इन्ही
इन्ही यही कहना है
कि
तुम्हारा मुखड़ा
किसी आरती की तरह है
और,
तुम्हारी आँखे है
प्रातः में
क्षितिज में उभरी
सुनहरी लाली की तरह
इतनी ही पवित्र हो तुम
जितना
कि
चांदनी रात में
किसी फूल पर
झरी हुई ओंस की बून्द हो
मेरे पास
न बिम्ब है
न, उपमा
जो,
प्रकृति है
वो, तेरे सौंदर्य की
एटीएम-मुग्ध
आत्म रति भर है
इन्ही यही कहना है
कि
तुम्हारा मुखड़ा
किसी आरती की तरह है
और,
तुम्हारी आँखे है
प्रातः में
क्षितिज में उभरी
सुनहरी लाली की तरह
इतनी ही पवित्र हो तुम
जितना
कि
चांदनी रात में
किसी फूल पर
झरी हुई ओंस की बून्द हो
मेरे पास
न बिम्ब है
न, उपमा
जो,
प्रकृति है
वो, तेरे सौंदर्य की
एटीएम-मुग्ध
आत्म रति भर है
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