जबसे रम्भा की शादी हुई
मन्नू सन्याशी हो गए
रोज लोटा भर जल लेकर गंगा में चढ़ाते
और कहते
गंगा जी आप रम्भा जी का ख्याल रखे
एक दिन उसी रस्ते से रम्भा भी दीपदान करने पहुंची
मन्नू जी लोटे में जल लिए सर निचा किये जा रहे
रम्भा ने बहुत चाहा की वो देखे
सर उठाये
पर मन्नू अपने में मग्न थे
रम्भा को बहुत चिढ आई
अरे सामने हूँ
नज़र उठाके तो देख लो
जाने कब मिले न मिले
मन्नू बोले, प्राण-प्यारी
देख तो लू
पर तुझे मेरी इतने दिन की नज़र लग गयी तो
या तेरा रूप देख मुझे मोह आ गया तो
जा, जल्दी दूर जा
पहले से विरक्त मन को और मत शता
सच रम्भा की आँखों से आंसू बहने लगे
पर फिरसे इश्क न हो जाये
इश्लीए मन्नू ने नज़र उठाके नही देखा
पता था जब दूर ही रहना है
तो, क्यों देखे
और विरक्त हुए मनको क्यों झुलसाए
मन्नू सन्याशी हो गए
रोज लोटा भर जल लेकर गंगा में चढ़ाते
और कहते
गंगा जी आप रम्भा जी का ख्याल रखे
एक दिन उसी रस्ते से रम्भा भी दीपदान करने पहुंची
मन्नू जी लोटे में जल लिए सर निचा किये जा रहे
रम्भा ने बहुत चाहा की वो देखे
सर उठाये
पर मन्नू अपने में मग्न थे
रम्भा को बहुत चिढ आई
अरे सामने हूँ
नज़र उठाके तो देख लो
जाने कब मिले न मिले
मन्नू बोले, प्राण-प्यारी
देख तो लू
पर तुझे मेरी इतने दिन की नज़र लग गयी तो
या तेरा रूप देख मुझे मोह आ गया तो
जा, जल्दी दूर जा
पहले से विरक्त मन को और मत शता
सच रम्भा की आँखों से आंसू बहने लगे
पर फिरसे इश्क न हो जाये
इश्लीए मन्नू ने नज़र उठाके नही देखा
पता था जब दूर ही रहना है
तो, क्यों देखे
और विरक्त हुए मनको क्यों झुलसाए
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