जबसे
जबसे
जबसे
जब
जब धरती पर बसंत आता है
धरती कुछ अक्षांस घूमती है
सूर्य कि किरणे धरा पर
सीधी पढ़ने लगती है
फूलों कि पंखड़ियाँ खिलती है
फागुन कि मस्ती हवाओं में घुलती है
पर मन चांदनी रातों में और ज्यादा उदास हो जाता है
जब मन चकोर ,अपनी प्रियतमा
चाँद के पास हो जाता है
वो, बीते लम्हों कि स्मृति में खो जाता है
जबसे
जबसे
जब
जब धरती पर बसंत आता है
धरती कुछ अक्षांस घूमती है
सूर्य कि किरणे धरा पर
सीधी पढ़ने लगती है
फूलों कि पंखड़ियाँ खिलती है
फागुन कि मस्ती हवाओं में घुलती है
पर मन चांदनी रातों में और ज्यादा उदास हो जाता है
जब मन चकोर ,अपनी प्रियतमा
चाँद के पास हो जाता है
वो, बीते लम्हों कि स्मृति में खो जाता है
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