आशिकों के दिलों को
कदमों तले ,
रौंदती हुयी
बांकी अदा से चलती हो
सच, बागों में फूल खिले न खिले
तुझे देखके
मेरे दिल कि कली खिलती है
ये न सोचना कि
तेरे बिन उदाश हूँ
चाहे कितनी भी दूर रहो
मई तेरे दिलके पास हूँ
बसंत के कितने रंग
ये चांदनी बदन
जितने खिले खिले , तेरे अंग
उतने रंग तेरे अंगों के संग
तुम तो मुस्कराकर
इतराकर
मुर्दों में भी
जान फूंका करती हो
ये तो फिर भी
मेरी लेखनी है
जो, तुम्हारे सन्निन्ध्य से
काव्य-वृस्ति क्र रही है
दिल दिल
दिल करता है
तेरे हाथों को चूम लू
जो, इस वक़त
मेरे कागज संभल रहे है
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