Sunday 2 February 2014

प्रिये 
प्रिये 
फूलों कि तरह 
खिलती कली सी मुस्कराओगी 
नाजनीना 
उसी पल मुझे 
अपने तस्सवुर में पाओगी 

ये तेरा रूप 
सृंगार 
जैसे कि हो कोई ऋतू 
ऋतू बहार 

ये सुन तो 
तेरा दिया प्यार ही तो 
मेरा मन भरमा रहा है 
और क्या चईये मुझको 

ऐसे उपहास क्यों करती हो 
मेरे दिल को इस तरह से 
उदास क्यों करती हो 

ये मिस शुक्ला 
कोई तेरे जैसा 
आजतलक  नही मिला 
तुझे देखके 
मेरा दिल 
फूल सा है, खिला 

जब जब तुम 
घर के आँगन में 
दिया जलाओगी 
सच उसी लम्हा 
मुझे अपने साथ पाओगी 

ये गजगामिनी 
मन भामिनी 
ये जो आशिकों के दिलों को 
कदमों तले ,
रौंदती हुयी 
बांकी अदा से चलती हो 
सच, बागों में फूल खिले न खिले 
तुझे देखके 
मेरे दिल कि कली खिलती है 

ये न सोचना कि 
तेरे बिन उदाश हूँ 
चाहे कितनी भी दूर रहो 
मई तेरे दिलके पास हूँ 

बसंत के कितने रंग 
ये चांदनी बदन 
जितने खिले खिले , तेरे अंग 
उतने रंग तेरे अंगों के संग 

तुम तो मुस्कराकर 
इतराकर 
मुर्दों में भी 
जान फूंका करती हो 
ये तो फिर भी 
मेरी लेखनी है 
जो, तुम्हारे सन्निन्ध्य से 
काव्य-वृस्ति क्र रही है 

दिल दिल 
दिल करता है 
तेरे हाथों को चूम लू 
जो, इस वक़त 
मेरे कागज संभल रहे है 


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