Saturday 16 November 2013

रम्भा 
रम्भा 
रम्भा को बाँहों में उठाये , मन्नू बहुत दूर तक दौड़ता जाता है 
फिर वो एक झटके में उसे उतर देता है 
रम्भागुस्सा होकर )-कहलवाती , तुम मुझे गिरा डौगी 
मन्नू अपनी ड्रेस ठीक करते हुए)-बीबीजी, तुम्हे तो, सिर्फ अपनी ही फ़िक्र रहती ह, मुझे बाकि कि भी अपने भीतर परवाह करनी होती है 
रम्भा गुस्सा होकर)-तुमने मुझे, जेम्स से दूर क्यों लायी 
मन्नू-वो, जगमोहन, मेरा सौता। … 
रम्भा अस्चर्य से)--ये क्या होता है कहलवाती 
मन्नू बनते हुए )ये मत पूछो, बहुत दिल जलता है , वो क्या है कि, आप उसे चाहती है , और मई आपको तो 
वो मेरा सौता हुवा
रम्भा--मुझे भी सौति बना लो 
मन्नन्ननउ --वो तो आप पूजा कि बन गयी है 
रम्भा --ये पूजा कौन है 
मन्नन्नु -मत पूछो, बीबी जी , उसके बिना नही कोई दूजा , बहुत अच्छी है, आप उसे अपनी सौति बना लो 
रम्भा खुश होकर )- सच , पर कैसे 
मन्नू उसके कण के प् मुख ले जाकर )-वो किसी से कहना नही , आप सिर्फ मन्नू को चाहो, तो 
रम्भा--क्या , नही 

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