केदारनाथ
केदारनाथ सिंह की कविता
बनारस मुझे बहुत प्रिय है
किन्तु, उसे यंहा लिख नही सकी हूँ
बनारस पर और भी पोएम देख रही हु बनारस की बयार
आखिर वो आपका शहर है
मेरे पास जब पैसे होंगे
तो, मई वंही घूमूंगी और मेरे पास होगा
एक कैमरा
बीएस, होगी , कोई पहचान
तब, मई बनारस को
विस्फारित नैनों से
साँझ की गोधूलि में
धुंदलाते
और तारों की छाँह में
किसी नव-वधु की भांति
उभरते
देखूंगी
केदारनाथ सिंह की कविता
बनारस मुझे बहुत प्रिय है
किन्तु, उसे यंहा लिख नही सकी हूँ
बनारस पर और भी पोएम देख रही हु बनारस की बयार
आखिर वो आपका शहर है
मेरे पास जब पैसे होंगे
तो, मई वंही घूमूंगी और मेरे पास होगा
एक कैमरा
बीएस, होगी , कोई पहचान
तब, मई बनारस को
विस्फारित नैनों से
साँझ की गोधूलि में
धुंदलाते
और तारों की छाँह में
किसी नव-वधु की भांति
उभरते
देखूंगी
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