Saturday 29 November 2014
Thursday 27 November 2014
bnaras ki byar: फिरसे मुंबई की सोचते हुए कल, जब मैंने ढलती साँझ म...
bnaras ki byar: फिरसे मुंबई की सोचते हुए
कल, जब मैंने ढलती साँझ म...: फिरसे मुंबई की सोचते हुए कल, जब मैंने ढलती साँझ में उस शख़्श को मोबाइल किया जिसके यहनहा हमने डायरेक्शन सीखा था ये कहे की , उसे सिखाया ...
कल, जब मैंने ढलती साँझ म...: फिरसे मुंबई की सोचते हुए कल, जब मैंने ढलती साँझ में उस शख़्श को मोबाइल किया जिसके यहनहा हमने डायरेक्शन सीखा था ये कहे की , उसे सिखाया ...
फिरसे मुंबई की सोचते हुए
कल, जब मैंने ढलती साँझ में उस शख़्श को मोबाइल किया
जिसके यहनहा हमने डायरेक्शन सीखा था
ये कहे की , उसे सिखाया था तो, उसने जो बातें कही
उसका सार सारांश ये था की वो,
चाहता था, की
मई उसकी किसी बात अ विरोध नही करूँ
और जो, वो चाहे उसे करने दू ये उसके जैसे लोगों की मानसिकता है है
उसे तो बताना ही होगा
की उसकी तुच्छ फिल्मों
शायद पैसे कमाए की मशीनों के लिए
मई कोम्प्रोमाईज़ नही करूंगी
ये उसकी फूड ही नही
कमीनी सोच है उसके जैसे लार टपकने वाले गिरोह वाले
मेरे बारे में इन्ही फैलाते है की
मई तो, विरोध करती हं
और तुच्छ फिल्मों की खातिर
जैसा चाहे वैसा नही करने इति
उसकी मेरे मोबाइल पर काल है
मई इस सम्बन्ध में पीएमओ को
जरूर लिखूंगी ये भी बता दूँ
जो, ये सोचते है की पीएमओ को लखने से क्या होता है वो, गलत सोचते है
आप जरूर संसद को लिखे आपकी चिट्ठी पर
गौर तो किया ही जायेगा
हाँ, प्रत्युत्तर की अपेक्षा नही कीजिये
कल, जब मैंने ढलती साँझ में उस शख़्श को मोबाइल किया
जिसके यहनहा हमने डायरेक्शन सीखा था
ये कहे की , उसे सिखाया था तो, उसने जो बातें कही
उसका सार सारांश ये था की वो,
चाहता था, की
मई उसकी किसी बात अ विरोध नही करूँ
और जो, वो चाहे उसे करने दू ये उसके जैसे लोगों की मानसिकता है है
उसे तो बताना ही होगा
की उसकी तुच्छ फिल्मों
शायद पैसे कमाए की मशीनों के लिए
मई कोम्प्रोमाईज़ नही करूंगी
ये उसकी फूड ही नही
कमीनी सोच है उसके जैसे लार टपकने वाले गिरोह वाले
मेरे बारे में इन्ही फैलाते है की
मई तो, विरोध करती हं
और तुच्छ फिल्मों की खातिर
जैसा चाहे वैसा नही करने इति
उसकी मेरे मोबाइल पर काल है
मई इस सम्बन्ध में पीएमओ को
जरूर लिखूंगी ये भी बता दूँ
जो, ये सोचते है की पीएमओ को लखने से क्या होता है वो, गलत सोचते है
आप जरूर संसद को लिखे आपकी चिट्ठी पर
गौर तो किया ही जायेगा
हाँ, प्रत्युत्तर की अपेक्षा नही कीजिये
Wednesday 26 November 2014
Monday 24 November 2014
Saturday 22 November 2014
bnaras ki byar: रेनू शुक्ला ये पोएट्री शायद आपके लिए होगी ये बरसो...
bnaras ki byar: रेनू शुक्ला ये पोएट्री शायद आपके लिए होगी
ये बरसो...: रेनू शुक्ला ये पोएट्री शायद आपके लिए होगी ये बरसों पहले लिखी ग़ज़ल है शायद तुम जैसी कोई नायिका तब इस कविता के केंद्र में रही होगी वो, त...
ये बरसो...: रेनू शुक्ला ये पोएट्री शायद आपके लिए होगी ये बरसों पहले लिखी ग़ज़ल है शायद तुम जैसी कोई नायिका तब इस कविता के केंद्र में रही होगी वो, त...
रेनू शुक्ला ये पोएट्री शायद आपके लिए होगी
ये बरसों पहले लिखी ग़ज़ल है
शायद तुम जैसी कोई नायिका तब इस कविता के केंद्र में रही होगी
वो, तब कल्पना थी, जो आज सच लगती है
फ़िलहाल , ये ग़ज़ल तुम पर सच लगती है
तुम्हारी चितवन में जागा जागा इशारा है। ………।
तुम्हारी चुडिओं की खनक , तुम्हारी झांजर की झंकार
तुम्हारे आने के पहले करती है, तुम्हारे आने का इजहार
शर्म से तुम्हारे गालों पर ,सुर्ख लाली का बिखर जाना
और हंसती हुई आँखों में ,लाल डोरों का छा जाना
बातों बातों में बेखबर सा , हंसके तुम्हारा बल खाना
कन्धों से तुम्हारे पल्लू का धीमे से ढलक जाना
अदाओं से मुस्कराकर , तुम्हारा वो, इठलाना
दिल पर छा जाता है , वो अल्हड़ता में इतराना
तुम्हारी शोखी , तुम्हारी हंसी , और तुम्हारी चंचलता
लगती हो, तुम बारिश में , लरजती हुई , कुसुम लता
हर बात पर हंसना तुम्हारा , हर बात पर खिलखिलाना
फिर हाथ छुड़ाके, दामन बचाके , तुम्हारा निकल जाना
मेरे इन्तजार में गुलमोहर तले ,खड़े होकर गुनगुनाना
शर्मों हया से फिर तुम्हारा , बाँहों में सिमट जाना
कभी करीब आकर तड़पना , कभी दूर जाकर तड़पाना
रुला देता है , कभी-कभी,तुम्हारा बेलौस मुस्काना
नजरों को मिलाना , मिलाके झुकाना , झुकाके उठाना
मेरी किसी बात पर , तुम्हारा खुलकर खिलखिलाना
तुम्हारा हर अंदाज मुझे प्यारा है , हर अंदाज निराला है
तुम्हारी तिरछी चितवन में , जागा जागा सा इशारा है
(ये मेरी बरसों पहले लिखी ग़ज़ल है )
ये बरसों पहले लिखी ग़ज़ल है
शायद तुम जैसी कोई नायिका तब इस कविता के केंद्र में रही होगी
वो, तब कल्पना थी, जो आज सच लगती है
फ़िलहाल , ये ग़ज़ल तुम पर सच लगती है
तुम्हारी चितवन में जागा जागा इशारा है। ………।
तुम्हारी चुडिओं की खनक , तुम्हारी झांजर की झंकार
तुम्हारे आने के पहले करती है, तुम्हारे आने का इजहार
शर्म से तुम्हारे गालों पर ,सुर्ख लाली का बिखर जाना
और हंसती हुई आँखों में ,लाल डोरों का छा जाना
बातों बातों में बेखबर सा , हंसके तुम्हारा बल खाना
कन्धों से तुम्हारे पल्लू का धीमे से ढलक जाना
अदाओं से मुस्कराकर , तुम्हारा वो, इठलाना
दिल पर छा जाता है , वो अल्हड़ता में इतराना
तुम्हारी शोखी , तुम्हारी हंसी , और तुम्हारी चंचलता
लगती हो, तुम बारिश में , लरजती हुई , कुसुम लता
हर बात पर हंसना तुम्हारा , हर बात पर खिलखिलाना
फिर हाथ छुड़ाके, दामन बचाके , तुम्हारा निकल जाना
मेरे इन्तजार में गुलमोहर तले ,खड़े होकर गुनगुनाना
शर्मों हया से फिर तुम्हारा , बाँहों में सिमट जाना
कभी करीब आकर तड़पना , कभी दूर जाकर तड़पाना
रुला देता है , कभी-कभी,तुम्हारा बेलौस मुस्काना
नजरों को मिलाना , मिलाके झुकाना , झुकाके उठाना
मेरी किसी बात पर , तुम्हारा खुलकर खिलखिलाना
तुम्हारा हर अंदाज मुझे प्यारा है , हर अंदाज निराला है
तुम्हारी तिरछी चितवन में , जागा जागा सा इशारा है
(ये मेरी बरसों पहले लिखी ग़ज़ल है )
Friday 21 November 2014
अपनी
अपनी किताब के इंतजार में हूँ
किसी काम में मन नही लगता
रत को
रात में नींद खुलती है
तो, किताब आती है
ते किताबें बहुत सताती है
आप कभी
किताब के चक्कर में मत होना
वरना, बहुत तन्हा हो जायेंगे
कोई, साथ नही देता
हमे अकेले ही अपनी समस्या झेलनी होती है
प्रकाशक को इससे मतलब नही की
हम लेखक कितना जुड़े होते है
अपनी आने वाली किताब से
अपनी किताब के इंतजार में हूँ
किसी काम में मन नही लगता
रत को
रात में नींद खुलती है
तो, किताब आती है
ते किताबें बहुत सताती है
आप कभी
किताब के चक्कर में मत होना
वरना, बहुत तन्हा हो जायेंगे
कोई, साथ नही देता
हमे अकेले ही अपनी समस्या झेलनी होती है
प्रकाशक को इससे मतलब नही की
हम लेखक कितना जुड़े होते है
अपनी आने वाली किताब से
Wednesday 19 November 2014
Tuesday 18 November 2014
मुझे
मुझे बनारस की बयार से ये दिशा निर्देश प्राप्त हुए है की
मई जो भी पोएट्री लिखूं
वो, स्तरीय हो
कंही से भी फूहड़ता न हो
और कोई गलत बात न हो
जिससे किसी के भी भावनाओं को ठेस पहुंचे
इश्लीए हमे कुछ भी लिखना है
वो, बहुत सोच समझ के हो
साहित्यिक हो
और वो, बनारस की बयार को भी पसंद हो
बयार आजकल गंभीर मूड में है
वो, बेमतलब के हंसी-मजाक को बर्दास्त नही करती
और
उसे ये बिलकुल पसंद नही की
कोई, कुछ भी लिख मारे
सब नही होता
इश्लीए इसमें हम जिंदगी की बात लिखेंगे
मेरी नावेल के प्रकाशक
आजकल, ठीक से जवाब नही दे रहे है
मई अपनी किताब के लेट होने से भी परेशान हु
आप सभी को जो वाद , वादा किया था, वो
मेरी लेट होने से झूठा हो गया
इससे भी मई खिन्न हूँ
आजकल, वैसे भी परीक्षाओं के दिन है
जो, शिक्षा जगत से है
वे सभी व्यस्त है
मई भी संभलकर लिखूंगी
किताब आ जाए
और उदाशि दूर सके
मुझे बनारस की बयार से ये दिशा निर्देश प्राप्त हुए है की
मई जो भी पोएट्री लिखूं
वो, स्तरीय हो
कंही से भी फूहड़ता न हो
और कोई गलत बात न हो
जिससे किसी के भी भावनाओं को ठेस पहुंचे
इश्लीए हमे कुछ भी लिखना है
वो, बहुत सोच समझ के हो
साहित्यिक हो
और वो, बनारस की बयार को भी पसंद हो
बयार आजकल गंभीर मूड में है
वो, बेमतलब के हंसी-मजाक को बर्दास्त नही करती
और
उसे ये बिलकुल पसंद नही की
कोई, कुछ भी लिख मारे
सब नही होता
इश्लीए इसमें हम जिंदगी की बात लिखेंगे
मेरी नावेल के प्रकाशक
आजकल, ठीक से जवाब नही दे रहे है
मई अपनी किताब के लेट होने से भी परेशान हु
आप सभी को जो वाद , वादा किया था, वो
मेरी लेट होने से झूठा हो गया
इससे भी मई खिन्न हूँ
आजकल, वैसे भी परीक्षाओं के दिन है
जो, शिक्षा जगत से है
वे सभी व्यस्त है
मई भी संभलकर लिखूंगी
किताब आ जाए
और उदाशि दूर सके
Saturday 15 November 2014
Banaras की बयार पर जो
Poetry लिखी जा रही है
Them १८००० लाइन की है १९००० हो सकती है
On कम नही होगी
Beginning करें
Of बनारस की बयार की
Which,चंचल बादामी ऑंखें है
Themइश्लीए है की
Them जलते दिए को
Childhood में निहारा करती थी दिए की लौ
The चंचल होती
Her आँखें भी उतनी ही
Intense थी,
Almond इश्लीए है
The, बयार की माँ ने
Hare , बयार के जन्म के बाद
Very बादाम खाए थे
Breeze बहुत मटकती थी
Childhood में
All मटक कली की तरह। ………
Continue
Poetry लिखी जा रही है
Them १८००० लाइन की है १९००० हो सकती है
On कम नही होगी
Beginning करें
Of बनारस की बयार की
Which,चंचल बादामी ऑंखें है
Themइश्लीए है की
Them जलते दिए को
Childhood में निहारा करती थी दिए की लौ
The चंचल होती
Her आँखें भी उतनी ही
Intense थी,
Almond इश्लीए है
The, बयार की माँ ने
Hare , बयार के जन्म के बाद
Very बादाम खाए थे
Breeze बहुत मटकती थी
Childhood में
All मटक कली की तरह। ………
Continue
Friday 14 November 2014
Thursday 13 November 2014
Wednesday 12 November 2014
केदारनाथ
केदारनाथ सिंह की कविता
बनारस मुझे बहुत प्रिय है
किन्तु, उसे यंहा लिख नही सकी हूँ
बनारस पर और भी पोएम देख रही हु बनारस की बयार
आखिर वो आपका शहर है
मेरे पास जब पैसे होंगे
तो, मई वंही घूमूंगी और मेरे पास होगा
एक कैमरा
बीएस, होगी , कोई पहचान
तब, मई बनारस को
विस्फारित नैनों से
साँझ की गोधूलि में
धुंदलाते
और तारों की छाँह में
किसी नव-वधु की भांति
उभरते
देखूंगी
केदारनाथ सिंह की कविता
बनारस मुझे बहुत प्रिय है
किन्तु, उसे यंहा लिख नही सकी हूँ
बनारस पर और भी पोएम देख रही हु बनारस की बयार
आखिर वो आपका शहर है
मेरे पास जब पैसे होंगे
तो, मई वंही घूमूंगी और मेरे पास होगा
एक कैमरा
बीएस, होगी , कोई पहचान
तब, मई बनारस को
विस्फारित नैनों से
साँझ की गोधूलि में
धुंदलाते
और तारों की छाँह में
किसी नव-वधु की भांति
उभरते
देखूंगी
Monday 10 November 2014
Sunday 9 November 2014
बनारस की बयार
एक वो भी दिन था जब
ठण्ड के दिनों में
रविवार सन्डे को,
तुम्हारे आँगन में सखी सहेलियों का हुजूम होता
और घर का माहौल
हंसी कहकहों से गूंजता था
तुम इधर से उधर
सबके संग सबकी बातों को सुनती
कुछ अपनी कहती
ज्यादा मुस्कराती हुई
डोलती रहती
वो, भी क्या वक़्त था
जब तुम्हारा और तुम्हारी सखी
सिवांजलि का
पीएचडी के लिए सिलेक्शन हो गया था
तुम खुश थी
तुम्हारे पल्लव कुसुम सरीखे अधरों पर
कितनी प्यारी मनमोहक मुस्कान थी
तुम कुछ घबराई सी तब बनारस
जाने की तयारी में मग्न थी
और घर में दादी तुम्हे
कितनी हिदायतें थमा रही थी
और तुम्हारी म्म्म्मी भी तो
तुम्हारे बिना घर की कल्पना से
कुछ मायुश थी
किन्तु, तुम जल्द ही बनारस पहुंची थी
वो, भी क्या दिन थे
जब भू बी ेहाच उ में
तुम्हारा जलवा बिखर रहा था
तुम कितनी सीधी, व् गंभीर रहती थी
किन्तु, तुम्हारी हंसी सखी सहेलियों के बीच तो थी ही
बेलॉश , बेलोश , बेलौश
तुम वाकई बहुत सिंसियर थी
जो भी करती मन लगा कर करती
ऐसे की उसमे जान दाल देती थी जानेमन
एक वो भी दिन था जब
ठण्ड के दिनों में
रविवार सन्डे को,
तुम्हारे आँगन में सखी सहेलियों का हुजूम होता
और घर का माहौल
हंसी कहकहों से गूंजता था
तुम इधर से उधर
सबके संग सबकी बातों को सुनती
कुछ अपनी कहती
ज्यादा मुस्कराती हुई
डोलती रहती
वो, भी क्या वक़्त था
जब तुम्हारा और तुम्हारी सखी
सिवांजलि का
पीएचडी के लिए सिलेक्शन हो गया था
तुम खुश थी
तुम्हारे पल्लव कुसुम सरीखे अधरों पर
कितनी प्यारी मनमोहक मुस्कान थी
तुम कुछ घबराई सी तब बनारस
जाने की तयारी में मग्न थी
और घर में दादी तुम्हे
कितनी हिदायतें थमा रही थी
और तुम्हारी म्म्म्मी भी तो
तुम्हारे बिना घर की कल्पना से
कुछ मायुश थी
किन्तु, तुम जल्द ही बनारस पहुंची थी
वो, भी क्या दिन थे
जब भू बी ेहाच उ में
तुम्हारा जलवा बिखर रहा था
तुम कितनी सीधी, व् गंभीर रहती थी
किन्तु, तुम्हारी हंसी सखी सहेलियों के बीच तो थी ही
बेलॉश , बेलोश , बेलौश
तुम वाकई बहुत सिंसियर थी
जो भी करती मन लगा कर करती
ऐसे की उसमे जान दाल देती थी जानेमन
Friday 7 November 2014
Thursday 6 November 2014
मृगलोचनी
मृदुभासणी
बनरस की बयार
रम्भा को उसके प्रिय मन्नू ने आजिज आकर लिखा
प्रियतमा
तुम्हारे बिना जिन क्लेश जैसा है
तुम बिन, अपना देश प्रदेश जैसा है
बताओ, क्या करें,
जब याद तुम्हारी सताए
तो, रम्भा ने दो टूक जवाब दिया
हम तो परायी ब्याहता है
जब हमारी याद का तुम्हे हक़ नही
तो, याद क्यों करते हो
इश्लीए याद आये तो गंगा जी का नाम लेकर
डुबकी लिया करो,
मन्नू , तभी से हर हर रम्भे कर
डुबकी लगते है , अलष-भोर
मृदुभासणी
बनरस की बयार
रम्भा को उसके प्रिय मन्नू ने आजिज आकर लिखा
प्रियतमा
तुम्हारे बिना जिन क्लेश जैसा है
तुम बिन, अपना देश प्रदेश जैसा है
बताओ, क्या करें,
जब याद तुम्हारी सताए
तो, रम्भा ने दो टूक जवाब दिया
हम तो परायी ब्याहता है
जब हमारी याद का तुम्हे हक़ नही
तो, याद क्यों करते हो
इश्लीए याद आये तो गंगा जी का नाम लेकर
डुबकी लिया करो,
मन्नू , तभी से हर हर रम्भे कर
डुबकी लगते है , अलष-भोर
Monday 3 November 2014
bnaras ki byar: वास्तविकता को समझना फिर जीवन को जीना ये जरुरी है...
bnaras ki byar: वास्तविकता को समझना
फिर जीवन को जीना
ये जरुरी है...: वास्तविकता को समझना फिर जीवन को जीना ये जरुरी है की हम अपना आर्थिक आधार तलाशे जिसके बिना हमारा अस्तित्व नही होता आज मेरा पुत्र अप...
फिर जीवन को जीना
ये जरुरी है...: वास्तविकता को समझना फिर जीवन को जीना ये जरुरी है की हम अपना आर्थिक आधार तलाशे जिसके बिना हमारा अस्तित्व नही होता आज मेरा पुत्र अप...
वास्तविकता को समझना
फिर जीवन को जीना
ये जरुरी है
की हम अपना आर्थिक आधार तलाशे
जिसके बिना हमारा अस्तित्व नही होता
आज मेरा पुत्र अपने को साबित करने की लड़ाई लड़ रहा है सभी युवाओं के
समक्ष ये चुनौती आती है
हमे अपनी नई पीढ़ी का बढ़ाना है
की, वो नए चुनौती का सामना करते हुए
अपने ओ साबित कर सके
अपने पुत्र की समस्याओं पर
जिससे वो जाने कबसे जूझता रहा
दुनिया में अकेला हो गया
आज मुझे उसका साथ देना है
मई एक किताब भी
उसके जैसी मानसिक समस्या से झुझ रहे युवाओं पर लिखूंगी
नाम रखा है, घर का चिराग
मेरे नावेल , पारिजात के आने में कुछ दिनों की देरी हो रही है इस बीच मई पारिवारिक
दायित्व निभा रही हु,
बेटे का घर बसाना मेरी प्रथम प्राथमिकता है
फिर जीवन को जीना
ये जरुरी है
की हम अपना आर्थिक आधार तलाशे
जिसके बिना हमारा अस्तित्व नही होता
आज मेरा पुत्र अपने को साबित करने की लड़ाई लड़ रहा है सभी युवाओं के
समक्ष ये चुनौती आती है
हमे अपनी नई पीढ़ी का बढ़ाना है
की, वो नए चुनौती का सामना करते हुए
अपने ओ साबित कर सके
अपने पुत्र की समस्याओं पर
जिससे वो जाने कबसे जूझता रहा
दुनिया में अकेला हो गया
आज मुझे उसका साथ देना है
मई एक किताब भी
उसके जैसी मानसिक समस्या से झुझ रहे युवाओं पर लिखूंगी
नाम रखा है, घर का चिराग
मेरे नावेल , पारिजात के आने में कुछ दिनों की देरी हो रही है इस बीच मई पारिवारिक
दायित्व निभा रही हु,
बेटे का घर बसाना मेरी प्रथम प्राथमिकता है
bnaras ki byar: sweetheartबनारस की बयार तुम्हारा दूर चले जाना ज...
bnaras ki byar: sweetheart
बनारस की बयार
तुम्हारा दूर चले जाना
ज...: sweetheart बनारस की बयार तुम्हारा दूर चले जाना जिंदगी की एक सार्थक प्रक्रिया है तुम नाराज नही हो और अपने घर-संसार में तन्मयता से...
बनारस की बयार
तुम्हारा दूर चले जाना
ज...: sweetheart बनारस की बयार तुम्हारा दूर चले जाना जिंदगी की एक सार्थक प्रक्रिया है तुम नाराज नही हो और अपने घर-संसार में तन्मयता से...
sweetheart
बनारस की बयार
तुम्हारा दूर चले जाना
जिंदगी की एक सार्थक प्रक्रिया है
तुम नाराज नही हो
और अपने घर-संसार में
तन्मयता से जुटी हो क्या
ये बहुत संतोष-प्रद नही
आप ही क्यों
कोई भी लड़की
अपने जीवन में सम्मानपूर्वक
अपने घर-संसार में रम जाये
इससे अच्छी बात क्या होगी
और ये बहुत प्रीतिकर समाचार है
अपने ग्यारस को ही
फेसबुक से दूर होने का दिन चुना था
इश्लीए, ये याद आया। ....
बनारस की बयार
तुम्हारा दूर चले जाना
जिंदगी की एक सार्थक प्रक्रिया है
तुम नाराज नही हो
और अपने घर-संसार में
तन्मयता से जुटी हो क्या
ये बहुत संतोष-प्रद नही
आप ही क्यों
कोई भी लड़की
अपने जीवन में सम्मानपूर्वक
अपने घर-संसार में रम जाये
इससे अच्छी बात क्या होगी
और ये बहुत प्रीतिकर समाचार है
अपने ग्यारस को ही
फेसबुक से दूर होने का दिन चुना था
इश्लीए, ये याद आया। ....
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