Sunday 6 December 2015

hnsa jaye akela

बुआ जी के घर का हैंगओवर या नशा आजतक उतरा नही है, वो, आज भी मेरे मन में वैसे ही है 
बुआ जी कितनी गंभीर और मेरे प्रति कितनी चिंतातुर होती थी पर , उनके घर मुझे कोई दुःख तो था नही, ये समझो , की दुःख या चिंता नही जानी थी 
वंहा मई डरना लगी थी, जब उनके घर बुआ जी की  मृत्यु हो गयी तो, मुझे  डॉ लगने लगा था,  अक्सर नज़र आती , और मई डॉ जाती थी, ऐसे में एक रात  
और  मुझे बुआ जी का घर छोड़ना पड़ा था , वो बहुत  दौर था 
एक ऐसा वक़्त जो, हमने साथ गुजर, अचानक जब  चली आई तो, बुआ जी के दुःख का ठिकाना नही रहा 
अपने बेटे व् पीटीआई को खो चुकी थी, अपनी नन्द  की मृत्यु भी उन्होंने अकेले , इतनी सारी मौतों के बाद उस घर में मैं अपने बाल-सुलभ क्रीड़ाओं से जैसे जिवंत रखती थी 
बा जी   मेरे संग सब भूल जाती थी , यूँ मेरे डरकर चले आने से वे कितनी टूट गयी थी,  पहाड़ जैसा दुःख उनपर आ पड़ा था, कहा बेटे के बिछड़ने के गम से वो, उबर रही थी 
और , अब फिर से अकेली, टूटी सी  ,उदास  अकेली,तन्हा रह गयी थी 
उन्हें धीरोजा व् दूसरी पड़ोसनें मेरी  थी मेरी बातें करना ही उन्हें अच्छा  लगता था फिर  बातें गोष्ठियों की तरह बा  घर होती, उन सभी औरतों  प्रिय विषय  गयी. अपने खेती -बाड़ी के काम से  जब उन्हें फुर्सत मिलती   तो , वे सब मेरी बातें करती। ...छोटी बाई ये  थी...  थी 
मेरे बारे में , मेरी पढाई , मेरे शांत नेचर और शायद कि वे सब मुझे तहेदिल से  चाहती थी 
बुआ जी फिर मेरी यादों में ही खोई रहने  हमेशा घर- जिधर भी जाती , मुझे  थी जब बुआ जी बाबूजी के गांव मुझसे  तो,  जाने कैसे  बैलगाड़ी आने  खबर जाती, आर  और, मई दौड़ती हुई,  बैलगाड़ी तक पहुँचती, इतनी खशी बुआ जी व् मुझे होती, जो बयान  बाहर होती,  आँखें  जाती थी, बुआ जी  तो,जैसे निहाल हो जाती, उनकी आँखों  आंसू भर आते  , और मई तो, जैसे  जाती, बीएस बुआ जी आ गयी , एहि मुझे याद रहता  बुआजी के लिए खत  चारपाई बिछाती ,  जैसे थकी क्लांत सी आती, फिर थक सी जाती,
मुझे देख उन्हें  मिलती होगी , ये आज मई महसूस 
 जब तक  जी रहती , मई  सबकी बातें पूछती , बुआ जी भी बताती, कैसे सब याद करते    
ममता                                                मेरी  

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