Tuesday 1 March 2016

रोजाना ऐसी बात नही होती
कि सब आपको देखे या सुने
आपको एकांत भी झेलना होता है
फिर एक लम्बा एकांत और अपने
में डूबा सृजन ही अपना साथी
मई भी ऐसी ऊंघती सृजनता में
अपनी ही बात में घूमती
तबतक नया उच्च नही पाती
जबतक नया न पढ़ा जाए
लेकिन उसका कोई अवसर नहीं
कितने बरसों से
मनपसंद कोई किताब नहीं पढ़ी
न लिख सकी
पढ़ना छह रही थी
निर्मल वर्मा को
किसी पहाड़ी किताब को या शिवानी की कोई
बांकी सी नावेल 

No comments:

Post a Comment