Saturday 1 February 2014

रंग 
रंग तो उतने ही है 
किन्तु, तेरा साथ हमेशा 
रंगो के संग न्य होता है 
तेरा सन्निन्ध्य 
रंगों में भी न्य रंग भरता है 

क्यों 
क्यों 
क्यों ये लगता रहा कि 
तुम हर लम्हा साथ हो 
दिल के बहुत करीब 
बहुत पास हो

जंहा सुनहरा रंग 
असमान में बिखर रहा होगा 
तारे झिलमिला रहे होंगे 
चाँद चमक रहा होगा 
सितारों के बिच 
चांदनी में तुम मिलना 
फूल कि तरह ज्योत्स्ना 
तुम फिरसे खिलना 

 तुम्हारा 
तुम्हारा ये चन्दन सा रंग 
तुम्हारा केसर सा संग 

जब तुम मुझसे दूर गयी तो 
अपनी चुनर में बांधके 
जो ले गयी 
बांधके बहुत कुछ ले गयी 
देखना उसे संभल के रखना 
उनमे कंही मेरा दिल होगा 

एकांत नीरव रातों कि 
अपने आपसे बातों कि 
तेरे सिवाय , फिर से 
कोई वजह नही थी 

सधस्नाता 
सद्यस्नाता 
ये जो भोर में 
नहाकर 
तुम डिवॉन को अर्ध्य देती हो 
देवो को जल चढ़ाती हो 
सच वो आकर मुझपर ही 
तो, गिरता है 

कैसे कह्दुन कि ख्वाबों में 
तुझसे मुलाकाते नही होती 
सबसे चुपके 
चोरीसे बातें नही होती 

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