Saturday 12 July 2014

जबसे रम्भा की शादी हुई 
मन्नू सन्याशी हो गए 
रोज लोटा भर जल लेकर गंगा में चढ़ाते 
और कहते 
गंगा जी आप रम्भा जी का ख्याल रखे 
एक दिन उसी रस्ते से रम्भा भी दीपदान करने पहुंची 
मन्नू जी लोटे में जल लिए सर निचा किये जा रहे 
रम्भा ने बहुत चाहा की वो देखे 
सर उठाये 
पर मन्नू अपने में मग्न थे 
रम्भा को बहुत चिढ आई 
अरे सामने हूँ 
नज़र उठाके तो देख लो 
जाने कब मिले न मिले 
मन्नू बोले, प्राण-प्यारी 
देख तो लू 
पर तुझे मेरी इतने दिन की नज़र लग गयी तो 
या तेरा रूप देख मुझे मोह आ गया तो 
जा, जल्दी दूर जा 
पहले से विरक्त मन को और मत शता 
सच रम्भा की आँखों से आंसू बहने लगे 
पर फिरसे इश्क न हो जाये 
इश्लीए मन्नू ने नज़र उठाके नही देखा 
पता था जब दूर ही रहना है 
तो, क्यों देखे 
और विरक्त हुए मनको क्यों झुलसाए 

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