रोजाना ऐसी बात नही होती
कि सब आपको देखे या सुने
आपको एकांत भी झेलना होता है
फिर एक लम्बा एकांत और अपने
में डूबा सृजन ही अपना साथी
मई भी ऐसी ऊंघती सृजनता में
अपनी ही बात में घूमती
तबतक नया उच्च नही पाती
जबतक नया न पढ़ा जाए
लेकिन उसका कोई अवसर नहीं
कितने बरसों से
मनपसंद कोई किताब नहीं पढ़ी
न लिख सकी
पढ़ना छह रही थी
निर्मल वर्मा को
किसी पहाड़ी किताब को या शिवानी की कोई
बांकी सी नावेल
कि सब आपको देखे या सुने
आपको एकांत भी झेलना होता है
फिर एक लम्बा एकांत और अपने
में डूबा सृजन ही अपना साथी
मई भी ऐसी ऊंघती सृजनता में
अपनी ही बात में घूमती
तबतक नया उच्च नही पाती
जबतक नया न पढ़ा जाए
लेकिन उसका कोई अवसर नहीं
कितने बरसों से
मनपसंद कोई किताब नहीं पढ़ी
न लिख सकी
पढ़ना छह रही थी
निर्मल वर्मा को
किसी पहाड़ी किताब को या शिवानी की कोई
बांकी सी नावेल
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