Monday 8 June 2015

 इन्ही 
इन्ही यही कहना है 
कि 
तुम्हारा मुखड़ा 
किसी आरती की तरह है 
और,
तुम्हारी आँखे है 
प्रातः में 
क्षितिज में उभरी 
सुनहरी लाली की तरह 
इतनी ही पवित्र हो तुम 
जितना 
कि 
चांदनी रात में 
किसी फूल पर 
झरी हुई ओंस की बून्द हो 
मेरे पास 
न बिम्ब है 
न, उपमा 
जो,
प्रकृति है 
वो, तेरे सौंदर्य की 
एटीएम-मुग्ध 
आत्म रति भर है 

No comments:

Post a Comment