Thursday, 31 March 2016

 कुछ दिनों से परेशां थी 
घिर सी गई थी 
अब ठीक हूँ 
मुझे लगता है अब समस्या 
नहीं रही 
और जिंदगी फिरसे 
पहले जैसी चलेगी 
घर के साइड में बनते मकान से 
कुछ समस्या आ गई थी मेरे 
घर का पनि जाने का रास्ता 
बंद हो गया था 
तब अपने घर के आँगन में 
सोकपिट गढ्ढा बनाया 
अब सब कहते है पीछे 
बारिश का पानी 
वंही चले जायेगा 
thank god 
तू सभी की सुनता है 

Friday, 25 March 2016

ऐज आगे मन्नू ने कुछ नहीं कहा 
बस रम्भा की आरती करते रहे 
सदा प्रसन्न रहिये 
रम्भा रानी 
आपकी कृपा बने रहे 
और जिंदगी स्मूथली चलती रहे 
सदा सुखी रहे हम 
कोई न हो गम 
जिंदगी रहे आसान 
तो, म.... मिले रस्ते आसान 
सबका हो समाधान 
सुखकर हो जीवन 
बने हम इंसान 
सच्चे इंसान 
प्रीती से भरे 
और मुश्किलें हो आसान 
जय रम्भा रानी 

Thursday, 24 March 2016

मन्नू ने मनभावन रम्भा की याद में पस्त होकर लिखा 
प्यारी रम्भा 
जग से न्यारी रम्भा 
सबसे खूबसूरत लगे 
तेरी ादए प्यारी प्यारी रम्भा 
तो 
आराधना सिंह ने कहा 
मन्नू भैया 
काहे ,
कविता का उखाड़ रहे हो खम्बा 
बबुआ , काहे , परेशां हो 
जब नहीं आती कविता करनी 
तो, काहे हाथ आजमाते हो 
मन्नू ने लिखा 
वो, न्यारी न्यारी 
प्यारी प्यारी रम्भा 
तुम ये अंगड़ाई लेती हो, जब जोर जोर से। .... 
आगे से समझ लो 
आराधना ने कहा 
एक हाथ भी पढ़ गया तो 
नज़र न आओगे 
जब कविता नहीं आ रही तो काहे 
बना रहे हो, जबरन 
मन्नू मन मसोस क्र बोले 
अंगड़ाई ले ले क्र सबको बहला देती हो 
सच तुम्हारा जवाब नहीं स्वीटहार्ट 
उ र लुकिंग , ोवरस्मार्ट 
रम्भा ने इतना ही कहा 
मन्नू मत लो,
हमसे पंगा , सच 

Sunday, 20 March 2016

मन्नू ने रम्भा को चिट्ठी लिखी 
स्वीटहार्ट , कैसी हो 
क्यों इतनी मगरूर हो गयी 
दुनिया में सब तुम्हे देख सकते है 
एक मन्नू को ये आज़ादी नही है 
कबतक रूठी रहोगी 
कुछ तो  रहम करो 

Thursday, 17 March 2016

तुम्हे देखे और 
सोचे बबीना भी 
बिना भी 
दिन बिट रहे है 

Tuesday, 8 March 2016

bnaras ki byar: जम्मू कश्मीर में अतनी मुठभेड़ के वक़्तदिनभर पकपरस्त...

bnaras ki byar: जम्मू कश्मीर में अतनी मुठभेड़ के वक़्त
दिनभर पकपरस्त...
: जम्मू कश्मीर में अतनी मुठभेड़ के वक़्त दिनभर पकपरस्ती के नारे लगाना मस्जिद से इन्हे संचालित करना क्या है और वे पार्टीयां क्यों खामोश है ...
जम्मू कश्मीर में अतनी मुठभेड़ के वक़्त
दिनभर पकपरस्ती के नारे लगाना
मस्जिद से इन्हे संचालित करना
क्या है
और वे पार्टीयां क्यों खामोश है
जिन्होंने देश को इन हालातों तक पहुंचा दिया है
किसानों की आत्महत्या पर खामोश
और देशद्रोहियों की खातिर लड़ने-मरने वाली
ये नेतागीरी क्या चाहती है
वोटों के खातिर
देश के खिलाफ जाने वाले
देश को चूसने वाले
ये राजनेता देश की बर्बादी चाहते है तभी तो, कश्मीर में
सेना पर हो रहे पथराव पर
ये चुप रहते है
इन्हे संसद के हमलावरों की बरसी में
अपने वोट बैंक का लालच दीखता है 
 एक ऐसा चेहरा
जिसे याद कर मन पुलक उठता है
कोई ताजगी सी मन में छाती है
जैसे ईश्वर का कोई स्वरुप हो
इसतरह से आश्वासन मिलता है 

Monday, 7 March 2016

bnaras ki byar: मुखड़ा उसका किसी दवा से कम नही वो, जब भी मिली मुस...

bnaras ki byar: मुखड़ा उसका किसी दवा से कम नही 
वो, जब भी मिली 
मुस...
: मुखड़ा उसका किसी दवा से कम नही  वो, जब भी मिली  मुस्कराती हुई मिली  ऐसा नही कि  उसकी जिंदगी में  कोई गम नही  मुखड़ा उसका  किसी दवा से ...
मुखड़ा उसका किसी दवा से कम नही 
वो, जब भी मिली 
मुस्कराती हुई मिली 
ऐसा नही कि 
उसकी जिंदगी में 
कोई गम नही 
मुखड़ा उसका 
किसी दवा से कम नही 
अपनी समस्या को भूलकर 
वो सबकी प्रसन्नता के लिए 
मुस्करा रही 
मुखड़ा उसका 
किसी दवा से 
कम नहीं 

Sunday, 6 March 2016

मैं हमेशा इन्हीं सोचती हूँ
कि हम भ्रस्टाचार को कैसे मिटाये
इसपर उनिवेर्सित्य उनिवेर्सित्य यूनिवर्सिटी में कोर्स शुरू क्यों नही करते
 जब हम ये पढ़ेंगे कि हमें भ्रस्टाचार को कैसे नही होने देना 

Wednesday, 2 March 2016

 भी जब गौओं भी
जब भी गौओं को जख्मी देखती हूँ
दिल तेदेपा उठता है
नही मिलता जो मेरी इस तड़प को जाने
मई अकेले ही लिखती हूँ
पर कोई साथ नही मिलता
ऐसा लगता है
सब  मुझे सनकी समझते होंगे
मई कुछ हद तक अपने मिशन के लिए जूनून से भरी हूँ
हमेशा अकेले ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखती हूँ
किसी को नही बताती
 इसमें मेरा पैसा लगता है
अपना वक़्त २० बरसों से  हुआ
इन्ही कर रही हूँ
पर  प्रतिसाद नही मिलता
मेरे आसपास वाले नही जान सकते कि
मई कितना pmji को को  भेजती   हूँ
 हाँ,  मोदी जी जी के समय से पत्र मिल मिल रहे है
ये  मेरा पागलपन  कबतक चलेगा चलेगा , पता नही
 किसी ngo से से जुड़ना चाहती हूँ
गौओं के  के लिए चिकित्सा हो , ये  मेरा सपना है 

likhne se

लिखने से मुझे  रिलैक्स लगता है
ये सच  कि  नही मिलता
कभी ही डेल्ही प्रेस से एकाध लेख स्वीकृत हो तब मिलता है
वो,  नमक बराबर भी नही होता
पर मई लिखती  क्यूंकि , ये मुझे सुकून व् धीरज देता है
एक सहस व् धैर्य से भर  जाती हूँ जब लिखती हूँ कई
बार निराश होती हूँ ,   हूँ
  

Tuesday, 1 March 2016

मेरा मन्ना है
मानना है, कि
एक झटके में
गौओं का कत्ल
फ़ौरन बंद किया जाए
जिस क्रूरता से
गौओं को हलाल किया जाता है
उसे रोक जाए
आखिर क्यूँकर
 आस्था के प्रतिक गायों का
क्रूरतापूर्वक
कत्ल सहते रहेंगे
उन्हें बहुत जघन्य तरीके से
हलाल करते है
हैदराबाद के एक एक्सपोर्ट के कत्लखाने में
बहुत  क्रूरता से
वे  कत्ल की जा रही है
ये मई प्रधानमंत्री जी से
निवेदन करती हूँ कि
गौहत्या तत्काल प्रभाव से
बंद की जाए 
रोजाना ऐसी बात नही होती
कि सब आपको देखे या सुने
आपको एकांत भी झेलना होता है
फिर एक लम्बा एकांत और अपने
में डूबा सृजन ही अपना साथी
मई भी ऐसी ऊंघती सृजनता में
अपनी ही बात में घूमती
तबतक नया उच्च नही पाती
जबतक नया न पढ़ा जाए
लेकिन उसका कोई अवसर नहीं
कितने बरसों से
मनपसंद कोई किताब नहीं पढ़ी
न लिख सकी
पढ़ना छह रही थी
निर्मल वर्मा को
किसी पहाड़ी किताब को या शिवानी की कोई
बांकी सी नावेल