Thursday 5 June 2014

ग्रीष्म की साँझ में जब आँखे खुलती है 
तो , इस प्रदेश में भी 
याद आता है 
बचपन का बुआजी का घर 
जब दोपहर ढलते 
नींद खुलती थी 
और डूबता सूरज की रौशनी 
दलन में भरी होती थी 
वो, औचक्क दृश्य 
आज भी चौकता है 

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