Monday 14 July 2014

आखिर ससुराल जाने के पहले रम्भा ने एक बार मन्नू को घर के पीछे के बाग़ में बुलाई 
वंही तो दोनों बचपन में साथ में खेल करते था 
मन्नू ने नज़रे निचे किये पूछा , क्यों बुलाई हो। । रम्भा ने बताई , वो जा रही है 
रम्भा--हम आज निकल रही है , आपसे एक विनती है, आप घर बसा लो 
मन्नू--उसके लायक जुगाड़ होगा तो, नहीं करेंगे क्या। ज़ रही हो, कब लौटोगी 
तभी रंजू आ गयी ---बोली, दी, आपको सब वंहा ढूढ रहे, निकलो ,
मन्नू से बोली--ससुराल जाती लड़कियां लौटने के खातिर नही जाती, अब वो बचवा के होने पर आएगी, …क्य करोगे 
वो, वक़्त चले गया। …ज्ब साथ था, अब दुरी है, क्या करोगे, दी, को याद रख्के… क्या दे सकते हो, उसे 
जो, इतना भावुक होक पूछ रहे हो। 
रम्भा एक साँस में काः गयी, फिर बोलि।मै दी को बिदकर शाम मिलती। .वओ जीजू की कार से जा रही है, उसके बहुत ठाट है, आप उसे क्या दे सकते थे , उसके सूट देखे , कितने है 
मन्नू  लौटा ,  झोपडी में में   निकला , निकाला  
मन्नू  हो, गंगा के किनारे    

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