Saturday 13 June 2015

एक ही दिल है 
और एक ही जान है 
कंहा कहा 
किसे कितना देना है 
ये सवाल नही है 
प्रशन इन्ही है 
कि 
दिल भी 
दिल से दिया जाये 

1 comment:

  1. रात की काली लकीरों ने कब घेरा,नहीं पता
    मैं तनहा कभी न थी ,ये तुम्हें भी पता नथा
    आज भी किसी ने मुझे थामा है तुम ही हो
    शायद ,
    क्या पता ?

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