रात की काली लकीरों ने कब घेरा,नहीं पता मैं तनहा कभी न थी ,ये तुम्हें भी पता नथाआज भी किसी ने मुझे थामा है तुम ही हो शायद , क्या पता ?
रात की काली लकीरों ने कब घेरा,नहीं पता
ReplyDeleteमैं तनहा कभी न थी ,ये तुम्हें भी पता नथा
आज भी किसी ने मुझे थामा है तुम ही हो
शायद ,
क्या पता ?