Wednesday 4 June 2014

बनारस की बयार 
पता है, तेरा इत्र के चलना 
मचलना ठिठकना 
और तेरी चितवन से 
जाने कितनों का आहें भरना 
बनारस की बयार 
जब तेरी उम्र हुई सुकुमार 
तेरे इर्द गिर्द नज़रें आरपार 
आशिकों के हुजूम अपर 
बेशुमार 
जैसे निचे पान की दूकान 
उप्र गोरी का मकान 
ऐसे तेरे विहँसती आँखों का उपहास 
जो, न देखे 
उसका उपवास 
ऐसा रूप तेरा 
सरस सलोना 
तू, जन्हा रुक जाती 
संवर जाता गली का वो कोना 
और तेरा सखियों संग 
गलबाही डालके चलना 
बीच में हंसी ककी फुहारें 
भिगोती घर का कोना कोना 
तेरी दादी लगती तुझे 
काजल का दिधोना 
और तेरी उझकती नज़रें मचाती 
जाने कितने शरारत के बवाल तू कभी सहेली का हाथ थाम बतियाती 
कभी रेलिंग पर हंसकर झुक जाती सच, तू जिधर से भी निकल जाती 
सुकुमारी , कहर ढाती 

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