Friday 11 December 2015

वो जो नशा है , नही उतरता आज तक, तब जो पढ़ती थी , वह दिमाग में रच-बस गया है, जिंदगी ने बहुत रंग बदले है, पर वो रंग नही उतरता है 
घर से स्कूल के बाद  पसंदीदा जगह थी, वो, घर की बाड़ी थी, और  खलिहान था, जन्हा मई पढ़ती थी, चना , तुअर के  पढ़ना , और अमराई में  से एक  महसूस करना 
वंही अपने साहित्य को मैंने अपना लिया , मुझे नही पता था, कि ज्ञान को करेंसी में कैसे बदलते है 
मेरे इये लिए जिंदगी का मतलब था, पढोलिखो 
फिर मुझे ८थ कक्षा  ग्रामीण छात्रवृति हेतु चयन किया गया तो , बालाघाट जाना पड़ा, जन्हा मैंने bscतक की पढ़ाई की, कविता लिखना ८ वि से शुरू हुआ और बिना किसी के मार्गदर्शन के मुझे  कहानी िखने का रोग लग गया , ये ऐसी आदत थी, की जिसे मैंने नही जाना, कि इससे कोई पैसा मिलेगा या नही, बीएस क्लास की पढ़ाई फिर अपने कविता कहानी की अलग दुनिया 
जिसे कहते है, कि गयी काम से 
या लिखने में गई तो, कोई काम की नही रही , बलाघात से मई  llbकरने नागपुर गयी , वंही मेरा शादी के लिए चयन हो गया , चयन इसलिए कि ये भी एक जॉब था, उर मई अपनी लॉ की पढ़ाई, और नई गृहस्थी में तालमेल बिठालती रही, जो आजतक जारी है 
 भी थी, जो भी हस्र था , जो भी ष्ण था,, मैंने हमेशा सबसे अच्छा करना है, ये जीवन की  ,इन्ही समझा 
रात दिन म्हणत की , psc & cj  की एग्जाम में लगी, बीटा चूका था, घर में  देते थे, पीटीआई के ईटा ने जिन हराम कर रखा था, वह सब लिखने से लड़कियों का मन भयभीत होता है, इसलिए  भुला कर  की बातें लिखना चाहूंगी , कि जब मई  सेवा के लिए लिखित व् साक्षात्कार में अव्वल आई, इर भी मुझे वेटिंग में डाल दिया गया, और मई सरकारी नौकरी से वंचित रह गयी, उस वक़्त हमारी साहू कास्ट को obc में नही लाया गया था, पर मेरे मेरे मार्क्स इतने धांसू थे, कि मुझे  जरुरत नही रह गयी   लग्गाभी कोई चीज हटा  राज्य सेवा से वंचित तो  रही,र मुझे प्रशाशन का ऐसा नशा ग की आजतक मई रधानमंत्री को आने पत्र लिख  ,सॉरी, प्रधानमंत्री जी को , खैर  ठहरा मेरा जूनून पागलपन, जो आजतक सर चढ़कर बोलता है 
मई बाकी बातें कल लिखूंगी ,  कहानी, जो लेखन की यात्रा थी, रही वो, बहुत सीधी नही थी ,   इसमें 

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