Monday 11 November 2013

मन्नू जो कि कहलवाती बना है , रम्भा के साथ गांव में जगमोहन के घर जा रहा है 
रस्ते में एक वृद्ध मिलते है ,जो लकड़ी रखकर जा रहे है 
रम्भा--सो साद , उन्हें क्या दीखता नही 
मन्नू ,जो कहलवाती बना है ---वो अंधे नही , प्यार में अंधे है 
रम्भा---बुत व्हाई, वो तो बूढ़े है 
मन्नू--अरे, बड़े चालू है, कोई बूढ़े नही है बनते हऐ , वो अंधे बनने का नाटक करते है तो , लड़कियां उन्हें सड़क पर करती है , तो वो उनके कंधे    पर हाथ रख लेते है, सच मुझे उनसे जलन होती है 
रम्भा---ये लो मई तुम्हारे कंधे पर हाथ रख लेती हूँ, पर तुम जलो मत 
मन्नन्नन्नु--बीबी जी, तब तो पूरी आग लग जायेगी 
रम्भा --ऐसा मत कहो , मुझे आग पसंद नही 
मन्नू---बीबी जी पानी पसंद है 
रम्भा--आई डोंट नो , जल्दी उनकी स्टोरी बताओ 
मन्नू--बता रही हूँ न, वो आप उसमे ज्यादा रूचि मत लीजिये , मुझे जलन होती है 
रम्भा --जल्दी बताओ 
मन्नू- बता, रहा,
रम्भा-रहा 
मन्नू -नही बीबी जी, आप इतना लती मत निकालो , वो देवू चाचा है , रोज एक लकड़ी लेकर निकल जाते है , और गांव भर में ये कहते हुए घूमते है , कि पारो,  मुझे जूट मारो , जूते  मआरो 
रम्भा- फिर 
मन्नू ---
शेष संवाद कल 

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