Friday 26 December 2014

mannu ka jwab

ये
ये एक चिट्ठी हमारे हाथ लगी है 
चिट्ठी क्या है,
किसी के दिल का क़तरा है 
ये शायद मन्नू ने लिखी है 
क्या लिखा है, देखे तो 
                                       
मन्नू ने लिखा है 

रम्भा रानी 
गंगा किनारे आके मिलोगी , जानेमन 
तो, क्या कम हो जायेगा , तुम्हारा वजन 
तुम्हारा मन्नू 
                                           
अब तो, मन्नू की खैर नही 
ईश्वर उसकी मदद करेंगे 
iske bad se rambha naraj h
मन्नू ने रम्भा को बहुत मनाया 
की , जानेमन , ंबतों को ज्यादा तूल मत दो 
फिरसे, एक बार मुझे 
मुस्कराकर फूल कहो 
                                          
अब हुआ ये कि 
रम्भा रानी पीछे 
और मन्नू आगे 
वो, भागते जाये 
और कहते जाये 
रम्भा रानी  तुमको , देखकर 
मुंह में आता है पानी 
रम्भा बोली ठहर जाओ 
मिटाती हूँ तुम्हारी नादानी 
मन्नू बोले, तुम तो हो 
गंगा जी का बहता हुआ पानी 
रम्भा बोली, रंजू 
लेजाकर , उसके सर पर डालो 
मेरी संदल की धूल 
नामाकूल  की आशिकी 
जाएगी धूल 
मन्नू , ने पूछा 
क्या हम है cool
(इश्के आगे की कथा कल )
itna hone pr bhi
mannu ne fir chitthi likhi
jaaneman,
ye tumhara
ksa-ksa fnsa badan
इस पत्र को पाकर रम्भा ने 
मन्नू की वो धुलाई की कि 
पूछो मत। ……। 
ठीक किया रम्भा रानी 
मन्नू जैसों से तो, ऐसे ही निपटना चाहिए 
ki, usne aapke figur ki glt tarif kr di 
ksa to kha, fnsa fnsa badan bhi kaha 
mtlab, jo vstron me fns jaye......
aapne knhi glt to nhi samjh liya mannu ki dhunai hogyi hai 
aur rambha ji apne vstron ki silai udhad rahi haikoi, esi kavita na kre 
लेकिन मन्नू की ठुकाई यंहा नही रुकी 
रम्भा की दादी ने भी सिख दे दी 
कि वो, उनकी नातिन की सेहत को नज़र लगते है 
बुरी नज़र वालों से रम्भा को बचाओ , प्रभु 
मन्नू , गंगा-तट पर ये प्रार्थना करते दिखे
                                                                  
मन्नू ने इतनी धुनाई के बाद भी 
रम्भा पर कविता लिख ही डाली 
इस बार लिखा 
जानेमन 
ये तुम्हारा 
कसा कसा 
वस्त्रों में फंसा फंसा 
दिल में बसा बसा 
बदन। ……… 
                            
 क्या लिखना था 
ये मन्नू को याद  रहा 
आखिर कविता लिखना 
कोई   खेल तो नही। ……।  
                                               
kavita ki demond thi 
इश्लीए मन्नू ने लिखा 
रम्भा , आप कौन सी चक्की का 
आटा  खाती हो 
इसपर रम्भा का पारा उप्र ऊपर 
वो बोली 
रंजू, इस गब्बर सिंग को 
तुम जाकर आटा खिला दो 
इसपर रंजू ने मन्नू को 
आटे से नहला दिया 
मन्नू बोला ये क्या करती हो 
कोई, आटा खाता है ,क्या 
रम्भा बोली , रुको ,
तुम्हे आकर बताती हूँ 
इसपर ,मन्नू आटा झाड़ते हुए बोले 
जो, बताना है , जल्दी बता दो 
रम्भा को इतना गुस्सा आया 
की, पूछो मत 
तभी मन्नू ने रंजू से कहा 
आपने हमे आटे से नहला दिया 
चलो, हमारी झोपडी में 
हम इसका बदला चुकाए 
तो, रंजू को बहुत संकोच हुआ 
मन्नू ने समझकर कहा 
आप गलत नहीं समझिए 
आपको पार्टी देना चाहते है 
आपको अंडे खिलाएंगे 
इसपर , रंजू बोली की 
हम शुद्ध शाकाहारी है 
अंडे नही खाते 
मन्नू बोले, हम भी वेग वेज ही खिलाएंगे 
आना , वंही, जन्हा 
हमारे आंसू पोछने आई थी 
रंजू, पहुँच गयी 
उसी झोपडी में 
मन्नू ने बड़े प्यार व् स्नेह से 
दो, अंडे प्लेट में सामने रख दिए 
रंजू ने सवाल किया 
ये क्या है 
मन्नू ने बताया 
ये है, आटे के बने 
वेजेटेरियन अंडे 
इसपर रंजू ने कहा 
चलती हूँ 
अंडे से याद आया 
अर्चना की मुर्गी ने मेरी अंगूठी खा ली थी 
उसे लाना है 
मन्नू बोले, मई भी चलूँगा 
आपकी मदद करने 
तबतक, अर्चना आ गयी 
बोली, दी ,आपकी अंगूठी मिल गयी है 
लीजिये 
और दोनों चली गयी 
फिरसे 
मन्नू देखते रहे 
और, रम्भा को याद करते रहे 
क्या गाते रहे 
ये, कल, याद आने पर। ……। 
फिरसे मन्नू ने रंजू से बात की 
कि वो, जो आटे के अंडे थे 
वो, गलत कह गए 
वो, पनीर के थे 
रंजू ने गुस्से से कहा 
आप मेरे पेट की वाट लगा रहे थे 
मन्नू बोले , अरे नही , वो तो 
मई उप्र से आपको नमक मिर्च खिलाने  वाला थे  
रंजू ने धमकी दी 
आपकी शरारत , रम्भा से बताउंगी 
मन्नू ने कहा ,
अरे, उन्हें क्यों, परेशान करती हो 
वे अपने घर में व्यस्त है 
आप  आप हमारे संग बिजी हो जाइए 
रंजू ने तो गुस्से में 
अपने होठ चबा डाले 
ये किस सिरफिरे से बात में लग गयी 
बस यंहा से आगे की गुफ्त-गु याद आने पर 
                                              
mannu apne 
मन्नू अपने तबेले में काम कर रहा है कि 
रंजू आ जाती है 
मन्नू अपने तबेले की सफाई के साथ गा  भी रहा है 
गोरी गोरी की, चटक चुनरिया 
मने नही मन्नू का जियरा 
तभी रंजू, हूँ कहते हुए सामने से आती है 
की गोबर पर पांव रखने से 
गिरने लगती है 
मन्नू उसे संभालता है 
मन्नू--ये क्या , आप गिरेगी तो…… 
रंजू के हाथ में कुछ है 
वो, उसे संभाले है 
मन्नू लाईये क्या है 
रंजू--रम्भा के पेटीकोट है वो, आने वाली है 
तो, इधर गंगा किनारे धोने लायी थी 
मन्नू झपट कर वो, पैकेट लेता है 
मन्नू-- आह, इन्हे हम जानते है 
पैकेट को कलेजे से लगाकर 
ऐसा करिये , आप इन्हे हमें दे दीजिये 
हम धोकर कल दे देंगे 
रंजू-- क्य....... 
मन्नू---अरे हाँ, हम सच कहते है.... 
वो, क्या है, की स्त्री भी कर देंगे 
रंजू --ठीक है, कल, इतने वक़्त ही लेने आउन.... 
मन्नू ---हं.... 
रंजू अगले दिन उसी वक़्त आती है 
मन्नू काम में लगे है 
मन्नू गा रहे है 
गोरी गोरी की चटक चुनरिया 
मदेखकर , माने नही, मन्नू का मनवा। .... 
रंजू--हूँ,.... 
मन्नू-अरे अ गयी आप 
रनजु… हाँ, कहा है, वो पेटीकोट 
मन्नू--- अरे  देख नही रही , वो सामने सुखाये है 
रंजू---कहां। … 
मन्नू सामने इशारा करके ---वो रहे 
ranju चीख कर----वो तो गोबर में लथड़ी तात है ,
रम्भा के पेटीकोट में तो सितारे लगे है 
मन्नू ---ये ऐसे ही हो गए है 
रंजू गुस्सा होकर-- गोबर में लपेटकर सुख दिए हो 
सत्यानाश कर दिए, इतने महंगे पेटीकोट का 
मन्नू मनाते हुए ---देखो, अभी बाजार चलो, हम एक दर्जन भर 
घाघरे  ले देंगे 
रंजू मुंह बनती है 
मन्नू -बस एक मिनट में हम तैयार होकर आते है 
कुछ देर में मन्नू रेडी होकर आते है 
उसे देखकर रंजू को हंसी आ जाती है 
मन्नू चस्मा लगाकर ---देखो हंसो नही, हमने ये बैल-बाटम राजेश खन्ना 
से खरीदी है , आओ, हमारी फ़टफ़टिाया से चलते है 
मन्नू बाइक पर बैठकर रंजू को बैठने कहते है 
रंजू जरा सी दुरी रखकर बैठती है 
मन्नू-----हम स्टार्ट कर रहे है, आप हमे कसकर पकड़ लो, वरना 
पता चलेगा की हम अकेले ही पहुंचे है 
रंजू फिरभी दूर से उसे थामे है 
मन्नू--- अरे, जकड़कर बैठो, हम फर्राटा गाड़ी चलते है 
कुछ देर में  दोनों ही,द्वारपाल नामक दुकान पर पहुँचते है 
मन्नू--- ये है, रम्भा-रानी की फेवरिट शोप…… 
अरे वो, ब्चुअ…। 
तबतक, दुकान के सारे  मन्नू को सास्टांग प्रणाम करते है 
और हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है 
मन्नू--- अबे, इन्हे कौन प्रणाम करेगा, इन्हे भी करो 
सब रम्भा को प्रणाम करते है 
एक लड़का--- लगता है, भाभी जी है 
मन्नू चपत लगते हुए----क्यों बे, तुम्हे, किसी की इज्जत करते नही आती 
कहा है छुटकंवा। .... 
तबतक सेठ छुटकन आ जाते है 
मन्नू को नमस्कार करते है 
मन्नू एक थैले नोट के उड़ेलते हुए 
देखो बे, जल्दी से , अच्छे घाघरे दिखाओ 
एक दर्जन…। 
रंजू---नही, वो, ७ दिन रुकेगी 
मन्नू---ठीक है, ७ घाघरे दिखाओ ,.... और ऐसे हो की उनके  जैसे 
किसीके पास न हो 
कुछ देर में रंजू उन्हें पसंद कर एक ५ पाकेट में रखवाती है 
क्योंकि, वो रम्भा के लिए  लेती है 
छुटकन साथियों संग नोट गिण रहा है 
मन्नू-- गिनते रहो , जो ज्यादा निकले, तो ,
उनके लिए चोली भी लजायेंगे 
और कम निकले तो, १ मःतक , दूध पहुंचाउंगा 
दोनों बाहर आते है 
रंजु.... मुझे भूख लग रही है , घर में दादी भी रह देख रही होगी 
मन्नू---तो, गोल गप्पे खालो। …। 
रंजू---नही मिर्च लगती है,
मन्नू ठीक है, आप राजभोग खा लो,
रंजू मिठाई कहती है 
रंजू---और दादी के लिए मन्नू-- 
मन्नू --उनके लिए सिर्फ ५० ग्राम राबड़ी रख लो 
रंजू--बीएस,इतनी सी 
मन्नू-- और क्या, चलो , पहुंचा देते है 
मन्नू रंजू को उनके घर ले जाते है 
रंजू उतरती है , मन्नू सरे पैकेट उसे देते हुए 
मन्नू-- देखो, रम्भा को पसंद आये तो हमे बताना 
और उसकी मोबाइल पर पिक्चर लेकर रखना 
तभी दादी की आवाज आती है ---कौन है 
और , मन्नू निकल लेते है 
                                               
अगले दिन मन्नू 
मन्नू रम्भा के घर जाते है 
रम्भा आई है 
तो,रंजू ने उसे बुलाया 
मन्नू जब रम्भा सामने के कक्ष में आती है 
उसने वो, घाघरा पहने हुए है 
जो, मन्नू लए है लेकिन 
बाकि हाथ में रखे है 
रम्भा--कैसे है, आप 
और, इतने घाघरे क्यों ले रखे है 
हम, इन्हे नही ले सकेंगे 
आप इन्हे वापस कर दीजिये 
मन्नू--- लेकिन, ये एक, जो पहने हुए हो। । रम्भा--
जी , नही, ये तो आपका मन रखने पहने हूँ 
तब, तो हमे दे दीजिये। …। 
हम, आपकी निशानी रखेंगे 
तभी रंजू आ जाती है ---हु,
ये बात है, रम्भा, इन्होने मुझे सिर्फ एक राजभोग खिलाया 
और ये तक नही कहा की  कि 
तुम भी एकाध चुनर ले लो 
तभी दादी आ जाती है,… रम्भा 
मन्नू को इशारा करती है 
मन्नू खड़े होकर--हुरर्र 
वो, गाने लगता है --
गोरी के गोर गोर गाल 
लगा है, सोलहवां साल। । दादी--
ये रम्भ…ये क्या गए रहा है 
रम्भा--- दादी आपको देखकर छेड़ रहे है 
दादी-- हाँ 
मन्नू--जब, आप बनारस की सड़क पर खड़ी हो जाती थी, तो सड़कों पर जाम 
लग जाता था 
मन्नू को तभी रंजू लेकर चाय देती है 
मन्नू---ये क्या है, सुंदरी, आप जानती है, हम 
सिर्फ कच्चा दूध पिटे है 
रंजू -- अच्छा, समझी , आपका डेयरी फार्म है, 
इसलिए 
मन्नू-- देखिये, हम तबेला वाले है , पैसा कमाने डेयरी नही चलाते 
रंजू---ओह, आपका , मिशन तबेला 
रम्भा---पि लीजिये 
मन्नू--जी नही, हम अपना उसूल नही तोड़ते, जिंदगी भर 
कच्चा दूध पिटे रहे है 
आज चाय पिएंगे तो, कल तबेले में चौक-चूल्हा चलना होगा 
कौन करेगा 
बात बदलकर  मन्नू ने पूछा ---आपका मुन्ना किधर है 
रम्भा--- अरे वो, यंहा आता है , तो दादी के साथ ही रहता है 
वो, मंदिर जाने वाले थे, निकले होंगे 
मन्नू ----ठीक, है , मई भी निकलूं, मेरी भैंसी राह देख रही होगी 
रंजू--रुकिए 
मन्नू---वो, सब मेरे बिना पानी भी नही पिटी 
रम्भा--- जाने दो, उन्हें अपनी गाय -भैंस के बिना अच्छा कहा लगता है 
                                             
अगले दिन मन्नू अपने तबेले में स्वच्छता में लगे है की 
रंजू आ जाती है 
रंजू---लीजिये, ये लड्डू-चिउड़ा-
मन्नू--क्यों, हमारी तपस्या तोड़ रही हो, जानती हो, हम कुछ नही लेते 
रंजू--- रम्भा ने भेजी है, खास आपके लिए 
मन्नू---क्यों वो नही आई 
मन्नू चिउड़ा-लड्डू लेकर माथे से लगता है 
रंजू----नही, वो, सुबह ही अपने गांव चली गयी 
सुनते ही, मन्नू का चेहरा फक हो जाता है 
मन्नू---न्हि…। 
वो, वंही गिर जाता है 
रंजू उसे संभलकर उसपर अपनी chunr se हवा करती है 
मन्नू--- रम्भा ने कल बताया तक नही 
रंजू---वो, आपको, बैठने तो कह रही थी 
इसलिए की आपके संग कुछ देर बिता सके 
मन्नू नही कहकर रोने लगता है 
सारी गाय भैस उसके ओर देखने लगती है 
मन्नू--हमसे ये विरह नही सहा जायेगा , रनजु… हम जा रहे है 
मन्नू गंगा जी की तरफ जाने लगता है 
रंजू--- देखो, हम यंहा अकेले हो जायेंगे। … मन्नू(
मन्नू(रुककर )--देखो, रनजु… …ह्मे मत रोको 
रम्भा के बिना हम नही जी सकेंगे। ।हन। । 
रंजू ---और, तब, आपकी, ये गाय-भैस कैसे जियेगी, इन्हे कौन देखेगा 
मन्नू-सब भाड़ में जाये , रम्भा के बिना , कुछ रुचिकर नही लगता 
रंजू---देखो, मन्नू जी , ये जीवन हमें प्रभु ने दिया है जिस काम के लिए 
हमे जन्म मिला है , हमे वो, करना होगा 
आपको भी इन मुके जानवरों की सेवा करनी है 
मन्नू-- ऊँ , ये जानवर नही है , हमारे परिजन है , रंजू 
रंजू---और, आपके कुछ नही है 
मन्नू---हो, न, आप रम्भा जी की बहन हो 
रंजू---बस। …… इतना ही मानते हो, हमें 
जो, हम रोज आपका दर्द बांटते है, तो 
मन्नू---तो, हम क्या मने, रम्भा की जगह  हो सकता 
रंजू जाने लगती है 
मन्नू--रंजू, आप भी हमसे दूर जाना चाहती हो 
रंजू--- करे क्या , जो कोई हमारी बात न समझे  
रंजू चली जाती है 
और मन्नू उसे टुकुर टुकुर जाते dekhte  जाता है 
                                                             
दिन में मन्नू को रम्भा की बहुत याद आती है 
वो, मक्खन लेकर रंजू के घर जाता है 
रंजू उसे देखकर बिठालती है 
मन्नू उसे मक्ख्हन देता है 
रंजू---ये किसे लगाने लए हो, वो तो यंहा नही है 
मन्नू---तुम्हे बहुत सताया है, माफ़ी चाहते है 
रंजू--रम्भा ने कहा था , कि आपका ख्याल राखु। । मन्नू सर निचक्र बैठ जाता है 
रंजू---देखो, रम्भा ने तुम्हारे लिए क्या दिया है 
मन्नू---हम सोच रहे है, आप हमारे तबेले में आकर रहो 
रंजू---वो, दादी से पूछो 
तभी दादी आ जाती है 
दादी-- कौन है, रंजू,… मन्नू--
मन्नू--९ दादी )के पांव छूकर)----दादी, आपके लिए ये मख्खन है… लाया हूँ,… दादी---
दादी ----ये लगाने की जरुरत नही , तुम रंजू को चाहते हो, तो क्या है, तुम्हारे  तबेले में। … 
मन्नू---कुछ नही है, दादी , बस  हम कच्चा दूध पिटे है 
दादी---- पर रंजू की ग्रस्ति के लिए कुछ तो जोड़ना होगा 
मन्नू---सब कर देंगे, पर रंजू  आने के बाद। … 
दादी----ठीक है, कोई दुःख तो नही डोज उसे। … मन्नू---
मन्नू ---जो, कुछ है, आपके सामने है , बस हम चाहते है की  हमारी लग्न में शिवांजलि अपनी कविता पथ 
पाठ करें 
दादी--ऐसा कभी होता है 
मन्नू--, दादी , वो, शिवांजलि की कविता मन्त्र जैसी होती है न,
दादी--ठीक है, शिवंगुली  कविता ही सही 
मन्नू व् रंजू की लग्न शिवांगुली की कविता पढ़कर सम्पन्न हो जाती है 
रंजू को लेकर मन्नू अपने तबेले में आ जाता है 
रंजू आसपास देखकर ----मन्नू ,हमे यंहा, बहुत डॉ लगता है 
मन्नू--- अरे, पगली , तू हमसे बिलकुल मत दर , ये हमारा तबेला है 
मन्नू फिर अपनी, कजरी व् कमला भैंस व् गौओं से रंजू को मिलता है 
मन्नू--- देख, रंजू, ये है, हमारी कजरी, भैंस , जिसका दूध पीकर हम बड़े हुए है 
और ये है, हमारी कमला, गौरी , शिवानी, गौएँ। … रंजू---
रंजू----ठीक है, कल से गैस-कनेक्शन ले लेना, हमसे कंडे में दूध गर्म करते नही आता 
मन्नू---वो, सब हम कर देंगे 
रंजू---नही, हमारा घर है, घर का काम मई करूंगी 
मन्नू--ठीक है, तुम कल जो मन आये करना, पर आज तो आराम कर लो 
मन्नू रंजू को एक , जगह पर रेशम के गद्दे में आराम करने कहते है 
रेणु--सॉरी , रंजू---ये तो, बहुत मंहगा है 
मन्नू--हमने रम्भा के लिए ये सोचकर लिए थे, की वो, कभी भूलसे हमारे तबेले में आ गयी तो 
कहा , कंहा बैठेगी.... 
रंजू---तो, ये बात है, थोड़े देर के लिए तो,  गोद में भी बैठ जाती जाती 
मन्नू--रम्भा की कभी तुम बेइज्जती मत करना , इतना ध्यान सपने भी रखना 
रंजू गद्दे पर सोते ही, नींद में खो जाती है 
सुबह उठकर देखती है,
मन्नू निचे टाट पर सो रहे है 
रंजू---ये क्या, आप व्न्ह… 
मन्नू-- हाँ, हमने आपको, तबेले में अपने साथ के लिए लए है , आप कुछ गलत मत समझो 
फिर मन्नू सारा दिन अपने तबेले के काम में लग जाते है 
शाम होने लगती है , तो, अपनी गौओं व् भैसों को गंगा जी में धोकर लाते है 
रंजू-- हम सारा दिन  रही , समझ नही आ रहा की, खाए क्या, अब जोरो की भूख लगी है 
मन्नू तैयार होकर आता है , 
मन्नू--चलो, अब आपके काम का सारा सामान  लेट लाते है 
रंजू--आज नही, आज हमे भूख लगी है 
मन्नू--चलो तो, सिर्फ खिला कर लेट है लाते है 
मन्नू रम्भा को अच्छी जगह ले जाकर ठीक से खिलता है 
खिलाता है ,मन्नू उसके लिए कुछ जरुरी सामान भी ले आता है 
मन्नू-- देखो, अपनी  grasthi के लिए कुछ सामान लिए है 
जबतक, गगृहसथी नही जमेगी , रोज इन्ही जगह पर आकर कुछ खाएंगे और सामान भी ले जायेंगे 
                                                      
कुछ दिन बाद वंहा अर्चना आती है , mannu, मन्नू 
मन्नू घरमे काम करते हुए गा रहे है , एक चुम्मा तू, हमको, उधर दे दे 
मन्नू---(काम करते हुए)--रंजू--कौन आई है, बहुत बिजुरिया जैसी चमक रही है 
रंजू----जी, वो, रम्भा की सखी अर्चना आई है 
मन्नू---ठीक है, उसे कुछ खिला दो, हमारी बुराई मत करना --
रंजू और अर्चना बातें कर रहे है 
अर्चना-- कैसे चल रही तुम्हारी, गृहस्थी। ।रम्भ ने पुछवाया है 
रंजू---कुछ नही, यंहा मामला, बहुत ठंडा है ,  वक़्त गाय-भैंसो को सेवा में लगे रहते है 
रंजू---और रात को 
अर्चना(दिल धड़कते हुए)रात को क्या 
रंजू-- रात को रम्भा-चालीसा पढ़कर सो जाते है 
अर्चना---क्य…ऽ 
रंजू---हाँ 
अर्चना--- ऐसा करो, उसे कुछ दिन मेरे साथ कर दो , मई दो दिन में उसे 
ठीक कर दूंगी 
रंजू--- नही दी, वो, जैसे भी है, मेरे है, मई उन्हें तुम्हारे साथ नही करूंगी अर्चना--
अर्चना--(उबासी लेकर)ठीक है, रम्भा से कहु , वो ,मजे में है 
रंजू---जो, जी में आये कहो 
तभी मन्नू आए जाते है 
मन्नू--- प्रणाम, आप रम्भा की सखी है 
अर्चना---हाँ,  ,हमपर दिल आ गया है क्या 
मन्नू--जी नही, ये हमारी तरफसे छोटी सी भेंट है 
अर्चना---क्या 
मन्नू---जी, ये एक पसेरी दूध है 
अर्चना---दूध, क्या करूँ इसका 
मन्नू---तो, , वो, देंगे , जो कहेंगी 
अर्चना(शरारत से मुस्कराकर)---तो, हमे रम्भा-चालीसा दे दीजिये 
मन्नू--- नही वो, तो हम मरकर भी किसीको नही दे सकते 
अर्चना---तो, ऐसा क्यों कहते है की, जो मांगोगी देंगे। … 
मन्नू ----रम्भा जी के शिव कुछ भी मांग लीजिये 
अर्चना---तो, हमे एक पप्पी ही दे दीजिये 
मन्नू ये सुनकर वंहा से चले जाते है 
करन्जू अर्चना को देख रही है 
अर्चना रंजू का हाथ दबाकर---तुम परेशान मत होना, देखो, वो क्या समझता है 
मन्नू कुछ देर में वंहा से , एक बछड़ा लेकर आते है 
मन्नू--ये लीजिये, ये हमारी गौरी गौ का पप्पी है 
अर्चनमुस्करा कर)  गए ,जो ,हम सब समझ गए , आप रंजू को दुःख तो नही देते 
मन्नू--जी, हम चाहते है, की रंजू जब सो जाती है, तब, उसके पांव दबा दें , लेकिन.... 
अर्चना---लेकिन क्या 
मन्नू(सकुचाकर) डर जाते है,  नाराज न हो जाये 
अर्चना---तब तो जिंदगी डॉ-डर के निकल जाएगी, कुछ कीजिये , वे बेचारी। … मन्नू---
मन्नू ---क्या क्रु… कृ करे , ये ही तो, रत दिन सोचते रहते है 
अर्चना---हम चलते है,याद आया, कल, खुबानी के मुन्ने का जन्म दिन है 
वो, आपको फोन क्रेगि… कुछ मंगवाना है, उसे 
ये कहकर अर्चना चले जाती है
                                                                    
अगले दिन खुबानी का फोन रंजू को आया है 
रंजू---सुनिए , खुबानी ने अपने यंहा के लिए , पार्टी में एक  सेर पनीर मंगाया है मन्नू--
मन्नू --तो, भेज दो 
रंजू---वो, कह रही है , बदले में वो, आपको कुछ देगी 
मन्नू ---क्या,.... हमे कुछ नही होना 
रंजू---वो, कहती है, बदले में एक चूम्मा आपको देगी 
मन्नू-- अरे, उसे इतना परेशान होने की जरुरत नही  वो जबतक और जितना चाहेगी, पनीर भेजती रहो 
इतना कहकर , मन्नू काम में लग जाते है 
काम करते हुए गाते जा रहे है , एक चुम्मा तू हमको उधार दे दे 
                                                   सकते है सकते मन्नू थकहार कर रोज अपनी टाट पर सो जाते है 
रंजू अपने रेशमी गद्दे पर सोती है 
मन्नू एकरात अचानक बहुत संकोच से बोले 
मन्नू --देखो, रंजू , क्या हमें, एक काम की इजाजत दोगी 
तो, रंजू सवालिया निगाह से देखती है, कि जाने क्या मांग ले 
मन्नू-हम, क्या, तुम्हारे चरण-चाँप सकते है 
सुनकर , रंजू अपने पांव को छूकर कहती है ---क्या, इससे हमें दर्द नही होगा ,
मन्नू--अरे नही, तुम्हे आराम मिलेगा 
रंजू--कैसे , यदि, आप हमारे पांव चबोगे तो 
मन्नू रंजू के गालों को छूकर ---नही, चरण दबाने से दर्द नही होगा, आपको आराम होगा 
रंजू --लेकिन, काम तो , आप करते है मन्नू--
मन्नू--हम काम करते है , किन्तु, दर्द तो आपको होता है , बोलो, इजाजत दोगी 
रंजू ठीक , जो आपकी मर्जी कहकर सो जाती है 
सुबह रंजू उठती है, तो ,पाती है, की , मन्नू ने उसके पांव दबाये और , वंही, वो सो गए, उसके 
पांवो , पर सर रखकर। …… 
रंजू अपने पांव धीमे से छुड़ाकर हटती है 
                                                                       
अगले रात को , रंजू कहती है , की 
रेणु- सॉरी , रंजू। .-- वो कहती है, की उसे डर लगता है, क्या मन्नू उसके गद्दे पर सो सकते है 
मन्नू--लेकिन, उससे तो, बच्चा हो जाता है 
रंजू--तो, क्या हुआ, हम चाहते है , हमे भी साथ मिले, आप जैसा 
मन्नू जरासा बचकर संभलकर सो जाते है, की बेचारी रंजू को दूसरा डर न लगे, या उसकी कोई बेइज्जती न 
हो, जाये , वे दोनों , अपनी हद में बचते हुए सोये होते है , कि आधी रात को , एक बच्चे के रोने की 
आवाज आ टी है , आती है, जिसे सुनकर, मन्नू चौंक कर उठ जाते है 
मन्नू---रंजू, आप क्यों रो रही , क्या, सपने देख रही है 
रंजू--इन्ही, तो हम आपसे जानना  चाहते है 
मन्नू उठकर , निचे देखते है 
पलंग के निचे एक प्यारा सा बच्चा रो रहा होता है 
मन्नू-(बच्चे को गोद में लेकर )देखो, रम्भा जैसा बच्च…। 
रंजू---ये तो, कृष्ण जैसा है 
मन्नू---हम, इसे किशन कहेंगे 
                                                             
दोनों, अपने नए बच्चे को लेकर दादी के पास जाते है 
दादी को हैरानी होती है 
रंजू बच्चे को दादी की गोद में रखती है 
बच्चा उनकी गोद में जाते ही दूध पिने लगता है 
मन्नू--दादी , ये ऐसा ही है , देखो, कितना शरीर है, कंही भी मुंह मरने लगता है 
दादी-- क्य… 
मन्नू--ओ, कंही भी बड़े बड़े देखता है, तो पीने लगता है 
दादी ये सुनकर, मन्नू को इतना मारती है, की रंजू 
बहुत मुश्किल से किशन व् मन्नू को बचाकर अपने घर वापस लाती है 
                                                         
अगली सुबह , रंजू 
अगले दिन सुबह रंजू को रम्भा का फोन आता है 
-रम्भा---रंजू, क्या हुआ, सुना है , की कोई तमाशा हुआ है 
रंजू---क्या बताऊँ, दादी को, मन्नू ने छेड़ दिए ,तब से वो, नाराज है 
रम्भा---ऐसा क्या कह दिए, 
रंजू (सकुचाकर)---वंही, कुछ भी , दादी ने अपनी सोटी से पिटाई लगा दी है 
रम्भा--- इतना भी नही सह सके,
रंजू--सह लेते, फिर दादी से माफ़ी मांगने उसके पांव पकड़ लिए , तभी दादी को छींक आ गयी, और, वो ,
मन्नू पर गिर गयी 
रम्भा---ओह, ऐसा करो , ऐसी दवा बताती हु, की दवा भी हो जाये और, उन्हें सबक भी मिल जाए 
रंजू---बताओ, बहुत बड़े बड़े चिल्लाते है, मई भी परेशान हु , अच्छा किया जो दादी ने पिटाई की 
रम्भा--तुम तो, उसे जन्हा लगा हो, वंहा ईंट गर्मकर सिकाई कर दो , सब ठीक हो जायेंगे 
रंजू सुनकर , फोन रखती है, और , लेककर ईंट गर्म कर मन्नू के पास लती है 
उसे कहती है, गमछा हटाओ, और गर्म ईंट रख देती है 
बेचारे मन्नू बिलबिलाकर रंजू के पांव पकड़कर कहते है की, 
मन्नू---मुझे माफ़ कर दो, न, तो, दादी को, न, रम्भा को ऐसा  कहूँगा 
रंजू---लेकिन, आप कहते क्या है, मुझे तो, मालूम नही 
मन्नू---(दर्द से तड़पते हुए)---कुछ नही, बस इन्ही कहा की, बड़े प्यारे है। … 
रंजू---इसमें क्या बुराई है 
मन्नू--- हाँ, क्या खराबी है 
रंजू को ध्यान आता है, तो, वो कहती है , ---और गर्मकर लॉन, ईंट को 
मन्नू रंजू के पांव पकड़कर ---नही, कभी नही कहेंगे। ………। 
                                                                                           
मन्नू  बाजार हॉट जाते है , जँहा उन्हें भालेराओ मिलते है 
मन्नू--(पांव छूकर)अरे दद्दू , आप 
भालेराओ ----अरे बचुआ , कबसे तोहे ढूंढ रहे है 
मन्नू-(उनके थैले गठरी को लेकर)---चलो, हमारे तबेले में। …। 
मन्नू भालेराव को लेकर घर आता है 
भालेराव को रंजू छाछ लाकर  देती है 
भालेराव (छाछ पीकर)--आह, तबियत खुश हो गयी , तुमने घर बसा लिया, हमे खबर  नही 
मन्नू(उसे आराम के लिए तकिया देकर)--दद्दू आराम करो, इन्ही रहो। । भालेराव 
भालेराव-(वंही आराम करते हुए)---बचुआ , तुम से दिल की बात 
 मन्नू(भालेराव पांव दबाते हुए)---बताईये , मई क्या सेवा कर सकता हु,
भालेराव---कहने में अच्छा नही लगता, पर हम अपने लिए, एक जीवन-संगिनी चाहते है 
मन्नू (गिरते गिरते बचता है)---पर, दद्दू , जिंदगी भर तो,  जैसे रहे , अब कोई रांडा बर्न ही मिलेगी 
भालेराव---(मिन्नत करते हुए)--- देखोगे तो, मिल जाएगी,ये तुम्हारी। ।क्य नाम है, उसका 
मन्नू (उछलकर)--अच्छा आईडिया है, दद्दू, इसकी दादी है, उसे देख लो 
भलेराओ (चलने को उद्धत होते हुए)--चलो, अभी। … मन्नू 
मन्नू---नही ऐसे नही जरा बन संवरकर उसके सामने जाना--
भालेराव--(अधीर होकर)---मगर, कहा 
मन्नू--चलो तो, गंगा किनारे के मंदिर में, वो वंही आती है , रोज आरती लेकर 
मन्नू भालेराव को ठीकठाक करके , उसे ठीक से कपडे पहना कर , उस मंदिर के सामने खड़े हो जाते है 
जन्हा रंजू की दादी आती है 
ज्यों ही, वो, आती है , मन्नू भालेराव को दादी के सामने धकेलकर गिरा देते है 
और मन्नू वंहा से हटकर, दूर से उन्हें देखते है 
दादी(चिढ़कर)कौन, मुआ है, जो हमारे सामने गिर गया है 
भालेराव मुश्किल से उठता है उठता है, तो, दादी की नज़र उसपर पड़ती है 
दादी--(होकर)--भालू तुम,… 
भालेराव(देखते हुए)---पारो , आप हो 
दादी---देखो, हमे ऐसे  नाम से मत पुकारो 
भालेराव---लेकिन, पारो, तुम्हे याद है , हमने पूछा था, की क्या तुम्हारी सगाई हो गयी , तो,  शरमाकर भाग गयी थी , फिर तुम कभी नही मिली, 
दादी---लेकिन, तुम भी तो नही दिखे 
भालेराव--दीखते कैसे, हमतो , गांव लौट गए थे, उसी वक़्त , जब तुमने , हाँ, तुम्हरी सगाई हो गयी। .... 
दोनों एक और पत्थर पर बैठकर जाने क्या बातें करते रहते है 
मन्नू खड़े खड़े परेशान हो जाता है ,तो, पास आता है 
मन्नू को देखकर, दादी शरमाकर घूँघट दाल लेती है 
मन्नू-----तो, ये बात है, पुराण पुराना याराना लगता है 
दादी---भलु…ये गब्बर सिंग कौन है 
मन्नू---दादी- अभी बताये, हम कौन है , वो, ईंट की सिकाई, सच अभीतक तड़फड़ाते है 
दादी --देखो, माफ़ कर दो,
मन्नू--ठीक है, हम जा रहे है , आज जितना चाहे बतिया लो, कल, हम भालू बाबा को उनकी गठरी सहित 
उनके गांव पार्सल कर देंगे ,
कहकर मन्नू उन्हें बातें करते हुए छोड़कर चले जाता है 
                                                                          
ranju apne 
घर में रंजू मुन्ने को लेकर सुला रही थी की मन्नू बाहर से  हुए आते है 
रंजू--(चौंक कर )--क्या हुआ 
मन्नू--(हाथ में बाटली नचाकर)चंद्रमुखी। …आज वो, हुआ जो नही होना था 
रंजू--तुम ये क्या कर रहे हो 
मन्नू---तुम क्या कर रही हो 
रंजू_९मुन्ने को गोद में छिपाकर )--हम मुन्ने को पिला रहे है 
मन्नू--हूँ,जब देखो, उसे ही खिलाती-पिलाती रहती हो 
रंजू---कैसी बात करते है 
मन्नू---क्या गलत कहता हूँ,जब देखो, किशनवा को पिला रही हो 
रंजू किशन को बिस्तर पर सुला देती है 
रंजू भीतर जाने लगति है 
मन्नू---अब, कहा चल दी 
रंजू--आपके लिए, सुराही में पानी लाने 
और रंजू भीतर से सुराही में पानी लेकर मन्नू पर दाल देती है 
मन्नू---अरे इतनी ठण्ड में भिगो दी , अब चलो गर्म करो 
रंजू--रुकिए, हम आग जलाकर लती है 
मन्नू---जिसके दिल में आग लगी हो, उसे क्या आग जलाकर गर्म करोगी 
रंजू--ये उलटी बातें क्यों करते हो, लो अपना गमछा। .... 
मन्नू--देखो, हम भीतर जाकर कपडे बदलते है, यदि, वो बुढ़ऊ आये 
रंजू---किसे कह रहे हो 
मन्नू--उसे ही, जिसने डेरा डाला है 
रंजू---क्या हो गया, दद्दू तो, अभी रुकेंगे 
मन्नू भीतर से-----नही, उसकी गठरी अभी फेंकता हूँ रंजू--क्यों,
मन्नू--अरे, वो, तुम्हारी दादी से नैन-मट्क्का कर रहा है। । रंजू--
रंजू--क्या बकते हो 
मन्नू--देख लेना अपनी आँखों से , तुम्हारी दादी को भगाकर ले जायेगा , फिर किसीको मुंह दिखने लायक नही रहोगी 
तभी , भालेराव सिटी बजाते आते है 
मन्नू---उसे देखते हुए)--ये क्या टी शर्ट पहने हो, और ये जींस। । भालेराव---
भालेराव---(अपने बालों को स्टइल से झटके देकर )ये हमे पारो ने दिए है 
मन्नू---कहा से दे दिए भालेराव(
भालू--अरे वो, द्वारपाल से लेकर दिए 
मन्नू(सर पकड़कर)--हे, भगवन, हमने छुटकन से कहे थे, दादी को जरुरत हो, तो उन्हें शाल शालू वगेरह दे देना, ये आशिक को देने हमपर उधारी 
मन्नू---(गुस्से में)--चलो, ये उतरकर, हमे दे दो, अपनी फ़टी धोती पहनो, और स्टेशन का रास्ता नपो…। 
भालेराव---अरे, ये हमारी पारो ,की निशानी है 
मन्नू(गठरी फेंकते हुए)---समझो की, ख़त्म हो रही, तुम्हारी कहानी है 
मन्नू---चलो निक्लो…। 
भालेराव बहुत दुखी होकर गठरी उठकर जाने लगते है 
रंजू (भीतर से खाना लेकर आती है)० दद्दू, ये डब्बा लो, रेल में खा लीजिये 
भालेराव बहुत ही कतर होकर देखते निकलते है 
मन्नू---और सुनो, इधर शहर में भी दिखे तो, समझो खैर नही 
भालेराव के जाते ही रंजू गुस्से से मन्नू को देखती है 
मन्नू---हमें ऐसे खा जाने वाली नज़रों से क्यों देख रही हो 
रंजू ---पहली बार पता चला ,की आप किसीसे कितने जलते है 
मन्नू---अरे, हमारे होते, वो, तुम्हारी दादी को , लाइन मारे , हम नही बर्दास्त कर सकते। … 
रंजू---क्या,....(वो।एक सोटी उठाकर मन्नू की और दौड़ती है )
मन्नू रंजू को गोद में उठाकर )…य्दि, किशनवा सो गया हो तो, हम तुम्हारे चरण-चंपे चाँप दे 
रंजू--ये कहिये, किशनवा आराम कर रहे हो तो, दादी ने कहा है 
मन्नू---अरे, तुम्हारी दादी से तो, कल, निपटेंगे, आज आपकी चरण-वंदना करने दिजिये… 
और दरवाजा बंद हो जाता है 
                                                                 
kuchh yad raha , kuchh bhul gye
रंजू को, अगले दिन सुबह मन्नू उठकर कहते है 
मन्नू--मन करता है, की तुम्हे गंगा जी में डुबकी लगाकर लॉउन 
रंजू---अपनी कुल्फी नही जमनी मन्नू--
मन्नू--सच, तुम्हे नहलाने का मन करता है 
रंजू---आअप अपनी गाय-भैंस को तो, रोज नहलाते है , ये  नया सहगल है 
मन्नू--मत पूछो , तुम्हारी कितनी सेवा करने का जी करता है 
रंजू---और वो, हम नही करने देंगे 
मन्नू-- कभी तो, हाँ, कह दिया करो, हमारा दिल रखने 
फिर मन्नू अपने काम में लग जाते है, कोई गीत गुनगुनाते हुए 
- रंजू। । ---सुनिये… 
मन्नू--सुनाईये , मन तो करता है, की तुम कहती रहो, और हम सुनते रहे 
रंजू---क्या आप रम्भा को भूल गए है 
मन्नू उदाश हो जाते है। ....... 
रंजू---नही पूछेंगे, कभी ये सवाल। … 
मन्नू----अरे नही , रोज पूछो , 
मन्नू--- सुनो, आज तुम्हे दूध से नहलाने का मन कर रहा है 
रंजू जल्दी से उठकर, -----चलिए, दादी के पास जाना है 
मन्नू-- अरे हम भूल गए ,… 
                                                           
dono, दोनों किशनवा को लेकर दादी के पास जाते है 
मन्नू--दादी, पर्नाम.... जल्दी, तैयार हो जाइए 
दादी---कहे 
मन्नू ---अरे, आपको, प्रयाग जाना है.... 
दादी---काहे। .... 
मन्नू---वंहा माघ मेले में कल्पवास के लिए जाना है 
दादी---काहे। ।ह्मे अकेले भेज रहे… 
मन्नू--- अरे दादी, क्या बताऊँ, आपकी नातिन के सामने नही बता सकते 
मन्नू-(रंजू को भीतर जाने का इशारा कर)---देखिये, वंहा आपका कोई इन्तजार कर रहा है, 
दादी---कौन करेगा हमारा इन्तजार। । मन्नू-
मन्नू--अरे क्या   के साथ जाइए, वंहा आपको , सब कुछ मिल जायेगा,
दादी--- काहे 
मन्नू--- अरे, दादी , आप समझती नही, वंहा भले राव  के साथ आपके कल्प-वास का प्रबंध हमने करा दिया है 
दादी को मन्नू तैयार करा देता है , और ननकू को बुलाता है 
मन्नू--देखो, ननकू, इन्हे सफर में कोई  आये , और वंही पहुँचाना, जन्हा भालेराव रह रहे है 
मन्नू-- दादी के पांव छूकर) दादी--दद्दू से कहना , हमे माफ़ कर दें, हम उतने बुरे नही , जितना हमने बुरा बर्ताव किया था 
रंजू भी दादी को विदा करती है 
रंजू--दादी, जल्दी आना, हमे ही नही किशनवा को भी तुम्हारी बहुत याद आएगी 
                                                                   
दादी को बिदा कर घर तबेले में लौटते है 
मन्नू---- सुनो,  ,उधारी नही चुके , चुकाई 
रंजू--कौनसी उधारी ---
मन्नू--वंही, जो खुबानी को पनीर भेजे थे,, उसने जो कुछ देने कही थी, वो, हमने उससे तो लिए नही 
रंजू कुछ नही समझती 
मन्नू--अब, उससे तो, ले नही सकते, तुम ही दे दो। । 
रंजू---(भागते हुए) अरे नही,  चुकाएंगे 
मन्नू रंजू को नही पकड़ पता , पाता , और एक जगह चुपचाप खामोश होकर बैठ जाता है 
रंजू--अब, क्या हो गया , इतने चुप कैसे हो गए 
मन्नू--कुछ नही रम्भा की याद आ गयी। … 
रंजू--तो,…। मन्नू--(पेन कलम कागज लेकर ,_)। हम, अब रम्भा को बहुत लम्बी चिट्ठी लिखेंगे 
मन्नू लिखने बैठ जाता है 
मन्नू ने लिखना शुरू किया 
                                                        
क्या नशीली थी , आँख साकी की 
बेखबर कर दिया , जिधर देखा 
रंजू(पढ़कर) हूँ, ठीक लिखे हो, आगे। .... 
मन्नू लिखता है। …। 
खड़ा हूँ कबसे मैं , चेहरों के एक जंगल में 
तुम्हारे चेहरे सा , कुछ भी यंहा नही मिलता 
रंजू----तो, क्या हम भी न्हि… 
मन्नू--- तुम क्या हो, अभी चलो, बताते है 
( दरवाजा बंद हो जाता है)
                                                    
अगले दिन से फिरसे मन्नू गौओं की सेवा में रत रात दिन एक कर देता है 
रंजू ---(फोन पर )---दादी , कैसी हो, कब आ रही , किशनवा याद करता है 
दादी की आवाज---जल्दी आएंगे , उसका ख्याल रखना 
तभी मन्नू थककर आता है, और औंधा जमीन पर लेट जाता है 
रंजू---क्या हुआ , जमीन पर कहे सो रहे 
मन्नू--अरे, रंजू, तुम , हमारी कमर पर बैठो तो, बहुत बदन दर्द हो रहा है 
रंजू बैठ जाती है। । मन्नू--
-मन्नू-आह , तनिक, आराम मिला। … 
तबी किशनवा एक सोटी लेकर आता है 
रंजू---क्या करोगे 
किशनवा---मम्मी -पापा मरेंगे 
मन्नू ---(किशनवा को गोद में लेकर)---नही मारेंगे। … 
किशनवा---मारेंगे। … मन्नू उठकर 
मन्नू ---हम अभी किशनवा के लिए खिलौने लाते है 
रंजू---और मेरे लिए। … मन्नू---
मन्नू---देखना क्या लाते है, इन्तजार करो 
रंजू---जल्दी आना। । मन्नू अपनी 
मन्नू अपनी बाइक से चले जाता है 
                                                         
उधर वो, बाजार  जाता है, इधर अर्चना स्कूटी से आती है 
अर्चना---रंजू, रंजू,।क्य कर रही है 
रंजू---आओ, क्यों, क्या हुआ ,
अर्चना--- पता है, आज क्या हुआ 
रंजू सवालिया नज़र से देखती है 
अर्चना---अरे, तुम्हारे मन्नू बाजार में हमको लाइन मार रहे थे 
रंजू---छी ,क्या कहती हो 
अर्चना---इतना ही नही, वो, हमे देखते ही , अपनी बाइक हमारे पास लाकर आँख मारकर बोले 
रंजू---- छी 
तभी , किशनवा आ जाता है, हाथ में सोटी लेकर। .... 
किशनवा----पापा मारे 
अर्चना---ये क्या बोला 
रंजू---वो, कह रहा है, की पापा को सोटी से मारो 
अर्चना (किशनवा को लड़ियाकर )--ये एकदम सही कह रहा है , (कहकर वो, किशनवा को चुम लेती है)
किशनवा निचे उत्तर जाता है , और सोटी दिखाकर ----अच्छी माछी मारे 
रंजू---नही,
अर्चना---क्या कहता है 
रंजू---वो, कहता है , मौसी को मारो 
अर्चना---ये, बताती हूँ, ये तो, मन्नू जैसा ही निकला 
अर्चना---पता है, क्या कहने लगे , चलो, तुमको,आशिकी दिखाते है 
तभी मन्नू आ जाता है 
अर्चना---हम चलते है , ये पीछा करते , यंहा भी आ गए 
मन्नू--अरे, रुको,वंहा आप क्या कर रही थी 
अर्चना---(चिढ़कर)-हम कुछ-कुछ बेच रहे थे ,.... 
मन्नू---ये कूच -कूच क्या होता है 
अर्चना---(स्कूटी स्टार्ट करके)----हम जा रहे है 
रंजू--अरे, छाछ तो, पीके जाओ,
मन्नू---उसे जाने दो 
मन्नू किशनवा को खिलौने देता है, किशन खेलने लगता है 
रंजू--और हमारे लिए 
मन्नू उसे हाथ पकड़कर भीतर ले जाते हुए। ....-- आओ, बताते है 
मन्नू भीतर लेकर , पायल को ऊपर तांग देता है 
रंजू---इतने उपर , हम कैसे निकालेंगे 
मन्नू--(रंजू को कंधे पर बिठालकर उपर उठता है )---एसे… 
रंजू पायल को निकल लेती है , और निचे बैठकर पहनने लगती है 
                                                           
agle  अगले दिन, किशनवा खेलते सो जाता है 
मन्नू अपनी गौओं की सेवा करते आता है 
मन्नू--ये, रंजू, चलो, गंगा-तट तक, चलो, तुम्हारे संग घूमने का बहुत दिनों से मन हो रहा था 
रंजू---जी, मुझे काम है 
-मन्नू-( गोद  में रंजू को उठाकर )--जब देखो काम,… रंजू--अरे, किशनवा 
मन्नू--(कुण्डी लगाकर)--वो, नही डरता, हमर बेटा है,
मन्नू रंजू को लेकर , गंगा के किनारे उस जगह लाता है, जन्हा वो, रोज गौओं को धुलाता है, पानी पिलाता है 
मन्नू बहुत संभलकर रंजू को धार में एक चट्टान पर बइठल देता है 
मन्नू--देखो, ये गंगा घाट है रंजू--
रंजू--उन्ह, हम तो, रोज ही देखते है 
मन्नू--अरे ये, (हाथ से इशारा करके)-ये वंही है, जन्हा हम अपनी माई को मिले थे 
रंजू-(मुंह में ऊँगली डालकर हंसी रोकते हुए)--अच्छा,
मन्नू--हाँ, तब, हमारा कोई नही था, माई ने पला-पोषा , इतना बड़ा किया, फिर अपना तबेला हमे देकर चली गयी 
रंजू --ठीक है, मई भी जाऊ 
-मन्नू-नही, रुको, तनिक, हम आपको , नहला देते है 
रंजू---हम, ऐसे खुले में नही नहाते, समझे, 
मन्नू--ठीक है, आपके चरण धो देते है, रुको तो, पांव रखो यंहा। .... 
,मन्नू पानी में बैठकर अपने घुटनों पर रंजू के पांव खींचकर रखता है, और गंगा के बहते जल को अंजुली में भरकर 
उन्हें धुलने लगता है , धुलाने। . 
अभी वो, बड़ी तन्मयता से रंजू के पांव धुला रहा होता है, की रंजू उसके चेहरे को  भरकर , चूमना  है , चाहती है , की उसी वक़्त किसी के हंसने की आवाज आती है 
दो, तीन लफंगों की एक साथ आवाज आती है ----हूँ, खूब चूमा चाटी हो रही है 
सुनकर, मन्नू पलटकर देखता है, सामने ५ बहुत ही खतरनाक किस्म के बदमाश सामने नाव नांव से आकर उन्हें भद्दे तरीके से घूर रहे होते है 
रंजू शंकर कड़ी हो जाती है मन्नू रंजू को अपने पीछे छिपाते हुए-- तुम,मत डरो,
लफंगे----हाहाहा , खूब मजा आ रहा था, और आगे , कुछ और करेंगे, या पांव ही नहलाते रहेंगे 
मन्नू---हैट जाओ,
लफंगे---अब, जाना कहा है, तुम सामने से हैट जाओ, हम, उसको लेकर जायेंगे 
मन्नू--ये। …… 
लफंगे जाल फेंक कर उन्हें लपेटने लगते है 
मन्नू रंजू को अपने पीछे चिपटा लेता है---हमे, जोर से जकड़के रखो 
रंजू मन्नू को जोरों से पकड़ लेती है, दोनों पर जाल फेंका है लफंगे---
लफंगे---अब, इनको, खींचो , नव में बांध कर ले जायेंगे मन्नू---(धीमे से)
मन्नू (रंजू को ढांढस बंधकर)--घबराओ, नही, वो १० भी रहे, तो हमे नही खिंच पाएंगे.... 
बदमाश जोर लगाकर खिंच रहे है , सब एक साथ आकर , खींचते है 
मन्नू(ज्ञ्यों, ही वो, सब उन्हें खींचने नांव में किनारे आते है, त्यों ही, मन्नू जोर से उन्हें झटका देता है,
सब एक साथ नांव के निचे गिर पड़ते है , मन्नू उन्हें जोरों से डुबो कर मारता है 
रंजू उसे छुड़ाना चाहती है 
मन्नू--रुको, तो, चलते है ,म मन्नू सबको, बीच धार में लेजाकर वंहा बंधी दंड से उल्टा लटका कर बांधता है 
मन्नू (मुक्को से उन्हें मारते हुए)--क्यों, बे, तुम्हारा बाप कौन है, जिसने भेजा है 
सब बदमाश---(गिड़गिड़ाकर)--हमे छोड़ दो, मन्नू भैय्या , वो जालिम सिंह की बात में आ गए थे मन्नू--वो, भेड़िया 
मन्नू---वो, भेड़िया ही तुमको, खोलेगा 
रंजू--चलो न 
सब(घिघियाकर)---हमे छोड़ते जाओ.... 
मन्नू पलटकर, एक लत मरता है, दंड , डाँड़ उखड जाती है, सबको एक साथ धारा बहती ले जाती है 
रंजू--चलो, किश्न्व…। 
मन्नू--- चलो, .... दोनों 
दोनों भागते हुए घर पहुँचते है 
रंजू इतनी घबरा गयी है, की साँस फूलने से वो, बेदम होकर गिरती है,
इसके पहले, मन्नू उसे संभालता है 
मन्नू--रंजू, तुम, हमर जिंदगी हो, ऐसे तो, नही हारो 
और मन्नू जल्दी से उन्हें शहर ले जाने की तयारी करने लगता है 
                                                                                
mannu , मन्नू रंजू को, व् किशनवा को जल्दीसे  शहर ले जाने की तयारी करता है 
fir vo , दोनों कुछ सामान बांधते है मन्नू--
मन्नू-- लेकिन,रंजू, हम बाइक में तुम्हे और, किशनवा को ही, ले जा सकेंगे , सामान जितना लगे, वंही ले लेना , हम सब , ऑरेन्ज कर देंगे 
रंजू---(लेकिन चुपचाप कड़ी होकर, अपने घर को देखने लगती है ० मन्नू--
मन्नू--जल्दी, करो, देखो, रात के पहले वंहा पहुंचा कर लौटना भी है 
रंजू---( पास आकर मन्नू के  पकड़ लेती है )---हम नही जायेंगे, तुमसे दूर। …। 
मन्नू---नही.... हम तुमको , यंहा नही रखेङ्गे… रंजू--
रंजू---तो, तुम भी चलो,…क़ैसे सोच लिया की , कि हम तुम्हे यंहा अकेले रखके जायेंगे 
मन्नू---रंजू, समझो, तुम वंहा किशनवा  साथ रहना, यंहा हमे गौवों को भी देखना है, उन्हें कौन सम्भलेग… 
रंजू---नही, हमारा मन नही हो रहा, तुमसे दूर जाने का , ये हमारा घर है, हम नही रह सकते, इससे अलग, एक पल भी मन्नू--
मन्नू--(रंजू को खींचकर बाइक पर बिठालता है )-आओ, किशनवा, दादी के घर चलेंगे,
किशनवा अपने खिलौने समेटता है। । मन्नू--(
मन्नू --(किशनवा को उठकर)--चलो, वंहा नए खिलौने लेकर देंगे.... 
वो, सभी जाने को ज्यों ही निकलने को होते है, तबेले के सारे गौ व् बछड़े उन्हें जैसे पुकारने रम्भाते है 
रंजू परेशान हो जाती है 
मन्नू(रंजू को बाइक पर रोककर )अरे, कमला, कजरी , हम आवत है , हम अपनी गौवों से कभी दूर नही होंगे , बस , इन्हे शहर तक पहुंचकर लौटते है ,…न्न्दि नंदी तुम इनका ख्याल रखना 
तबेले के द्वार पर एक सांड आकर खड़ा हो जाता है, जैसे वो, सबकी रक्षा करेगा 
मन्नू रंजू व् किशन को लेकर जाता है, रंजू की आँखे डबडबा  जाती है, वो, मुश्किल से आंसुओं को रोकती है 
वो, सभी शहर दादी के घर आ जाते है 
                                                               
(यंहा से हम रंजू का नाम गंगा रखेंगे , 
क्योंकि, जबतक हंसी मजाक था, तभी तक ठीक लगा,  में ट्विस्ट है, इसे मई , रंजू के जगह गंगा करती हूँ ,
हाँ, रंजू से माफ़ी चाहूंगी , वे बहुत प्यारी लड़की है , और उसका जीवन खुशियों भरा हो , इतने दिन कहानी में 
उसका सान्निध्य बहुत सुखकारी था, आल्हादकारी रहा , रंजू, मस्त रहो , खुश रहो , bye)
                                                                       
तो , मन्नू गंगा को दादी के यंहा पहुंचता है गंगा आले से  निकालकर , घर का द्वार खोलती है 
फिर, मन्नू अपने किशनवा को गोद में लेकर प्यार करता है , वो उसको पप्पी लेता है 
किशनवा मन्नू से कहता है, की वो मम्मी को भी पप्पी ले 
मन्नू अपने कुर्ते से एटीएम कार्ड निकालकर गंगा को देता है मन्नू--
मन्नू--ये, लो, जो जितना लगे ,  घर के लिए लेना, और किशनवा को खूब पढ़ाना 
मन्नू की आँखों में आंसू छलकते है 
गंगा---(पास आकर)हमारा मन नही लगेगा, तुम्हारे बगैर, पर हम तुमसे वादा करते है, की कि हम तोहार किशन को बहुत पढ़ाएंगे। । मन्नू--
मन्नू--हाँ, हम नही चाहते,
.... गंगा---ऐसा मत कहिये, ये जो तुम काम कर रहे हो, बहुत महान है , ये गौओं की सवा को भगवन कृष्ण ने की थी , हम चाहेंगे की किशनवा बहुत पढ़े पर , वो, बड़ा होकर, तुम्हारी तरह , गौओं की सेवा ही करे,.... मन्नू--
मन्नू--हमे बहुत डॉ लगता है, गंगा, आजकल के पढेलिखे लोगों, से , उनमे पैसे की इतनी हवस   वो, हमर गौओं को कतल- बेचना चाहते है, हम पढ़ने -लिखने वालों से डरते है, गंगा.... 
कहकर, मन्नू तेजी से निकलना चाहता है , की गंगा उसका हाथ पकड़कर , उसे अपना मोबाइल देती है गंगा---
गंगा--देखो, हमें, तुम्हारे बिना न तो, नींद आएगी , न कुछ अच्छा लगेगा, ये रखो, बातें तो कर सकेंगे, कंसेकम.... 
मन्नू मोबाइल कुर्ते में रखकर, किशनवा व् गंगा को प्यारकर चल देता है 
                                                                                                         
मन्नू रात तबेले में सोने की कोशिश कर रहा है उसे 
तभी रम्भा की आवाज आती है 
रम्भा की आवाज ---मन्नू, कैसे हो। … 
सुनकर, मन्नू चमक कर उठ जाता है 
उसे लगता है, की रम्भा ने कंही पास से ही पूछा है 
फिर उसकी निगाह अपने मोबाइल पर जाती है 
वो, मोबाइल की रिंगटोन थी, जो  बना दी थी 
मन्नू (मोबाइल पर ०)…… गंगा, तुम चिंता मत करो , किशनवा का ख्याल रखना , हम कल आएंगे। । 
तभी उसे तबेले के आसपास कुछ साये नज़र आते है 
मन्नू बहार निकलता है 
मन्नू (स्थिति भांप कर )---ये तो,  रहे है 
मन्नू कुछ सोचता है , और अपनी बाइक निकालकर उसपर ,स्टार्ट कर बहार निकलता है 
और , चिल्लाता है। .----अबे, जालिम  चलो  मिलने चलो,……  चलते है 
देखते देखते एक गाड़ी सामने  है ,   गाड़ी के पीछे चल देता है 
जालिम सिंह की अड्डे पर महफ़िल 
 मन्नू को पकड़कर वो लोग सामने  लाते है 
जालिम सिंह ---(हंसकर)---बहुत आगे   समझते हो,  ,मन्नू। । मन्नू---
मन्नू--- हमें पहले, छोड़ दो, तब बात करना। . जालिम के इशारे पर 
मन्नू को एक पिंजरे में उसके आदमी दाल देते है 
                                                                                 
मन्नू (पिंजरे के भीतर से)०---अब बताओगे, क्या चाहते हो जालिम सिंह, (
जालिम सिंह(अपने कण की मशीन ठीक करता है)----
भैरम---हमारे मालिक चाहते है , तुम अपना तबेला उनके नाम करके , कंही भी चले जाओ 
जालिम सिंह इशारा करता है 
भैरम---मालिक को, तुम पर दया आ गयी है , वो कहते है, तबेला उनका  होगा,तुम  उसके नौकर रहोगे 
मन्नू--(गुस्सा होकर)---हमे अपनी गौ  अलग करना  चाहते हो 
भैरम---नही तुम्हे सेवा  मौका देंगे 
मन्नू--- और तुम क्या करोगे 
 के इशारे पर  कतलखाने की तस्वीरें दिखाते है 
मन्नू(चीखकर)---नही। .... जालमसिंह 
जालिम सिंह के कण कान की मशीन गिर  जाती है 
जालिम सिंह(इशारा करके)०ये  मानता तो, इसकी आँखे निकल लो 
सभी मन्नू को ले जाने लगते है 
तभी वंहा पर भेष बदलकर अर्चना आ जाती है 
अर्चना (अदब करते हुए)०, हिय। ।जोल्ल्य सिंह , मोना ठाकुर , का चुम्मा। … जालिम 
जालिम सिंह खुश होकर उसे अपनी गोद में बैठने का इशारा  करता है 
मन्नू जालिम को बहुत गलियां देता है----अरे ओ, कनकटिया , रुक तुझे बताता हूँ,  
सभी मन्नू को  है , मरने मारने दौड़ते है, तो, अर्चना रोकती है 
अर्चना---रुकिए, इस बदमाश का फैसला ,  करेंगी जालिम 
जालिम सभी को  इशारा करता है 
सभी अर्चना को देखते है 
                                                  
                                                                     
यंहा बता दूँ की जालिम सिंह कौन है 
जिससे बचने के लिए मन्नू उसी के अड्ड़े पर चला जाता है 
जालिम सिंह है, उसके क्षेत्र का विधायक , 
और वंहा का मंत्री 
जालिम सिंह है, कृषि-मंत्री 
जो, की कि पुरे क्षेत्र को बंधक बना रखे है 
हमेशा राज्य से क्षेत्र की प्रगति का पैसा तो, लेता है 
किन्तु, कभी भी वो, नही चाहता की 
क्षेत्र की प्रगति हो, 
वो, हमेशा से अपना घर भरता है 
पार्टी में धर्म का ढोंगी प्रचारक बनता है 
किन्तु, गौओं की कत्लगाह भी वो, ही,
चलता चलाता है ,
इश्लीए, अब उसकी नज़र मन्नू की गौओं पर है 
वो, चाहता है, की मन्नू गौओं को  हवाले कर दे 
इश्लीए वो, उसे उसके तबेले का नौकर बनने का हुक्म  मन्नू जनता है, की वो, पुलिस 
के पास जायेगा तो, जालिम उसे मर डालेगा 
                                                                                     
सभी अर्चना को देखते है , जो भेष बदल कर आई है 
अर्चना----रुकिए, मई बताती हूँ, मई मोना , बेल्जियम से आई हूँ 
जालिम सिंह--कौन, मोना, तुम कौन हो 
अर्चना---अरे आप नही जानते , 
वो, जालिम सिंह के कान की मशीन खींचकर, दो, सेल उसके कान में भर देती है 
अर्चना---मई,  मानव-तस्करी विंग की हेड हूँ, जो की कि आज वंहा के एक अरब-पीटीआई के आर्डर 
पर, किसी की आँखे निकलने आई हूँ 
जालिम सिंह ९अप्ने कान के सेल लगता हुए)--क्या क्य.... 
टट्टू---मालिक, मशीन लगाओ, अरबों की कमाई होने वाली है 
जालिम (अपने कान में मशीन लगाकर)---कितना माल मिलेगा 
अर्चना---एक, हजार करोड़,.... लेकर जॉन, इसे…। 
वो, मन्नू की और इशारा करके अब जालिम सिंह की मशीन को निकालकर उसके कानों में सेल लगती है अर्चना उस  छिपा देती है 
टट्टू---मालिक कह रहे है, लेकर जाओ, 
 मन्नू को पिंजरे से निकल लेती है, मन्नू के हाथों को बांध देती है 
और लेजाने लगती है 
मन्नू(रुककर 
तूने तो, बेचारे जानवरों को  छोड़ा ,
अर्चना उसे खिंच कर ले जाते हुए-----ये, तू, चल भी, हमारे मालिक बहुत धर्मात्मा है 
जालिम अपने कण की मशीन को ठीक करता है---अरे, ये क्या कहता है,

अर्चना उसकी  अपने पास पुरस में छिपाए है 
मन्नू ---तू, मेरे हाथ छोड़ दे , मई तेरा टेंटुआ दबा दूंगा 
अर्चना--चलो… मुझे तेरी आँखें चाहिए , बेल्जियम का आर्डर है, वंहा से हजार करोड़ मालिक के कहते में आएंगे 
मन्नू---अबे… हजार करोड़ , के लिए, माँ को बेचेगा 
टट्टू---ये माँ को नही 
मन्नू-- अबे, बूचड़खाने से आये हो, माँ को क्या जानोगे 
मन्नू  को अर्चना खींचकर ले जाती है अर्चना---
अर्चना---चलो, मुझे तुम्हारी आँखे चाहिए 
मन्नू---अरे आँख क्या, जान हाजिर है, तेरे लिए तो 
सब हँसते है 
अर्चना---जॉली जी , मोना का चुम्मा, आपके अकाउंट में हजार करोड़ जमा करती हूँ, अभी इसकी आँखे निकालकर जालिम---
जालिम--बाकि, किडनी वगैरह की भी आर्डर  देना 
अर्चना---अरे, मोना को ये सब बताने की जरुरत  नही,हम तो , निर्यात-एक्सपर्ट है, आपके अकाउंट को भरने की सैलरी ही तो, कहते है 
मन्नू--अरे, ये निर्यात के लिए, अपनी माँ बहनों को कहते है। । 
टट्टू---नही, वो, बूचड़खाने के है ,…। 
मन्नू --चलो… 
                                                                                            
अर्चना मन्नू को  पहाड़ी की कंद्र में लेकर जाती है 
archna
अर्चना मन्नू को, एक पहाड़ी की कंदरा में ले जाती है जन्हा , उसने मन्नू की समस्त गौओं को जमा कर रखे है, ननकू की सहायता से , मन्नू के आते ही , गौएँ, सब रम्भाने लगती है 
मन्नू की आँखें भर आती है 
और वो, अपनी गौओं को बहुत स्नेह से हाथों से स्पर्श करता है मन्नू---
मन्नू--ये तुमने हम पर इतना अहसान किया है , हमे तो, तुमने खरीद लिया है अर्चना--(मुस्कराकर)
अर्चना--आपसे एक विनती है, की अपनी गौओं को कंही छिपा दीजिये, और गंगा व् किशनवा संग दूर चले जाइए 
मन्नू--हाँ, पहलीबाट मानते है, गौओं को गांव वालों को सौंप देते है 
अर्चना--और.... मन्नू---
अर्चना ---मई चलूँ, वंहा, जालिम सिंह, मोना ठाकुर की राह, देख रहा होगा। …मै उसकी एक्सपोर्ट एग्जीक्यूटिव बनी हूँ 
अर्चना जाने लगती है, तो, मन्नू उसका हाथ पकड़ लेता है 
अर्चना हाथ छुड़ाने की ,
--अर्चना--(हाथ छुड़ाते हुए)--देखो, मुझे नही पता था, की , कि आप मेरी भलाई का बदला ऐसे देंगे 
मन्नू---तुम्हारी भलाई का बदला ही दे रहे है 
अर्चना(गुस्सा होकर)---हाथ छोड़िये मन्नू--
मन्नू--छुड़ा लीजिये, ऐसे छोड़ने के लिए तो, नही पकड़ा है, ये हाथ। . 
अर्चना---रुकिए, अभी रम्भा दी, को फोन कर बताती हूँ, आपकी ओछी हरकत.... 
मन्नू---आप क्या समझती है, की मन्नू आपको, उस दरिंदे के पास ऐसे जाने देगा, मन्नू क्या इतना निकम्मा है --अर्चना-
--अर्चना--तो, क्या करेंगे आप मन्नू-
मन्नू-ननकू से)---हमारा घोडा लाओ, और ये गौओं को आप वंहा गांव ले जाओ, सुरंगों के रस्ते , हम इन्हे पहुंचा कर आते है 
मन्नू अपने घोड़े पर बैठकर, अर्चना की और हाथ बढ़ता है 
अर्चना पीछे बैठना चाहती है 
मन्नू---अरे, आप पीछे से लुडक गयी तो, रम्भा तो, हमे खा जाएगी , झिझकिये नही, सामने बैठिये ,
अर्चना बहुत झिझकती है, तो, मन्नू उसे हाथों से उठकर उठाकर सामने बिठा लेता है 
मन्नू---आप जानती नही, की ये मनवा कैसे घोडा उडाता है 
और मन्नू उसे उसके घर तक छोड़ देता है अर्चना---
अर्चना--आप कहा जायेंगे मन्नू---
मन्नू --मई किसी को नही बताऊंगा। ।क्योङ्कि,…ये मेरी लड़ाई है, किसी को पता नही चलना चाहिए 
अर्चना उसे देखते रह जाती है मन्नू कंही दूर निकल जाता है 
वो, जालिम सिंह के पास जाता है , जनता है, की वो नही गया तो, उसके आदमी पागलों की तरह से 
गौओं पर टूट पड़ेंगे 
                                                                  
it इधर अर्चना गंगा को जाकर सब सच्चाई बताती है 
गंगा पहले उसे नही पहचानती 
किन्तु, वो , जब अपने वास्तविक रूप में आती है, और बताती है 
की, मन्नू जालिम सिंह से लड़ने गया है तो,
गंगा बहुत चिंतित होती है 
अर्चना उसे दिलासा देती है 
किशनवा उनकी बातें सुनकर आता है और वो, सोटी लेकर कहता है,
जो मन्नू ने उसे दी थी किशनवा---
किशनवा---पापा मारे। …। 
गंगा बताती है, कि किशनवा कह रही है, की पापा जालमसिंह को मारेंगे 
                                                                               
इधर मन्नू जालिम सिंह के अड्डे पर घोड़े से आता है द्वार पर उसके गुर्गे उसे रोकते है मन्नू---
मन्नू-(चिल्लाकर)----अबे कुत्तों , जाकर बताओ , उसे कहा छुपकर बैठा है 
जालिम के आदमी नही हट्टे तो, वो, उन्हें  घोड़े की छलांग से कूदकर पार कर लेता है और,
सीधे जालिम सिंह के सिंहासन पर घोडा चढ़ा देता है 
जालिम सिंह(बैठे बैठे पीछे हटकर)--क्या कर रहा है 
मन्नू---देखता नही, घोडा सुसु कर रहा है 
जालिम सिंह---हटा, ये कोई जगह है मन्नू---
मन्नू --सही जगह पर है, वो 
जालिम सिंह अपने आदमियों को इशारा करता है 
सब मन्नू पर बंदूक टंटे है 
मन्नू---कंचे फेंककर)---ये स्टेनगंवा निचे…। 
मन्नू(कंचे जालिम सिंह को देता है फेंककर )ये तेरी एक्सपोर्ट वाली की आँखें है , तू कहे तो, मई तेरी भी आँखे 
एक्सपोर्ट कर दूँ 
जालिम सिंह(कान की मशीन ठीक करके)---ये , क्या कहता है 
मन्नू--मोना ने मरने के पहले तेरे को, ये सन्देश दिया था 
मन्नू उसके स्क्रीन पर मोना को मेसेज उपलोड करता है 
मोना कह रही होती है ----जॉली , ये मन्नू, जब तुम्हे गाली देगा, तो, तुम्हारे कान में सुनाई देने लगेगा 
जालिम खुश होकर-----तो दे मन्नू---
मन्नू---तो, सुन, तेरे कण की दवाई है ये, जालिम मकड़जाल वाले, तूने सारे देश को लूट डाला 
पहले तू चुनाव लड़ता है , और, हरामखोर , चुनाव में जीत कर साड़ी योजना की राशि डकार जाता है अबे 
कुत्ते  की औलाद, तेरा पेट फिर भी नही भरता तो, तू पुरे इलाके के जंगल कटवा देता है, तेरी 
आरा मशीनों में लकड़ियाँ कटती है , इतने से भी मन नही भरता ,तो, तू, नदियों का पानी की चोरी करता है तू, बिजली  वालों से अपनी इंडस्ट्री के लिए   लेता है, तू सबके ट्रांसफर करके भी धन कमाता है, नौकरी के अपॉइंटमेंट के लिए भी तू, पैसे लेता है, इतने से भी तेरी हवस नही मिटटी ,तो, तू, माइंस से खनिज उठकर बेचता है ,तू, क्या नही करता, अपनी बीबी को ही,जिले में पार्टी की महिला शाखा का अध्यक्ष बनता है, अपनी बेटी को युवा मोर्चे की हेड बनता है, अपने दामाद को जिला पार्टी का कोषाध्यक्ष बनता है , तेरी लालसाएं अनंत है तू, अनंत मुखों से अपनी धन की हवस पूरा करता है, और हमेशा पूरी सरकारी मशीनरी को यूज़ करके चुनाव जीतता है 
जालिम सिंह---क्या बोलता है मन्नू--
मन्नू--तू, इतना कमीना है, की जनता के बीच जाकर ऐसी बात बोलता है, जैसे तू, उनका सच्चा हितेषी है, पर सड़क से लेकर नल योजना तक तू सबके पैसे खता है , तेरी सच्चाई जानकर भी , कोई तेरे उप्र कारवाही नही करता , और तेरी सम्पति पुरे देश भर में बड़े शहरों में है, कंही तू, फाइव स्टार होटल बनता है , कंही, मल्टी प्लेक्स बनाता है, कंही तेरे अंग्रेजी ठेके चलते है, कंही तेरी हीरे की खदाने है,  ५० % तेरे अकाउंट में जमा होता है , पर तू, ७५ साल का होकर भी तू, हमेशा चाहता है, की तू ही, दद बने, तेरा कुनबा ही, पार्टी के अधिकारी बने 
जालिम सिंह----क्या बकता है 
मन्नू--अब, तू, मेरे तबेले की गौओं को बूचड़खाने में क़त्ल कर, अपना एक्सपोर्ट बढ़ाना चाहता है, तूने इलाके भर के बच्चों को अपहरण करवाकर, उन्हें मरता है, और उनके मानव-अंगों की तस्करी करता है , तू, एक सीट जिताकर देता है, इश्लीए, पार्टी जानकर भी कभी तेरे खिलाफ कारवाही नही करती 
जालिम सिंह----मार दलुङ्ग…… 
मन्नू---अबे, तेरी बीबी, तेरे ड्राइवर के साथ रंगरेली मनाती है, और तेरी लड़की बूचड़खाने वाले के साथ गायब हो जाती है , तुझे इश्क तो, होश नही गद्दार.... तू तो, है, धन का बीमार। …… 
इसमें क्या गलती है 
                                                                
मन्नू जालिम सिंह की कान की मशीन खिंच लेता है 
मन्नू---अबे, हप। .बणटahai, तू बहरा नही है जालिम सिंह---
जालिम सिंह---क्या 
मन्नू--हाँ, तू, जंगल कटवाता है, तेरी आरा मशीन है, सड़क बनाने की राशि तू, हजम करता है, तू बेटी की शादी करता है, तो, पुरे  व्यापारी चंदा देते है, अबे भिखमंगे, तेरा मन नही भरता, तेरे देश भर के बैंकों में जो अकाउंट है, वो, फुल हो चुके है, विदेश घूमता है, तो, कोई भी बहन बनाकर, सरकारी पैसों से ऐश करता है, तेरे घर तो, क्या तेरे सब रिश्ते वाले, चमचों के घर मुफ्त की बिजली है, तू, बूचड़खाने चलता है, कथा भी सरकारी पैसे से करता है, तेरा मन क्यों नही भरता रे, तू बहुत डस्ट है, ऐसी बातें करता है, की लोग तुझसे कभी अपनी शिकायत न करें, तू, पैसे के बिना कोई बात नही सुनता, तू, सिर्फ अपनी जाती वालों की शिकायत सुनता है, अपनों के टेंडर भरवाते है, सब ठेकेदारी भी तू, अपनों को बांटता है, तेरे घर तहखाने में रत दिन मशीन से नोट गिने जाते है, सबसे नौकरी के लिए पैसे लेता है, तूने सभी काम का रेट बना दिया है , तेरी धांदली उजागर होती है, तो, तू, बड़े पंडाल बनाकर शिव-पूजा करवा लेता है, तू बड़ा मक्कार है, तेरी बीबी मक्खीचूस है, जो की दूध बेचती है, अबे तू, इतने पैसों का क्या करेगा, तूने कॉलोनी के सब आम के पद कटवा लिए, तू, अपने क्षेत्र की जनता को सुखी देखकर जलता है, सो, तूने बरसों पुराने आम के बाग़ कटवा दिए, अब तू, हमारी गौओं को अपने कतल-खाने में भेजना चाहता है। ……… 
जालिम सिंह--- ठीक है, तेरी सब बातें ठीक है, लेकिन तू बच नही सकता 
मन्नू---बचना कौन चाहता है 
जालिम सिंह---तू तो, अब नही बचेगा, पर तू अपने बच्चे बीबी और गौओं को बचना चाहे तो, तुझे मेरी बात सुन्ना और मन्ना होगा मन्नू--
मन्नू--ठीक है, तू, मेरे बच्चे और, ेरे घर व् गौओं की और हाथ लगाकर नही देखे, तो, मई तेरी बात, मैंने लायक होगी, तो, जरुरु मानूंगा 
जालिम सिंह----अपने घर व् तबेले को बचाने मई तेरे सामने अच्छा विकल्प देता हूँ, तू, जरूर मानेगा, और, मरणा तो, तुझे होगा , पर तेरी मौत कैसी होगी, ये अब जालिम सिंह के हाथ में है , क्योंकि, यंहा की पुलिस तो, क्या परिंदा भी जालिम सिंह, की इक्षा के बिना पर नही मार सकता , सम्झ…। 
मन्नू---समझता हु, बता तेरी मंशा क्या है, जलिम… 
                                                                                        
मन्नू जालिम सिंह को बहुत मारता है उसके गर्दन पर पांव रखता है , तो जालिम सिंह के आदमी उसकी और गण टंटे है 
मन्नू-(चिल्लाकर)-ये। …ह्रम्खोर, चोर , खड़े अपने आदमियों से , अपने कुत्तों से की अपनी बन्दुके  निचे कर ले वरना इन्ही , तेरे टेंटुआ दब गया तो, तू तो गया 
जालमसिंह---(चिल्लाकर)---अबे , हरामियों, देख नही रहे , मेरी जान जा रही है 
सभी बन्दुके फेंक देते है मन्नू--
मन्नू-- हाँ,अब, बता तूने तो, रेल लाइन बिछाने के नाम पर सारे जंगल काट डेल, माइन से पुरे खनिज तेरी कंपनी में चले जाता है, तू ,  में कितना भरेगा रे , और कभी भी मर गया तो, ये किसे जायेगा , देख को दिमग की तरह क्यों चाट रहा है ज 
जालिम सिंह----मन्नू, तुझे , अपना पार्टनर बनाना चाहता हूँ, क्या, तू, अपना तबेला मुझे देगा 
मन्नू--चीखकर) ये, हमारी गौण की और देखा भी तो , गौ पर नज़रे डाली तो, तुझे कच्चा चबा जाऊंगा 
जालिम सिंह----तो, तू नही मानेगा 
मन्नू----नही 
जालिम---तो, मई तेरे बीबी -बच्चे को नही जीने दूंगा जा 
मन्नू--अबे वो, घाघ , इतना मारूंगा , की उठ नही सकेगा, और अभी कान से ही बहरा है , फिर तू पूरा बहरा हो जायेगा , समझ.... 
जालिम---तू, या तो, अपने बच्चे को बचाने सौदा कर ले 
मन्नू---मेरी गौओं के शिव जो चाहे मांग ले जालिम 
जालिम---तुझे, एक, कागज पर सिग्न साइन करने होंगे की , जो मौत मेरे मानव-तस्करी के कारखाने में हो रही है ,वो, तूने की है, समझा, वो, खून तेरे सर 
कहते ही, तड़ातड़ जालिम सिंह गोलियां बरसा कर अपहरण किये बच्चों बुजुर्गों को मार डालता है 
मन्नू--- तू नही ंआणेघा… चल बता। . जालिम सिंह के आदमी एक कागज लेट है , लाते है 
जिसपर मन्नू लिखकर देता है , ये मन्नू लिखता है, 
ये मानव-तस्करी का कारखाना मेरा है, इन सबके कतल का जिम्मेदार हूँ, मई , ंआण्णू…… 
मन्नू की साइन लेते ही, वे उसे बंधक बना कर पुलिस के हवाले करते है 
जालिम सिंह----ये दारोगा, ये अपना मोहरा है, जरा बिगड़ैल है, जो  लेना 
गुस्ताख़ ----जलम सरकार- इसे ठीक से तीमारदारी में रखूँगा 
दरोगा गुस्ताख़ मन्नू को बांध कर ले जाता है , और जालिम सिंह के आदमी सारे शव गंगा में बहा देते है 
                                                                                             
mannu, मन्नू जाते जाते चिल्लाता है 
मन्नू---जा रहा हु, पर जालिम तू, कबतक कौए की तरह ढोर कहते रहेगा , क्या तू जन्म जन्म तक, धन के लिए कुत्ते की तरह हाव हाव करता रहेगा, कभी कंही दान नही करेगा तो, मरने के बाद अपने ही कलेजे का मांस खायेगा, …क़्य समझा जालिम 
जालिम गुस्ताख़ जेलर को कहता है, की अभी , मन्नू की उसे जरुरत है, तबतक इसे ठीक से रखो 
मन्नू जेल में कैद है  
                                                        
मन्नू को जेल के कक्ष में अकेले में रम्भा की याद आती है 
वो, गुस्ताख़ से कलम कागज मांगता है 
---   लिखने दे 
गुस्ताख़ ----मन्नू जी , आपसे कोई मिलने आई है मन्नू-
मन्नू जो, कुछ लिखना चाहता है--चिल्लाता है---कौन है 
गुस्ताख़--(कण में)---साहब, धीरे बोलिए, वो, बहुत नाजुक है, हर-पारी हूर परी  है 
मन्नू सामने देखता है, रम्भा भीतर आ रही होती है 
मन्नू चिल्लाता---अबे, गुस्ताख़ , जल्दी से फर्श पोंछ 
गुस्ताख़   ,अ पने रुमाल से पोछा लगता है , एक कुर्सी रखता है 
तभी बहार से आवाज आती है,---सर , एस पपि , साहब की  है, मुर्गा बन जाइए 
मन्नू--(कुर्सी को एक लत मरता है)-ये ले जा, तेरी कुर्सी , वे यंहा बैठेगी,
कहकर मन्नू अपना स्कार्फ बिछाता है गुस्ताख़ तुरंत भागता है,  बनकर 
 क्योंकि,spसिंह की बेटी अर्चना आई रहती है 
गुस्ताख़ उसके सामने जाकर मुर्गा बन जाता है 
गुस्ताख़---मैडम, ये लीजिये कोड़ा , और मुझे मारिये 
मन्नू इधर जेल की सेल में ,---ये क्या कर रहा है 
रम्भा---वो, अर्चना, सिंह साहब की बेटी है, न, तो, वो, बचपन से उसके सामने मुर्गा बनता आया है, जब अर्चना छोटी थी, ये सब दरोगा , उसके लिए खुद मुर्गा बन जाते थे 
मन्नू---(ध्यान से रम्भा को देखता है)
रम्भा---क्या देख रहे हो 
मन्नू----अरे, कुछ नही ,हमने तुमपर एक शायरी लिखी है ,बताएं 
रम्भा के हाँ कहने पर , मन्नू वो, कागज देता है, जिसपर कुछ लिखा होता है 
रम्भा देखती है, जिस पर लिखा होता है 
करधनी चूमे कमरिया , झुमका चूमे गाल 
गोरी , तेरे अंग अंग में , यौवन करे कमाल 
रम्भा ---क्या ये गंगा के लिए लिखी है 
मन्नू---जाने दो, उसे, 
रम्भा---९(बेग से डिब्बा निकलती है)--हम कुछ लए है 
मन्नू---....... 
रम्भा---गाजर का हलवा ,।तुम्हे पसंद है, इश्लीए 
मन्नू--हमें , तो, बहुत कुछ पसंद है , चलो खिला दो, अपने हाथ से ज्योंही, 
ज्योंही , रम्भा खिलने लगती है , मन्नू किसीकी और देखता है 
रम्भा---कहते क्यों नही 
मन्नू---बहार देखते हुए )---ओ, देखो, कोई घूर रहा है, हमको,
रम्भा पलटकर देखती है, फिर मुस्कराकर)--वो, हमारे घरसे है, आप खा लीजिये 
मन्नू डिब्बा हाथ में लेकर --नही, आप जाओ, गंगा को भेजो , ओ खिला देगी रम्भा--
रम्भा--क्यों हमारे हाथ से नही क्या। … 
मन्नू--नही, रम्भा, इस जन्म में इन प्यारे हाथों को , मई कोई,दोष नही लगा सकता , ये बहुत निर्दोष है 
रम्भा---ठीक है, हमारी कोई इक्षा नही पूरी करते 
मन्नू---तुम, मेरे सामने जरूर आना, जब, मुझे फांसी होगी 
रम्भा के आँखों से आंसूं बहने लगते है 
मन्नू-- रम्भा, अपने उद्देश्य के लिए, गौओं के लिए जान देने का मुझे मौका मिला है, न, तुम रोना, न ही, गंगा को रोने देना, समझी 
रम्भा , हाँ कहकर चली जाती है मन्नू 
मन्नू उसे जाते देखता है, कागज पर ध्यान जाता है मन्नू--
मन्नू--अरे, ये, (फिर कुछ सोचकर कागज को खा लेता है,)
                                                                                   मन्नू 
मन्नू अभी कागज निगलता ही है, की एक अलग ही आदमी आ जाता है 
मन्नू उसे घूरता देख पूछता है--तुम कौन से नमूने हो 
नवल ---मई नवल हूँ, यंहा कैदियों की चम्पी करता हूँ, बताओ, क्या चाहिए , मोबाइल, बीड़ी, तम्बाकू , गुटका, जर्दा, सिगरेट ,…।(और आँख मारकर)--वो, भी मिलेगी 
मन्नू---यदि, तू यंहा से भागेगा नही , तो, तेरा वो हाल करूंगा, की, तू फिर यंहा से जाने लायक नही रहेगा, निकल  है                                                                        
तभी सिपाही बताता है, की सिपाही---
सिपाही--मालिक, कोई हूर पारी परी आई है, एक बच्चा भी है तभी 
तभी गंगा आ जाती है , किशनवा को लेकर। …। 
                                                                                
mannu--चले जाओ, मुझे किसी से नही मिलना अब गंगा-
गंगा-(पास आकर )-मन्नू, हमसे भी नही मिलोगे 
मन्नू--ओह, गंगा, यंहा, पता है, सब तंग करते है,
मन्नू और गंगा एक दूसरे से आलिंगन-बध्द होकर मिलते है 
मन्नू--गंगा--तुम यंहा मत आया करो 
गंगा--काहे, क्या हम मिल  सकते है 
मन्नू किशनवा को गोद में लेकर --ये बताओ, बचुआ को कुछ खिलाती भी हो या नही 
गंगा-- पूछो ,मत ये सारा दिन पिटे रहता है, पूरा सैंड सांड हो गया है, सोती सोटी लेकर घर भर में  डराता  है 
मन्नू--काहे रे , किशनवा, पढ़ेगा लिखेगा नही, ये क्या बता रही है, तुम्हारी मम्मी 
किशनवा-सोटी निकालकर)-जालमसिंह को मारे। . 
मन्नू सोती सोटी छीन लेता है, ---गंगा , इसे ले जाओ, घर, अब तुम भी मत आना , यंहा, अच्छे लोग नही है, जालिम सिंह , देख लेगा तो 
गंगा--क्या, हम, उससे डरके रहे , वो, कुछ नही कर सकता 
मन्नू--गंगा तुम नही जानती, वो, बहुत क्रूर है , मई तुम्हे, रम्भा व् किशनवा को उसकी नज़रों से बचना चाहता हूँ , जाओ अब गंगा--
गंगा--मन्नू, हमारी एक बात सुनोगे 
मन्नू----नही, गंगा, नही कुछ भी नही सुन सकता 
गंगा--पता है, अर्चना कहती है, की वो, अपने पापा sp साहब से कहकर तुम्हे यंहा जेल से भगा देगी 
मन्नू(फीकी हंसी हंसकर)--और आप ये क्या चाहेगी, की हमारी खातिर , सिंह साहब की नौकरी चली जाए 
गंगा बहुत उदाश हो जाती है 
मन्नू(गंगा के चेहरे को हाथों में लेकर चूमते हुए)--अब, जाओ, गंगा, हम फिर  मिलेंगे, हमारे लिए आंसू भी मत  बहाना 
गंगा की आँखों से आंसू बहने लगते है 
किशनवा गंगा को रोते देखर रोने  -मन्नू-
मन्नू---हम, गौ माँ की खातिर जान दे रहे है, तुम क्यों रोटी हो , ये बहुत पुण्य का  तभी 
तभी , सिपाही आकर कहता है, वक़्त हो गया है 
गंगा जाने के पहले , मन्नू के पांव छूती  है---मन्नू, हम भगवन से मांगेंगे , की तुम हर जन्म में हमको मिलो 
  है,जाने के पहले , मन्नू किशनवा को बहुत लाड़ करता है 
                                                                                             
मन्नू  अभी गंगा  जाते हुए देख ही रहा था , की जालिम सिंह अपने जल्लाद  आ जाता है 
मन्नू--तुम…काहे  ,अब कौन सा नया चाहते  
 जालिम सिंह--हम cm बन गया हूँ , तुम्हे  मिठाई खिलने आया हूँ ,
मन्नू--लेकिन, मन्नू मीठे नही खता, वो, कच्चा दूध ही पिता है 
जालिम सिंह--तेरा कच्चा पक्का मई पूरा कर देता हूँ, जल्लाद। । जलल्लड़--
जल्लाद--जी, मालिक, बताये 
जालिम सिंह--वो, गरम सलाखें तैयार है 
मन्नू पलटता है---क्या कह रहे हो 
जालिम सिंह--तूने हमको बहुत गाली दिया है, हमने सब सहन किया, क्योंकि, हम मुख्या-मंत्री नही था, अब मई सब कुछ हूँ, तेरी आँखे निकलवा लूंगा 
जल्लाद--- मालिक, आप कहोगे, और मई, इसकी आँख में गर्म सलाखें डालूँगा 
जालिम सिंह--(खूब जोरों से हँसता है )---हा हहह ,ये मनुआ, बहुत आँखें निकलता है, हमको डरता है, निकल लो, इसकी ऑंखें, .... 
जल्लाद  जी हुकुम कहकर, जोरों से पलटता है, और जालिम सिंह की आँखों में सलाखें घुसा देता है 
जालिम सिंह बहुत चीखता है,---अबे, क्या किया, मैंने अपनी आँखे फोड़ने तुझे नही बुलाया था 
जल्लाद-मालिक, मुझे जिधर से  ,उधर ही , तो , मै.... 
जालिम सिंह--(तड़पते हुए)--अरे, कोई पानी लाओ, इस भोकने अंधे जल्लाद को जिसने भी , भेजा है, उसे बर्खास्त कर दो, मई सूबे का cm अभी आदेश देता हूँ, 
तभी गुस्ताख़ एक ड्रम में पानी लता  है,और जालिम सिंह के सर को, उसमे डुबो देता है, जालिम सिंह की आँखे उफल्कर, ड्रम के पानी की सतह पर आ जाती है। ……। 
गुस्ताख़---जी  हुकुम,साहब जी, आपका आदेश स्क्रेटरी साहब को भेज रहे है, ये अँधा जल्लाद आज से बर्खास्त किया जायेगा 
मन्नू --हे भगवन, क्या होगा, हमारे सूबे का , अभी तक, मुखिया बहरा था, अब, अँधा भी हो गया 
नवल---लाहौल बिल कुवैत, मालिक वो, सब गए, आप तो, हमारे भगवन है, कृष्ण है, जेल में 
मन्नू--अब, क्या लेकर आया है नवल--
नवल-मालिक, मई आपसे अर्ज करने आया हु, एक मासूम को बचने की बचाने कि। 
mannu, मन्नू-किसे बचाने की बात कर रहा है, तू , जो हमेशा धंदे करता है 
नवल-नही , अब मई ऐसा नही रहा, जब आप गौण गौवों को बचाने के लिए अपने को फांसी पर लटका सकते  तो क्या मई उस मासूम को नही बचा सकता जो, मेरी बच्ची की तरह है 
मन्नू --ठीक है, बता, मुझसे क्या चाहता है 
नवल--मई उसे बचाने आपसे इतना धन चाहता हूँ, की उसे खरीद कर उसके गांव पहुंचा दू 
मन्नू--ठीक है, पर मेरे पास तो, पैसे नही है, मैंने सब अपनी गंगा को दे दिया है 
नवल--ऐसा मत कहिये , मई उसकी चीखे सुनता हूँ, तो, मुझे अपनी उस बच्ची की आवाज आती है, जो अब दुनिया में नही है 
मन्नू--रुक… ये बात है, तो (अपने कुर्ते के निचे से करधनी निकालकर देता है 
नवल---ये,तो, बहुत भरी है, पर आप इसे क्यों पहनते थे 
मन्नू--ये हमारी माई ने हमे दी थी, हम इसे कहा रखते, सो, पहनकर , माई को महसूस करते थे 
नवल--हुजूर, ये तो, बहुत भारी है, आपकी माई क्या थी 
मन्नू---वो, …… नही बताना चाहते, गोविन्द सर्राफ ने बताया था, की ये बनारस की मशहूर नर्तकी की करधनी है 
नवल--९खृडःआणी ९ ९९९९९९९९९९९९९९९९९९९९ करधनी को आँखों से लगा कर)--कसम है, हमर बिटिया की, की , कि इस करधनी से सभी लड़कियों को छुड़ा कर, उनके परवरिश का इंतजाम करूंगा नवल जाते हुए--
नवल (जाते वक़्त)आपको, मुझपर विश्वास है, की नही 
मन्नू---अबे जाता है, या मरुँ जूता, तुझे… भाग दिमाग खता है, जब देखो 
मन्नू ---अब कौन है 
दादी ---अरे , मनवा हमें भूल गए 
मन्नू--(पलटकर, देखता है, फिर जंगले तक आता है )--दादी पैलगी , पायलागी , घुटने तक पाव्लागी दादी, चरण-स्पर्श 
दादी के आँखों में आंसू आ   में से  पर हाथ फेरते हुए ---बचुआ   हो, तुम्हारे ऐसे मर-मिट जाने से , वो, जालिम सिंह, गौओं को नही मरेगा 
मन्नू--दादी, किसी को तो, मिटना ही होगा ,    हत्यारे है , वो, जाने- जायेंगे , मन्नू मर  क्या दादी 
दादी---लेकिन गंगा और किशनवा। .... 
-मन्नू--किसी और के भी गंगा -किशनवा तो होंगे  ,कबतक, हम गौओं की हत्या कबतक सहेंगे, अपने बच्चों की  ,तो, कोई गौ-वंश नही बचेगा 
दादी ९आन्सु पोछते हुए)---तुम्हे जो करना हो करो 
मन्नू---दादी, पांव छूटे है, की आप गंगा और किशनवा का ध्यान रखोगी 
दादी  मन्नू को आशीष देकर लौट ज्जति है लौटने के पहले, वे उसे दो बाल्टी दूध भी देकर जाती है 
मन्नू ---बस दादी, इतना काफी है, मरते डैम तक। …