ग्रीष्म की साँझ में जब आँखे खुलती है
तो , इस प्रदेश में भी
याद आता है
बचपन का बुआजी का घर
जब दोपहर ढलते
नींद खुलती थी
और डूबता सूरज की रौशनी
दलन में भरी होती थी
वो, औचक्क दृश्य
आज भी चौकता है
तो , इस प्रदेश में भी
याद आता है
बचपन का बुआजी का घर
जब दोपहर ढलते
नींद खुलती थी
और डूबता सूरज की रौशनी
दलन में भरी होती थी
वो, औचक्क दृश्य
आज भी चौकता है
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