Tuesday 8 December 2015

अब तो हम झूठ-मुठ इज्जत की बात नही कर सकते बहुत ही ज्यादा पतन हुआ है 
बुआ जी के घर से दूर होकर, मैंने खुद को पुस्तको में तलाशा 
और, पढ़ाई-लिखे की दुनिया में प्रवेश कर गयी , अपने ही मन से, किसी ने प्रेरित नही किया घर के विस्तृत परिसरों ने मुझे लिखने-पढ़ने की आज़ादी दी, और ऐसा माहौल मुहैया करा दिया, की मई उस दुनिया में खो सी गयी बुआ जी अब भी याद आती , पर मैं अब रोटी नही थी, और किताबों के किरदारों पर विचार करती मुझे किताबों की दुनिया अपनी लगने लगी, और मुझे वंहा अपने नए सपने झलकने महसूस हुए 
मैंने भारत के लिए सपनो पर जो भेजा लिखकर, उससे , एक रेडिओ आया था, लेकिन पैसे भी देने थे, तो, अपने सपनो के भारत के उपहार को एक पंचयत पंचायत बाबू ने ले लिए, वो पहला गिफ्ट था , जिसने बता दिया की मुझे कीमत अदा करनी है मुझे बुआ जी के बाद जो भी उपहार मिले, वो मेरे घर से मिले, मैंने बाहर से कभी कंही से एक भी गिफ्ट नही जाना शायद मेरी किस्मत नही थी पर , मुझे जो नेचर ने प्रकृति ने गिफ्ट किया वो, इतना ज्यादा था, की मैंने बेतहासा लिखा, और, अपने देश के प्रधानमंत्रियों को समय समय पर  लिख भेजा पर, वंहा या कंही से कुछ नही मिला मेरी किस्मत ऐसी कि पसक pscकी परीक्षाओं में पास होकर मई प्रतीक्षा सूचि में चली गयी, फिर मई लिखने लगी इतना लिखा कि पूछो मत, पर वंहा भी अपना सब कुछ गंवा कर भी मुझे कुछ भी हासिल नही हो सका , कोई इस क्षेत्र में अपना नही था सब कुछ पैसे से हासिल था, या कोई पहचान या सिफारिश पर, मई सब जगह शिकस्त कहती रही मेरे इस हार ने, मेरी असफलता ने मेरे बेटे को  बीमार कर दिया 
मैंने फिल्म लाइन ज्वाइन करना चाहा, लिखने से लेकर डायरेक्शन तक, सब मृगतृष्णा थी आज भी लिखना 
पढ़ना नही छूट रहा , सब लोग मुझे कहते है, जब कुछ नही मिलता तो, क्यों लिखती है यंहा तक कि मुझपर बेटे की अनदेखी करने का इल्जाम , क्या क्या नही सहा ये सब सहकर, किसी को लिखने की सलाह नही दे सकी , 
आज जब शेयर मार्किट में नुकसान की तब समझ रही हूँ कि ये मेरी लाइन नही है मई देश के लिए सपने देख , रही थी  किन्तु,इसके लिए  होना , ये सब  के सहारे व् परिचय से  होता है परिचय व्  किसी भी लाइन में आपको पंगु  बना  

No comments:

Post a Comment