Monday 26 May 2014

१५ जून को मुंबई छोड़ते हुए मन में उमंग भी है , मन भारी भी है ,
बिना जान-पहचान के मई यंहा आ गयी , तीसरी बार मैंने fwa का मेंबरशिप ली, 
मेरी लिए बेहद भावुकता भरा क्षण होगा, क्योंकि लगातार संघर्ष में भागते मेरे ४ माह 
कैसे बिट गए, पता ही नही चला।  अब जब घर जाउंगी, वंहा भी घोर व्यस्तता मेरी 
प्रतीक्षा में होगी , वंहा की जिम्मेदारियों से निपटकर फिर मुंबई का रुख करूंगी, लोग कहते है, इसे सपनों का शहर , यंहा रहने पैसा व् काम जॉब चाहिए। 
आज मई रजत रवैल के ऑफिस गयी जो, की राहुल रवैल के बेटे है , बहुत ही जाहिं है 
जाहिं , वे लोग बहुत अच्छे है, किसी भी प्रोडक्शन हाउस से जुड़ूंगी, अगली बार लौटूंगी, तो ११ माह रहूंगी , देखे क्या होता है 
आज फ्रांसिस के फ्लैट पर गयी, अपना बायो के साथ कमेंट छोड़ा , की उनकी प्रेरणा से मैंने एक सांग 
बनाया है , देशी फंक , देखे वे क्या कहते है 
ये शहर मुझे प्यारा लगता है, क्योंकि मेरे सपनों का रास्ता इन्ही से होकर जाता है 
नेक्स्ट टाइम मई बड़े प्रोडक्शन हाउस जाउंगी, इस बार मई बेटे के इलाज में लगी रही ,
जिसमे सफल भी रही , दवा में काफी खर्च किया , बीटा ठीक होकर मुझे गांव जाने कह रहा , उसे उसके 
काम व् जिंदगी से लगाना जरुरी है 
अपना काम उसके बाद आता है इस बीच मेरी किताब, पारिजात भी छापने चली गयी है बेशक ,
बहुत हलचल भरे दिन है ये। …… 

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